गांव की चीजें शुद्ध होती हैं, इसमें कोई दो राय नहीं। खासकर जंगली और पहाड़ी इलाकों की फसलें और जड़ी बूटियां बेहद असरदार मानी गई हैं। नेपाल की तराई में उगने वाली हल्दी, धनिया और दूसरी फसलों से आदिवासी महिलाएं जो सब्जी मसाले और अचार बना रही हैं उनकी मांग लगातार बढ़ रही है..
श्रावस्ती। आदिवासी महिलाएं सब्जी मसाला बनाकर आत्मनिर्भर बन रही हैं। इन आदिवासी महिलाओं ने स्वयं सहायता समूह बनाकर रोजगार शुरू किया है। जनपद मुख्यालय भिनगा के विकास खंड सिरसिया के गाँव रनियापुर आदिवासियों का गाँव है। यहां ज्यादातर थारू समाज के लोग रहते हैं। नेपाल बार्डर से सटे होने के कारण यहां की महिलाएं खेतों में काम करने के साथ-साथ जंगल से लकड़ी बीनने का काम करती हैं। लेकिन गाँव की कुछ जागरूक महिलाएं सब्जी मसाला बनाने का रोजगार शुरू की हैं, जिससे उन्हें आर्थिक लाभ मिल रहा है।
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गाँव की गीता राना(32वर्ष) ने बताया, ” मैं बीए तक पढ़ी हूं। पहले एक स्वयं सहायता समूह के लिए बच्चों को पढ़ाती थी। सब कुछ अच्छे से चल रहा था, लेकिन करीब पांच माह पहले उस संस्था ने काम करना बंद कर दिया। अब हमारे सामने रोजी-रोटी का संकट खड़ा हो गया। फिर हम लोगों ने ग्रामीण विकास संस्था की मदद से अपना स्वयं सहायता समूह बनाया। इसमें दस महिलाएं जुड़ी हैं। संस्था की तरफ से ट्रेनिंग लेने के बाद हमे लोग सब्जी मसाला बनाने का काम कर रहे हैं। “
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15 प्रकार के मसालों का करती हैं प्रयोग
गीता राना ने आगे बताया, ” हम लोग शहर से खड़ा सब्जी मसाला खरीद कर लाते हैं। उसके पास उसकी अच्छे से सफाई की जाती है। उसके बाद भूना जाता है अंत में चकिए से पिसाई की जाती है। हम लोग करीब 15 प्रकार के मासालों का प्रयोग करते हैं। इस दौरान हर समूह की हर सदस्य का काम बंटा रहता है। कोई सफाई का काम करता है तो कोई पिसाई का़। मेरे ऊपर खड़े मसालों को बाजार से खरीदकर उसकी बिक्री की जिम्मेदारी है।”
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वहीं समूह की सदस्य अंजनी ने बताया, ” मसाले की शुद्धता का पूरा ख्याल रखा जाता है। मसाला तैयार करते समूह इस बात का ध्यान रखा जाता है कि खड़े मसाले सही और शुद्ध हों। हम अपने मसाले को 600 रुपए प्रति किलो में बेचते हैं। बाजार से अच्छी किस्म के ही खड़े मसालों को खरीदा जाता है।
शुद्ध और स्वादिष्ट होने के कारण हमारे मसाले की मांग है। हम लोग अपने मसालों को स्कूलों, गाँव में और कुछ सरकारी दफ्तरों में बेच रहे हैं। लेकिन हमें मसालों को उतने खरीददार नहीं
मिल रहे हैं, जितनों की हमें जरुरत है। अगर कोई सरकारी संस्था का सहयोग मिले तो हमें काफी मुनाफा हो सकता है।”
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ग्रामीण स्वरोजगार संस्था के सदस्य अशोक पाठक ने बताया, ” हमारी संस्था ग्रामीण महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रही है। हम लोग ग्रमीण महिलाओं को गाँव में रोजगार मुहैया कराकर उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम बना रहे हैं। रनियापुर की कुछ आदिवासी महिलाओं ने मसाला बनाने का काम शुरू किया है। हमारा प्रयास है कि उनके द्वारा बनाए मसालों की बिक्री ज्यादा से ज्यादा से ज्यादा हो।”
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