‘कोर्ट का ये फैसला हमारे लिए मौत के फरमान सा है’ 

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‘कोर्ट का ये फैसला हमारे लिए मौत के फरमान सा है’ यूपी शिक्षामित्र समायोजन पर कोर्ट के आदेश के बाद बदले हालात 

कन्नौज। उत्तर प्रदेश में शिक्षामित्रों पर कोर्ट के आदेश आने से पहले शिक्षामित्र से सहायक अध्यापक बनने के बाद समायोजित शिक्षकों का रहन-सहन बदल चुका था। ज्यादातर शिक्षामित्र गांव से शहर में बस गए थे। किसी ने किराए पर मकान ले रखा है तो किसी ने मकान बनवाने के लिए जमीन भी ले ली थी। उन्होंनें अपने बच्चों का दाखिला भी महंगे स्कूलों में करा दिया था, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद इन शिक्षामित्रों के सारे सपने टूट गए।

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जिला मुख्यालय कन्नौज से करीब 18 किमी दूर बसे उमर्दा ब्लाक क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल जय सिंह पुरवा की समायोजित शिक्षिका रमा श्रीवास्तव (36) कहती हैं कि ‘‘परिवार की कुछ स्थिति सुधरी थी, हम बहुत खुश थे। हमने अपने बेटे उत्कर्ष को आईआईटी की तैयारी करने के लिए कानपुर भेजा था। उसकी पढ़ाई का खर्च वेतन से चलता था। कोर्ट के इस फैसले के बाद हमारे ऊपर मुसीबतों का पहाड़ टूट गया है। हमें नहीं लगता कि अब हम पहले जैसी स्थिति में आगे रह पायेंगे। शायद हम अब अपने बच्चों को आगे पढ़ा भी न सकें।

तिर्वा तहसील क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल महुआपुर की 34 साल की सहायक अध्यापिका (अब समायोजन रद) अदिति दुबे बताती हैं, ‘‘हमें अच्छा वेतन मिलने लगा था। हमने बहुत सपने संजोए थे। तिर्वा में प्लाट भी खरीद लिया था, वह भी अधूरा पड़ा है। इनकम टैक्स को देखते हुए एलआईसी में भी पालिसी ले ली थी। जिसमें काफी पैसा जमा हो चुका है। अब कैसे किस्त चलाएंगे, वह भी पैसा मारा जाएगा, क्योंकि तीन साल पूरे नहीं हुए हैं।’’

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एक निजी डिग्री कालेज के 40 वर्षीय शिक्षक उमेश चंद्र द्विवेदी बताते हैं, ‘‘मेरी पत्नी सुबोधिनी द्विवेदी (37) मानपुर प्राथमिक स्कूल में सहायक अध्यापिका पद पर तैनात थीं। सैलरी मिलने की वजह से दो बच्चों को जेपीएस में हमनें दाखिला करा दिया था। उधार पर रकम लेकर गांव छोड़कर कन्नौज में मकान बनवा लिया था। सोचा था कि तनख्वाह से उधारी चुका देंगे। मुझे तो सिर्फ आठ हजार रूपए की मिलते हैं नौकरी से , अब कैसे गृहस्थी का खर्च चलेगा और कैसे बच्चों की फीस भरी जाएगी ये सोच सोच कर मुझे बहुत बुरा लग रहा है। इससे अच्छा होता कि हम मर ही जाते।”

सदर कन्नौज ब्लॉक क्षेत्र के प्राथमिक स्कूल कनपटियापुर में पढ़ाने वाली 40 साल की संध्या मिश्रा बताती हैं कि ‘‘पति रवीश दुबे शरीर से कुछ कमजोर हैं। दो बच्चे निजी स्कूल में पढ़ते हैं। तीसरा बड़ा बेटा कम्प्टीशन की तैयारी कर रहा है। मकान गांव में है जो टपकता है। समायोजित होने के बाद हम शहर में रहने लगे थे, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद लगता है कि हमारे ऊपर पहाड़ टूट गया हो।”

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