किसी ने स्कूल में दाखिला दिलवाया तो किसी ने रोकी बाल मजदूरी

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बलरामपुर। पूर्व माध्यमिक विद्यालय विशुनापुर में कक्षा आठ में पढ़ने वाली शाहरीबा (15 वर्ष) हैं, “मेरे स्कूल में एक लड़का पढ़ने आता था, जिसका नाम अनूप था, एक दिन अचानक से उसके माता-पिता ने उसकी पढ़ाई छोड़ कर उसे बाजार में फल की पेटी ढोने को कहा और उसने मजबूर होकर बाजार जाना शुरु कर दिया। इससे उसकी जिंदगी खराब हो रही थी।”

शाहरीबा ने बताया, “इसके बाद हमने सबसे पहले राहुल से बात की, तो उसने कहा कि मैं पढ़ना चाहता हूं, फिर राहुल के माता-पिता से बात की और उन्हें समझाया किस की पढ़ाई छूट जाएगी तो जिंदगी खराब हो जाएगी। राहुल पढ़ने में अच्छा है इसे पढ़ने भेजिए। काफी समझाने के बाद राहुल के माता-पिता ने उसे फिर से स्कूल भेजना शुरू किया और वह आज हमारे साथ पढ़ रहा है।”

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उसी विद्यालय की मीना मंच की पुष्पा (16 वर्ष) ने बताया, “मेरे घर के बगल में एक आंटी रहती हैं जिनके चार बच्चे हैं दो तो पढ़ने जाते थे लेकिन दो का पढ़ना अचानक से रुक गया था, हमने आंटी से पूछा कि आप अपने बच्चों को पढ़ने के लिए क्यों नहीं भेजतीं? तो उन्होंने कहा, “हम प्राइवेट स्कूल की फीस नहीं भर सकते बहुत ज्यादा है, तो हमने कहा कि आप सरकारी स्कूल में भेजिए वहां पर फ्री में पढ़ाई होती है। तो आंटी बोली हम नहीं जा सकते वहां पर दाखिला करवाने तो मैंने कहा आपके बच्चे को मैं लेकर जाऊंगी और दाखिला करवाऊंगी मैंने उनका विद्यालय में नाम लिखवाया और आज वह पढ़ रहे हैं।”

शाहरीबा

अपर प्राइमरी विद्यालय विशुनापुर की प्रधानाचार्य अनीता बताती हैं, “सबसे पहली बात तो जो भी बच्चे हमारे विद्यालय में आते हैं उन्हें अपने बच्चों के जैसा ही व्यवहार करते हैं अगर हम उन्हें अपने बच्चों जैसा नहीं मानेंगे तो उन्हें हम इतना अच्छा नहीं बना पाएंगे कि वह अन्य लोगों के लिए अच्छा काम करें।”

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पुष्पा।

बलरामपुर जिले में मीना मंच के जिला समन्वयक डॉक्टर अनूप श्रीवास्तव बताते हैं, “मीना मंच में विद्यालय के सभी बच्चों को लिया जाता है सदस्य के तौर पर और उनमें से कुछ बच्चों को पद दिए जाते हैं। बच्चों को विद्यालय में सिखाया जाता है मीना की कहानियां सुनाई जाती हैं। मीना कौन थी, मीना कैसे काम करती थी? मीना कैसे लोगों को अच्छी-अच्छी सीख देती थी। उन्हीं चीजों को देखकर बच्चे आगे बढ़ रहे हैं। हमें खुशी है मीना मंच के बच्चे इतने सशक्त हैं।”

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