गोरखपुर त्रासदी : जब मैंने अपनी तड़पती बेटी को देखने के लिए कहा तो नर्स बोली- इसका पर्चा लाओ निकालो बाहर

Vinay GuptaVinay Gupta   13 Aug 2017 4:45 PM GMT

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गोरखपुर त्रासदी : जब मैंने अपनी तड़पती बेटी को देखने के लिए कहा तो नर्स बोली- इसका पर्चा लाओ निकालो बाहरगोरखपुर त्रासदी

गोरखपुर। कमलेश शर्मा (45 वर्ष) तीन दिन पहले अपने बेटी पिंकी शर्मा को इलाज कराने लाये थे। डॉक्टरों के रवैये से थक हार कर आज (शनिवार को) अस्पताल के सामने बने होटल पर अपनी बेटी को अस्पताल से रिफर कराकर लखनऊ लेकर जा रहे थे। उन्होंने बताया, ''अस्पताल में शाम के बाद मरीजो से बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है। जब मैंने अपनी तड़पती बेटी को देखने के लिए नर्स को बोला की मरीज को देख लीजिए एक बार तो नर्स धमकी देते हुए बोली कि इसका पर्चा निकालो इसे अभी बाहर कर देते हैं, जिसके बाद इस डर से की इतनी रात को मरीज को लेकर कहां जाएंगे नर्स या डॉक्टर को कुछ बोलने की हिम्मत नहीं होती।''

मेडिकल अस्पताल के इंसेफेलाइटिस वार्ड के अंदर और बाहर परिजनों के आंसु थमने का नाम नहीं ले रहे हैं। अस्पताल प्रशासन इन मरीजों से बदसलूकी भी कर रहा है। लेकिन जैसे ही मंत्रियों के अस्पताल पहुंचने की खबर अस्पताल प्रशासन को मिली तबसे अस्पताल को चमकाया जाने लगा है, मरीजों को दवाएं अस्पताल से दी जाने लगी हैं। आज बच्चों की मौत के मामले में स्थिति की समीक्षा के लिए राज्य के स्वास्थ्य मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह और चिकित्सा शिक्षा मंत्री आशुतोष टंडन यहां पहुंचने वाले हैं।

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लखनऊ शहर से लगभग तीन सौ किलोमीटर दूर पूरब दिशा के गोरखपुर में बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज स्थित है, जो बीते दो दिनों से मौत का कब्रगाह बन गया है। गोरखपुर के आसपास के क्षेत्र में बच्चों में ये बीमारी आमतौर पर पायी जाती है, जिसको लेकर प्रशासन लगातार काम कर रहा है। लेकिन बीते 20 वर्षों से प्रशासन इस बीमारी पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा। बारिश के दिनों में यहां पर तीन चार मौते रोजाना होती हैं। जो कि यहां के डॉक्टर और आला अधिकारियों के लिए आम बात है।

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अमित कुमार वर्मा 27 वर्ष ने बताया कि वे 9 तारीख से अस्पताल में अपनी बेटी को इलाज कराने के लिए लाए थे। उस दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी दौरा करने आये थे। हम लोगों की उस दिन व्यवस्था सही थी। उसके बाद जो दवाएं अस्पताल में फ्री में मिलती थी वही दवाएं डॉक्टरों ने बाहर से खरीदने को कहा। शुक्रवार को जब हम वार्ड में थे उसी समय बच्चों के मरने की सूचना मिली, जिसके बाद नर्स और डॉक्टर भी मरीजों से सही से बात नही कर रहे थे। शनिवार की सुबह जब मंत्री के आने की सूचना मिली तो पूरा अस्पताल चमकाया जा रहा था और दवाएं भी मरीजों को बुला-बुला कर दी जाने लगीं।

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बरगदिया गोरखपुर की रहने वाली कविता कनौजिया (28 वर्ष) का बच्चा 10 दिन का था, डिलीवरी के बाद से बच्चा अस्पताल में ही एडमिट था। उन्होंने कहा कि शुक्रवार की शाम को डॉक्टरों ने बोला कि बच्चे को खून की जरूरत है। जल्दी से खून का इंतजाम करिए। खून का इंतजाम करके जैसे ही वो डॉक्टर के पास पहुंचे। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि उनका बच्चा मर चुका है। उन्होंने कहा कि यहां के डॉक्टरों से अच्छे तो उग्रवादी है, कम से कम बच्चों को तो नहीं मारते हैं।

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