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हम आपको डरा नहीं रहे, लेकिन हाईवे पर चलते हैं तो ये ख़बर पढ़ लीजिए प्रदेश मे सबसे ज्यादा सड़क हादसे ग्रामीण इलाकों में होते हैं

अभिषेक पाण्डेय

लखनऊ। सड़कें और हाईवे गाँवों तक पहुंच रहे हैं, इन सड़कों के सहारे तरक्की भी ग्रामीण इलाकों में पहुंच रही है, लेकिन सरकारी उदासीनता और लोगों की लापरवाही के चलते यही सड़कें लोगों के लिए काल भी बन रही हैं। प्रदेश मे सबसे ज्यादा सड़क हादसे ग्रामीण इलाकों में होते हैं और सालाना हजारों लोग जान गंवा रहे हैं।

उत्तर प्रदेश में वर्ष 2016 में करीब 36043 मौतें सड़क हादसों में हुई हैं। इनमें से ज्यादातर हादसे हाईवे और ग्रामीण इलाकों की सड़कों हुए हैं और मृतकों में 60 फीसदी ग्रामीण थे। इनमें सबसे ज्यादतर दो पहिया वाहन चालक थे। एनसीआरबी के मुताबिक पिछले 10 वर्षों में सड़क हादसों में होने वाली मौतों में 42 फीसदी बढ़ोतरी हुई है।

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भारत में रोजाना 400 लोगों की मौत सड़क हादसों में होती है। इनमें से सबसे ज्यादा 49 लोगों की जान यूपी में जाती है। ये आंकड़ें आपराधिक घटनाओं में होने वाली मौतों से दोगुने हैं। यातायात निदेशालय उत्तर प्रदेश का लगातार पांच वर्षों का आंकड़ा यह हकीकत बयां कर रहा है। हाईवे पर बेकाबू रफ्तार, नशे में ड्राइविंग, सड़क पार करने के पर्याप्त संसाधनों का न होना और हादसों की वजह बनते हैं, तो ग्रामीण इलाकों में टैफिक पुलिस का न होना, हेलमेट और सीट बेल्ट का न लगाना, कम चौड़ी और जर्जर सड़कें, सड़कों पर रोशनी की कमी और वाहनों की फिटनेस हादसों की बड़ी वजह हैं।

लखनऊ में गोसाईगंज-सुल्तानपुर हाईवे से सटे कस्बे अमेठी के रतनलाल का कहना है, “सड़क के दोनों ओर से गाड़ियां तेज रफ्तार से आती हैं। बच्चों को भी स्कूल भेजने में डर लगता है, जबतक वो स्कूल से लौट नहीं आते सांसें थमी रहती हैं।” वहीं दूसरी ओर मलिहाबाद-हरदोई रोड से सटे गॉंव दतली के रहने वाले कमलेश मौर्या बताते हैं, “हाईवे पर इतने मोड़ है कि दूसरी ओर से आती तेज रफ्तार गाड़ियां दिखती नहीं है और इसका शिकार रोजाना कोई न कोई ग्रामीण होता है। स्पीड पर किसी की लगाम ही नहीं है।”

लखनऊ में इसी साल 5 मई तक तक 208 लोगों की सड़क हादसे में मौत हो चुकी है, जबकि 300 लोग घायल हुए हैं। लखनऊ के ही ग्रामीण इलाकों में ट्रैफिक पुलिस नजर नहीं आती। राजधानी के एएसपी ट्रैफिक हबीबुल हसन की माने तो, शहर के रेड जोन वाले चौराहों के लिए भी ट्रैफिक पुलिस पर्याप्त नहीं है, ग्रामीण इलाकों में कहां से तैनाती हो।

वो बताते हैं, “कुछ ट्रैफिककर्मी वीवीआईपी ड्युटी में व्यवस्त रहते है और जो बाकी बचे, वह शहर के मुख्य चौराहों को बड़ी मश्क्कत से संभालने का कार्य करते हैं। लखनऊ में गाड़ियां ज्यादा आती है, इसलिए हादसे भी ज्यादा होते हैं, इसका जल्द ही समाधान निकाला जाएगा।”

उत्तर प्रदेश में यूपी के एडीजी ट्रैफिक प्रशांत कुमार ने इस संबंध में बात करने पर बताया कि, कुछ दिन पहले ही ट्रैफिक विभाग का कार्यभार संभाला है और जल्द ही इस ओर एक कार्ययोजना बना हाईवों पर सड़क हादसों में होने वाली मौतों पर अंकुश लगाया जायेगा।

वर्ष 2016 में केंद्रीय भूतल परिवहन मंत्री नितिन गड़करी ने देशभर में इन मौतों का आंकड़ा कम करने के लिए 726 दुर्घनटा संभावित इलाके पहचान कर उन्हें दुरुस्त करने के लिए 11 हजार करोड़ की भारीभरकम राशि खर्च करने का ऐलान किया था। कुछ महीने पहले उन्होंने एक बार फिर कहा कि 2020 तक सड़क हादसों में होने वाली मौतों के आकड़ों में कमी आयेगी, क्योंकि इस ओर हमारा विभाग तेजी से काम कर रहा है।

सड़क हादसा

सड़क यातायात एवं राजमार्ग मंत्रालय के शोध के अनुसार 77.1% मौतों में ड्राइवर की गलती रही, जबकि अन्य में पीड़ित की गलती रही। इसके अलावा 70 प्रतिशत दुर्घटना में आमने सामने की टक्कर हुई। वहीं सड़क सुरक्षा की दिशा में जागरूकता अभियान चला रहे आशुतोष सोती ने बताया, “ भारत सड़क सुरक्षा को लेकर अब भी युद्ध स्तर पर काम नहीं कर रहा है, क्योंकि इसमें एक रोड़ा है। यहां सड़कों का मालिकाना हक सरकार के पास है, लेकिन इसे निज़ी कंपनी चलाती है, जो बदले में टोल टैक्स वसूलती है। यहां दोनों पक्षों में इस बात को लेकर विवाद है कि सुरक्षा के उपाय किसे करने चाहिए।”

पूर्व भाजपा सरकार ने ट्रैफिक को लेकर बनाई थी चौबे कमेटी

यूपी में बीजेपी सरकार के दौरान पूर्व मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह ने ट्रैफिक व्यवस्था को सुधारने के लिए चौबे कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने 6 महीने में अपनी रिपोर्ट जो शासन को सौंपी थी, उसके मुताबिक ट्रैफिक की सबसे मुख्य समस्या कर्मचारियों और संसाधनों की कमियों को बताया गया था। इस कमेटी के सुझावों को इतने वर्षों मं आज तक किसी भी सरकार ने धरातल पर नहीं उतारा है। हालांकि मौजूदा समय में केंद्रीय और राज्य दोनों में भाजपा की सरकारें हैं, इसलिए अधिकारी और जनता दोनों की उम्मीदें भी ज्यादा हैं।

सड़क हादसों में मौत की वजह जिलों में ट्रांमा सेंटर का ना होना भी

लखनऊ के किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के ट्रामा सेंटर के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. धीरेंद्र पटेल बताते हैं, “सबसे ज्यादा हादसे शराब पीकर गाड़ी चलाने और हेलमेट न लगाने से होते हैं। हादसों में सबसे ज्यादा चोट सिर पर आती है। पश्चिमी यूपी के कुछ जिलों को छोड़कर बाकी सारे घायल यहां आते हैं। पूर्वी बिहार के कई जिलों के मरीज हमारे यहां रेफर किए जाते हैं। अगर जिलों में ट्रामा सेंटर जैसे सुविधाएं हों तो सैकड़ों जानें बचाई जा सकेंगी।”

लखनऊ में ये हैं रेड जोन

लखनऊ में सबसे ज्यादा हादसे ग्रामीण हाईवे मलिहाबाद, गोसाईगंज, बंथरा, रायबरेली रोड और सीतापुर रोड पर होते हैं। इसके साथ ही मलिहाबाद-रामपुर हाईवे सबसे अधिक डेंजर जोन में आता है, जहां नेशनल हाईवे छोटा होने के चलते हर सप्ताह कोई न कोई बड़ा हादसा होता है।

राजधानी के एएसपी ट्रैफिक हबीबुल हसन की माने तो, ग्रामीण क्षेत्रों में करीब 180 चौराहों को चिन्हित किया गया है, जहां गाड़ियों का आवागमन बहुत अधिक है, लेकिन फोर्स की कमी के चलते शहरों के 441 प्वाइंट में से महज 112 प्वाइंट पर ही ट्रैफिक पुलिस की ड्युटी लगाई जा रही है और इसमें ग्रामीण चौराहे तो बहुत दूर कौड़ी है, जहां ट्रैफिक पुलिस तैनात की जाये।

उन्होंने बताया कि, कुछ ट्रैफिक कर्मी वीवीआईपी ड्युटी में व्यवस्त रहते है और जो बाकी बचे, वह शहर के मुख्य चौराहों को बड़ी मश्क्कत से संभालने का कार्य करते हैं। हालांकि राजधानी में गाड़ियों का आवागमन अधिक है, जिसके चलते रोजाना सड़क हादसों से ग्रामीणों को दो-चार होना पड़ता है, जिसका जल्द ही आलाधिकारियों से बैठक कर समाधान निकाला जायेगा।

वहीं, एसएसपी दीपक कुमार का इन हादसों के बारे में कहना है कि, हाईवे से सटे संबंधित थानों में इस बाबत खास चौकसी रखने की हिदायत दी जायेगी और तेज रफ्तार वाहनों को रोक उनके खिलाफ मोटर वाहन अधिनियम के तहत कार्रवाई की जायेगी।

सड़क हादसों की वजह

1.सड़क पर चलने वाले सभी को अपने बाएं तरफ होकर चलना चाहिए, खासतौर से चालक को और दूसरी तरफ से आ रहे वाहन को जाने देना चाहिए।

2.अधिक व्यस्त सड़कों और रोड जंक्शन पर चलते समय ज्यादा सावधानी बरतें।

3.दोपहिया वाहन चालकों को अच्छी गुणवत्ता वाले हेलमेट पहनने चाहिये।

4.गाड़ी की गति निर्धारित सीमा तक ही रखें खासतौर से स्कूल, हॉस्पिटल, कॉलोनी आदि क्षेत्रों में।

5.ट्रैफिक नियमों की जानकारी न न होना और जिन्हें है वो पालन नहीं करते।

6. मोटर साइकिल या साइकिल पर ईयर फोन लगाकर गाना सुनना, शराब का सेवन और ज्यादा रफ्तार

बच्चे और बुजुर्ग के लिये सड़क सुरक्षा की अधिक जरुरत

  • आँकड़ों की पड़ताल में पाया गया है कि सबसे ज्यादा शिकार युवा होते हैं। बच्चों को बचपन से ही सड़क सुरक्षा ज्ञान और शिक्षा की जरुरत है। उनके पाठ्यक्रम में इसे विषय के रुप में जोड़ने के द्वारा उनके घर और स्कूल से ही इसकी शुरुआत होनी चाहिये।
  • यातायात परिस्थिति के दौरान घर या दूसरी जगहों खासतौर से सड़क में वो अगला क्या करेंगे कोई भी इसके बारे में आश्वस्त नहीं है।
  • बच्चे सड़क पर तेज गति से चलने वाले वाहनों का वो मूल्यांकन नहीं कर सकते हैं।
  • बच्चों की कम लंबाई के चलते वाहन चालक भी सड़क पर उनके व्यवहार को भाँप नहीं सकता, जब वो वाहन के सामने सड़क को पार करने की कोशिश करते हैं।
  • सड़क निर्धारित जगह से पार की जाए। शहरों में जेब्रा कॉसिंग तो ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।
  • बच्चे जल्द ही डर जाते हैं और ये नहीं समझ पाते कि उन्हें क्या करना चाहिए जब वो वाहन को अपनी ओर आते हुए देखते हैं।

ग्रामीण और शहरी बरते यह सावधानी

  • सड़क को पार करने से पहले हर तरफ (बाँये और दाँये) देखने के बारे में सिखाना चाहिए।
  • सड़क पार करते हुए अपने बड़ों या दोस्तों का हाथ हमेशा पकड़े रहना चाहिए।
  • उन्हे कभी-भी सड़क पर दौड़ना नही चहिये, माता-पिता का हाथ छोड़ना या जल्दी में नहीं होना चाहिए और धैर्य रखें।
  • किसी भी वजह से उनका ध्यान न बँटे और सड़क पर उन्हें अधिक वाहनों के साथ अधिक सचेत होना चाहिए।
  • सड़क पर बाँये तरफ का प्रयोग करें ज्यादातर,जहां पकडंडी हो।
  • पैदलयात्रियों के लिये यातायात सिग्नलों को देखने के बाद चौराहे पर केवल सड़क को पार करने के लिये उन्हें सिखाना चाहिए।
  • कार या बस से बाहर आने के दौरान पैसेंजर सीट के पीछे की तरफ का इस्तेमाल उन्हें करना चाहिये।
  • ब्रेक,हार्न और स्टीयरिंग या हैंडल के कार्य को ठीक से जाँचने के द्वारा सड़क पर साईकिल चलाने के दौरान सभी उपायों के इस्तेमाल और हेलमेट को जरुर पहनना चाहिए।

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