गंगा तट पर कैलाश खेर हुए कबीरमय 

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गंगा तट पर कैलाश खेर हुए कबीरमय कैलाश खेर।

वाराणसी (भाषा)। बनारस की अस्सी घाट पर कबीर के सूफीवाद में डूबे कैलाश खेर ने गंगा किनारे मौजूद सभी दर्शकों को सूफीमय बना दिया। सूफी गायक खेर के धुनों के साथ ही महिंद्रा कबीर उत्सव का समापन हो गया। यह उत्सव रोमरोम में कबीर को फिर महसूस करने के लिए 10 से 12 नवंबर के बीच आयोजित किया गया था।

कैलाश को सुनने के लिए हजारों लोग गंगा किनारे जमा थे। उनसे पहले पुष्कर से आए नगाड़ा वादक नाथू लाल सोलंकी, सूफी बैंड माटी बानी और सूफी गायक हरप्रीत ने अपनी प्रस्तुति दी। समापन कार्यक्रम की शुरआत अस्सी तट गंगा आरती से हुई।

इस मौके पर कबीर से अपने जुड़ाव के बारे में कैलाश ने कहा, ''लोगों को अपने जीवन में ईमानदारी बहुत अच्छी लगती है लेकिन सब ईमानदारी की परिभाषा अपने आप से बनाते हैं। सच्चाई की परिभाषा तय नहीं है अभी, जबकि कबीर के विचार तय हैं। वह बताते हैं कि जितना आप दुख को अपनाएंगे उतना ही सच के निकट आते जाएंगे।''

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इस कार्यक्रम से जुड़ने के बारे में महिंद्रा एंड महिंद्रा लिमिटेड के उपाध्यक्ष एवं प्रमुख सांस्कृतिक आउटरीच जय शाह ने कहा, ''जब महिंद्रा कंपनी की स्थापना हुई तो यह महिंद्रा एंड मोहम्मद के तौर पर हुई। शुरुआत से ही हमारे संगठन में कबीर के उपदेशों का महत्व है। साथ ही इसकी वर्तमान प्रासंगिकता भी है। आजकल दुनिया बहुत ज्यादा अराजक, ध्रुवीकृत है, ऐसे में यदि स्थिर बुद्धिमत्ता के लिए कबीर की वाणी को उधार लेकर यदि हम छोटी सी आवाज भी उठा सकें तो यह महत्वपूर्ण है।''

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उत्सव के तीसरे दिन भोर के समय सूर्य को बनारस घराना की गायिका सुचित्रा गुप्ता ने दरभंगा घाट पर संगीत का रसपान कराया। दिन में कबीर और रहीम के दोहों को अर्थशास्त्र से जोड़ने वाले दोहानॉमिक्स के लेखक विनायक सप्रे ने लोगों को निवेश के उपर व्याख्यान दिया।

इस दौरान दर्शकों और उत्सव में शामिल प्रतिनिधियों को कबीर वॉक पर ले जाया गया। इसके मूल में लोगों को कबीर के वास्तविक काम यानी बुनकरी से परिचय कराना था। इसमें यहां के मदनपुरा और बड़ी मस्जिद जैसे जुलाहों के इलाकों का भ्रमण और पाटन, जामदानी जैसी बनारसी कढ़ाईयों से रुबरु होने का मौका मिला।

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उल्लेखनीय है कि कबीर उत्सव का उद्घाटन 10 नवंबर को शास्त्रीय गायक विष्णु मिश्रा की प्रस्तुति से हुआ था। दूसरे दिन संतूर वादक सारंग कुमार के राग अहिर भैरवी के वादन के साथ यहां दरभंगा घाट पर सूर्योदय में सूर्य का स्वागत किया गया। इसके बाद रश्मि अग्रवाल के कबीर भजन और दिन में अंकित चढ्ढा की दास्तानगोई ने लोगों का मन मोहा।

शाम को जैसलमेर के कलाकार महेशा राम के तंबूरा वादन और गायन, कर्नाटक संगीत परंपरा की गायिका बिंदुमालिनी एवं वेदांत और पद्मश्री गायिका शुभा मुद्गल की कबीरवाणी का आयोजन हुआ। इस मौके पर शुभा ने कहा, ''कबीर और काशी का दोनों महान हैं और दोनों का दुनिया में अपना स्थान है। लेकिन इस उत्सव से दोनों का संगम हो गया है।''

इस उत्सव के बाद आनंद महिन्द्रा ने लिखा है, ''शाबास टीम एमहिन्द्राकरीब, आपने आशाओं से बढ़कर काम किया है, आशा करता हूं कि यह उत्सव वाराणसी के हृदय और आत्मा से जुड़ेगा।'' उत्सव में अपनी प्रस्तुति और दर्शकों के उत्साह के संबंध में गायक कैलाश खेर ने ट्वीट किया। इसका जवाब देते हुए महिन्द्रा ने लिखा है, ''कैलाशखेर जी अपने संगीत और ऊर्जा से उत्सव को विशेष बनाने के लिए धन्यवाद, काश मैं आपके गीतों पर नाचने के लिए वहां मौजूद होता, संभवत: अगले वर्ष।''

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