जंगलों में नहीं है जंगली पशुओं के इलाज की व्यवस्था, घायल बाघों की हो रही मौत

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पीलीभीत। जनपद के जंगलों को सरकार द्वारा 2014 में पीलीभीत टाइगर रिजर्व घोषित किया गया था। टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 73024.98 हेक्टेयर है जिसमें 60279.80 हेक्टेयर कोर जोन 12745.18 हेक्टेयर बफर जोन एरिया सम्मिलित है। टाइगर रिजर्व के जंगलों की लंबाई के सापेक्ष चौड़ाई कम है यानी कि बफर जोन एरिया काफी कम होने के कारण अक्सर जंगली जानवर जंगलों से बाहर आ जाते हैं और जंगलों के किनारे बसने वाले ग्रामीणों पर हमला कर उन्हें मौत के घाट उतार देते हैं।

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पिछले वर्ष 24 व्यक्तियों की जान जंगल से निकले बाघों द्वारा ली गई। जब भी बाघ या कोई जंगली पशुओं जंगल से निकलकर बस्ती वाले क्षेत्र में आ जाता है तो ग्रामीणों द्वारा उसको भगाने हेतु उस पर आक्रमण किया जाता है। चोटिल होने पर उसके इलाज की कोई व्यवस्था वन विभाग के पास नहीं है। कई बार देखने में आया है कि जंगल में बाघों के आपसी संघर्ष में घायल अवस्था में बाघ पाए गए जो समुचित इलाज ना मिल पाने के कारण मौत के काल में समा गए।

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पिछले दिनों वन विभाग पीलीभीत की ओर से माला रेलवे स्टेशन के समीप घनघोर जंगल के अंदर जगह चिन्हित की गई थी जहां पर बाघ समेत अन्य घायलों वन्यजीवों को आसानी से लाया जा सकता था। इस जगह में रेस्क्यू सेंटर बनने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था। लेकिन किसी कारणवश वन विभाग का यह प्रस्ताव मंजूर नहीं हो सका और पशुओं को अपनी बीमारियों का इलाज भी नहीं मिल सका। यदि शासन से इस रेस्क्यू सेंटर की मंजूरी मिल जाती तो वन्यजीवों को बेहतर इलाज मिल सकता है। इन सेंटरों पर बाघ, तेंदुआ समेत अन्य वन्यजीवों का समुचित इलाज द्वारा उनकी जान को आसानी से बचाया जा सकता है।

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ज्ञात रहे पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगल में बाघ गुलदार, तेंदुआ, बारहसिंघा, नीलगाय, पांडा, चीतल, भालू, सुअर, बंदर, घड़ियाल, भेड़िया, लकड़बग्घा लोमड़ी, सियार, मोर, काला हिरण, फिशिंग कैट वन गाय आदि जानवर बहुतायत में पाए जाते हैं। अभी तक वन विभाग इन वन्यजीवों के इलाज के लिए पशुपालन विभाग की ओर निहारता है। पशुपालन विभाग के डॉक्टर टाइगर रिजर्व प्रशासन की पूरी तरह से मदद करते हैं। टाइगर रिजर्व के प्रभागीय वनाधिकारी कैलाश प्रकाश से जब इस बारे में बात की गई तो उन्होंने बताया कि “टाइगर रेस्क्यू सेंटर की स्थापना का प्रस्ताव काफी समय पहले चुका है। अभी तक शासन से लेकिन मंजूरी न मिल पाने के कारण रेस्क्यू सेंटर की स्थापना नहीं की जा सकी। यदि सरकार रेस्क्यू सेंटर को मंजूरी देती है तो वन्यजीवों का अच्छा इलाज संभव हो सकेगा।”

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