सबके हैं आयोग (ग़रीब किसान को छोड़कर)

Ashwani NigamAshwani Nigam   20 May 2017 2:03 PM GMT

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सबके हैं आयोग (ग़रीब किसान को छोड़कर)किसानों का दुखड़ा सुनने के लिए कोई ऐसा आयोग या संस्था नहीं है।

लखनऊ। अगर किसी महिला के साथ कोई अन्याय होता है तो वह महिला आयोग का दरवाजा खट-खटाती है। अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए भी अलग आयोग हैं, लेकिन किसानों का दुखड़ा सुनने के लिए कोई ऐसा आयोग या संस्था नहीं है जहां अपनी समस्याओं को सामने रख सकें।

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उत्तर प्रदेश के किसानों की कृषि संबंधित समस्याओं के लिए एक फिर किसान आयोग की मांग उठी है। प्रदेश के किसान और विभिन्न सामाजिक संगठन राज्य किसान आयोग की मांग को लेकर लंबे समय से संघर्ष कर रहे हैं। सिद्धार्थनगर के खुनवा गाँव निवासी अब्दुल क़ादिर (55 वर्ष) कहते हैं,"सभी पार्टियां और सरकारें किसानों के लिए अच्छी बातें करती हैं, लेकिन सबसे बुरी स्थिति में आज किसान ही है। जब तक जमीन पर योजना न उतरे, तब तक किसी कार्यक्रम का कोई फायदा नहीं। किसान आयोग में किसान भी शामिल हों और किसानों को न्यूनतम आय की गारंटी दी जाये। तभी किसान का भला होगा।"

प्रदेश में किसान आयोग के गठन को लेकर शुक्रवार को उत्तर प्रदेश कृषि अनुसंधान परिषद में उत्तर प्रदेश कृषक समृद्धि में किसान आयोग का गठन की सार्थकता विषय पर एक दिवसीय सत्र का आयोजन किया गया। जिसमें देशभर से जुटे विशेषज्ञों ने उत्तर प्रदेश में जल्द से जल्द किसान आयोग के गठन करने की सिफारिश की। हरियाणा राज्य में किसान आयोग का गठन किया गया है। इस अवसर पर हरियाणा किसान आयोग के अध्यक्ष डॉ. रमेश कुमार यादव ने कहा, “उत्तर प्रदेश में किसान आयोग का गठन हो जाने से यह आयोग कृषि के विकास के लिये नीतियां बनाकर सरकार को सहयोग करेगा। हरियाणा में यह आयोग किसानों की समस्याओं को निपटारा कर रहा है।“

वहीं, लखनऊ के मोहनलालगंज तहसील के भीलमपुर गाँव निवासी राम शरण द्विवेदी (57 वर्ष) बताते हैं, “किसान आयोग अगर बनता है तो किसानों के लिए अलग फंड, योजनाए आएंगी। अगर इसका क्रियानवयन जमीनी स्तर पर सरकार के मंशानुरूप हो पाया तो ये निर्णय देश के किसानों के लिए मील का पत्थर साबित हो सकता है।“ वहीं, कानपुर नगर के बिल्हौर के घिमऊ गाँव के निवासी हीरा (40 वर्ष) बताते हैं, “किसान आयोग का गठन तो बहुत अच्छी बात है, लेकिन इस आयोग को जमीनी स्तर पर आने के बाद ही किसानों का भला हो पायेगा क्योंकि आजकल के लड़के खेती नहीं करना चाहते हैं और अगर यह युवाओं को खेती की आकर्षित करने में सफल हुआ तो आयोग के गठन का निर्णय कृषि की सूरत बदल देगा। आज जरूरत है कि कृषि को भी उद्योग समझ कर किया जाये।“

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साफ होने चाहिए किसान आयोग के लक्ष्य

राज्य किसान आयोग के लक्ष्य बिल्कुल साफ होने चाहिए। सबसे पहले खेती को कैसे लाभकारी बनाया जाए और पढ़े-लिखे लोग कृषि क्षेत्र में आए उसके लिए आयोग को अपन ध्यान केंद्रित करना होगा। इसके साथ ही किसानों का जीवन-स्तर ऊंचा उठे, उनके परिवार को खेती व्यवस्थित जीवन जीने का आधार मिले, इसके लिए खेती को विकसित करने की नीतियों, कार्यक्रमों, उपायों की दिशा में वह किसानों के साथ मिलकर और सरकारों के साथ सामंजस्य स्थापित करके काम करे।

यूपी में बने किसान आयोग तो किसानों को मिले लाभ

किसानों को उनकी उपज का उचित लाभ दिलाने और उनकी पैदावार के मूल्य के निर्धारण के लिए साल 2004 में देश के जाने माने कृषि वैज्ञानिक एम.एस. स्वामीनाथन की अध्यक्षता में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया। किसान आयोग को यह अधिकार दिया गया कि वह अपने अनुसार किसानों की पैदावार की लागत, उसके आधार पर मुनाफा का निर्धारण करे, लेकिन कृषि उत्पादन के बाजार को तय करने का अधिकार राज्य सरकारों के पास हैं। जिसमें सभी राज्यों के पास कृषि उत्पाद विपणन समिति कानून है, जिसे एपीएमसी एक्ट भी कहते हैं। ऐसे में केन्द्र सरकार चाहकर भी इसमें कोई बड़ा बदलाव नहीं कर सकती। इसलिए राष्ट्रीय किसान आयोग की सिफारिशों को मानने के लिए राज्य बाध्य नहीं है। ऐसे में राज्यों के किसानों के लिए राज्य किसान आयोग के गठन की मांग की गई। जिसके बाद हरियाणा समेत देश के कई राज्यों में किसान आयोग का गठन हो चुका है, लेकिन उत्तर प्रदेश में अभी भी किसान आयोग का गठन नहीं हुआ है।

आयोग को संवैधानिक दर्जा भी देना ज़रूरी

किसान आयोग का देश और राज्य के दूसरे आयोगों की तरफ संवैधानिक दर्जा देने की भी मांग उठी है सिर्फ आयोग का गठन करने से नहीं काम होगा। इस बारे में जानकारी देते हुए किसान नेता और किसान आयोग के गठन की लंबे समय से मांग करने वाले भारतीय किसान आयोग के प्रवक्ता धर्मेन्द्र मल्लिक ने बताया '' किसानों को न्याय दिलाने के लिए 19 सितंबर 2006 को मध्यप्रदेश में किसान आयोग का गठन किया गया था, लेकिन इस आयोग को अधिकार नहीं मिलने के कारण 31 दिसंबर 2010 को यह आयोग बंद कर दिया गया। ऐसे में उत्तर प्रदेश में बनने वाले किसान आयोग को पूरा अधिकार देकर गठन किया जाए। ''

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उन्होंने कहा कि किसान आयोग केवल सिफारिशी संस्था होगा तो उससे ज्यादा-कुछ हासिल नहीं हो सकता। उसे शक्तियां भी देनी होंगी, अन्यथा इसकी भूमिका कार्यशाला आयोजित करने, भाषण करने-करवाने, किसानों से संवाद करने और सुझाव देने तक सीमित रह जाएगी। राज्य किसान आयोग के लक्ष्य बिल्कुल साफ होने चाहिए। सबसे पहले खेती को कैसे लाभकारी बनाया जाए और पढ़े-लिखे लोग कृषि क्षेत्र में आए उसके लिए आयोग को अपन ध्यान केंद्रित करना होगा।

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इसके साथ ही किसानों का जीवन-स्तर ऊंचा उठे, उनके परिवार को खेती व्यवस्थित जीवन जीने का आधार मिले इसके लिए खेती को विकसित करने की नीतियों, कार्यक्रमों, उपायों की दिशा में वह किसानों के साथ मिलकर और सरकारों के साथ सामंजस्य स्थापित करके काम करे।

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