पानी में आते हैं कीड़े, छान कर पीते हैं लोग 

Basant KumarBasant Kumar   13 Jun 2017 2:32 PM GMT

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पानी में आते हैं कीड़े, छान कर पीते हैं लोग गंदे कुएं से पानी भरता ग्रामीण

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

चित्रकूट। उत्तर प्रदेश के हिस्से में आने वाले बुंदेलखंड में चित्रकूट जिला आज भी सूखे से उबर नहीं पाया है। सरकारी नल हैं, लेकिन चलते नहीं। कुंआ है, मगर पानी में कीड़े आते हैं। ऐसे में लोगों के पास पानी छानकर पीने के अलावा कोई चारा नहीं है।

मऊ ब्लॉक के बरगढ़ की रहने वाली 30 वर्षीय रेखा देवी कहती हैं, “गाँव में लगा सरकारी नल ज्यादातर समय खराब ही रहता है। अगर सही भी है तो नल को दस से पन्द्रह मिनट चलाने के बाद पानी आता है। इसके अलावा गाँव में एक कुआं है। उसी के भरोसे हम लोग हैं। कुएं के पानी के साथ छोटे-छोटे कीड़े आ रहे हैं। सभी ग्रामीण हम पानी छान कर पीते हैं।“

अवध बिहारी, प्रधान, बाबुपुर पंचायत ने बताया कि यह समस्या यहां सालों से है। गाँव के लोग सूखी नदी में गड्ढा करके पानी पीते हैं। गाँव में दो-तीन हैंडपंप हैं, लेकिन किसी से भी पीने लायक पानी नहीं आता है। इसको लेकर हमने लिखित रूप से कई बार शिकायत की, लेकिन कोई भी हमारी मांग को सुनता नहीं है।

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जिले में पानी एक बहुत बड़ी समस्या है। रोजगार, पलायन, शिक्षा सहित कई समस्याओं से जूझ रहे लोग यहाँ बूंद-बूंद पानी को संभाल के रखते हैं। जिन गाँव में कुआं नहीं, वहां नल खराब होने के बाद दूसरे गाँव से लोग पानी भरकर लाते हैं।

बरगढ़ क्षेत्र आदिवासी बाहुल्य इलाका है। यहाँ 50 हज़ार से ज्यादा कोल समुदाय से संबंध रखने वाले आदिवासी रहते हैं। गढ़ के पतेरी गाँव की रहने वाली रेणु देवी बताती हैं, ‘‘सबसे बड़ी चिंता पानी की है। कई बार लोग पानी पड़ोसी एक-दूसरे से भी मांगते हैं।

हरिजनपुर गाँव के रहने वाले धनू कहते हैं, ‘‘हमारा क्षेत्र पथरीला है। जल स्तर यहां बहुत नीचे है। यहां लोगों के पास खाने के पैसे नहीं होते तो नल कैसे लगवा पाएंगे। हम सब पानी की कमी से बहुत परेशान है। लवारिस घूम रही गायें पानी के लिए हमारे घर के सामने आ जाती हैं। अपने लिए पानी का इंतजाम हो नहीं पाता तो पशुओं के लिए कैसे करें।”

बाबुपुर पंचायत के प्रधान अवध बिहारी बताते हैं, ‘‘यह समस्या यहां सालों से है। गाँव के लोग सूखी नदी में गड्ढा करके पानी पीते हैं। गाँव में दो-तीन हैंडपंप हैं, लेकिन किसी से भी पीने लायक पानी नहीं आता है। इसको लेकर हमने लिखित रूप से कई बार शिकायत की, लेकिन कोई भी हमारी मांग को सुनता नहीं है।”

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सेमरा पंचायत के प्रधान राम शिरोमणि बताते हैं, ‘‘पानी की समस्या चित्रकूट में तो है ही लेकिन इसबार लोगों को बहुत ज्यादा परेशान नहीं होना पड़ रहा है। पिछले साल तो इंसान और जानवर दोनों लोग पानी के लिए मर रहे थे। इस बार भी परेशानी है लेकिन परेशानी कम है।”

चित्रकूट में शिक्षा, आजीविका और ग्रामीण हकदारी को लेकर काम करने वाले अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान से जुड़े देश राज बताते हैं, ‘‘अभी तो कुछ मामला ठीक है। पिछले साल आए सूखे में इंसान तो पानी के लिए तड़पे ही सिर्फ बडगढ़ में ही पांच सौ से ज्यादा जानवर पानी के लिए मर गए। पक्षी पानी के बिना मर गए। अभी हालत बेहतर नहीं है। भविष्य में हालात और बदतर हो सकता है।”

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मुंबई में रहकर जल जागरूकता फ़ैलाने वाले 83 वर्षीय आबिद सुरती बताते हैं, ‘आग लगी है तो कुआं तलाशने से कुछ नहीं हासिल होने वाला है। हम लगातार पानी का दोहन कर रहे हैं। अभी जरूरी है कि जिन गाँवों में यह समस्या है, उनके पास किसी भी तरह से पानी पहुंचाया जाए और भविष्य में यह स्थिति न बने, इसको लेकर एक व्यापक अभियान चलाया जाए। लोगों को पानी बचाने को लेकर ज़्यादा से ज्यादा जागरूक किया जाए।”

नाले में खोदते हैं गड्ढा

चित्रकूट के पहाड़ी ब्लॉक के दर्जनों गाँवों में न नल है और न ही कुआं है। महिला समाख्या में काम करने वाली ललिता गुप्ता बताती हैं, ‘‘बाबूपुर गाँव में गेडुआ नाला है। स्थानीय निवासी इस नाले में रोजाना दो से चार फीट खोदते हैं। गड्डा खोदने पर कचरा नीचे जम जाता है और कुछ घंटे बाद जब पानी में मिली मिटटी नीचे जम जाती है और साफ़ पानी ऊपर जमा हो जाता है। इसी पानी का इस्तेमाल लोग पीने के लिए करते हैं।”

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