‘प्रधान फॉर डेवलपमेंट’ ग्रुप के जरिए प्रधानों को एक मंच पर ला रहे युवा
Basant Kumar 10 May 2017 12:36 PM GMT
स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क
लखनऊ। ‘प्रधान फॉर डेवलपमेंट’ व्हाट्सऐप ग्रुप के जरिए 100 गाँवों के प्रधान एक-दूसरे के संपर्क में रहते हैं। ग्रुप पर ही अपने-अपने विकास कार्य साझा करते हैं, जिससे हर प्रधान को कुछ न कुछ सीखने को मिल रहा है।इस ग्रुप के पीछे बनारस के दो युवक रवि मिश्रा और दिव्यांशु उपाध्याय की सोच है। दोनों पिछले कई साल से पूर्वांचल के गाँवों में काम कर रहे हैं।
काशी विद्यापीठ से कानून की पढ़ाई कर रहे दिव्यांशु उपाध्याय (22 वर्ष) बताते हैं, “2015 से हम लोग छात्रों की एक टीम बनाकर ग्रामीण इलाकों में बदलाव का काम कर रहे हैं। हम ‘प्रधान फॉर डेवलपमेंट’ ग्रुप के जरिए प्रधानों को एक मंच पर ला रहे हैं। यहां एक-दूसरे का विकास कार्य देखकर दूसरे प्रधान काम कर रहे हैं। इसका काफी असर दिख रहा है।”
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इस ग्रुप में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गोद लिए गाँव जयपुर, क्रांतिकारी मंगल पाण्डेय के गाँव नागवन, गृहमंत्री राजनाथ सिंह का मूल गाँव भमौरा और परमवीरचक्र पुरस्कार विजेता अब्दुल हमीद का मूल गाँव भामपुर के प्रधान भी शामिल हैं। ‘प्रधान फॉर डेवलपमेंट’ से जुड़े गोरखपुर जिले के चरगावां के रहने वाले प्रधान जगदम्बा प्रसाद दुबे बताते हैं, ‘‘ग्रुप से जुड़कर हम अपने साथियों के कामों से सीखते हैं। सौ से ज्यादा प्रधान हैं, तो कोई न कोई कुछ न कुछ अलग करता रहता है, तो उससे सीखते रहते हैं।”
ग्रुप से जुड़ने से हमें नई-नई जानकारी मिलती है। ग्रुप में लोग खबरें भी डालते हैं। अन्य साथी प्रधानों के कामों से हम सीखते भी हैं। मैं जो काम करता हूं अपने क्षेत्र में वो काम भी अन्य लोगों तक पहुंचता हूं।सुंदर लाल पटेल, प्रधान, औराई ब्लॉक, भदोई
ग्रामीण दिवस की मांग
दिव्यांशु उपाध्याय बताते हैं, ‘प्रधान फॉर डेवलपमेंट का विकास कार्यों के लिए प्रधानों को प्रोत्साहित करने के अलावा एक और मकसद है। इसके जरिए हम सरकार से मांग कर रहे हैं कि साल में एक दिन सरकार ‘ग्रामीण दिवस’ का आयोजन करे। ग्रामीण दिवस मनाने से गाँव के लोगों में उत्साह बढ़ेगा। देश की 70 फीसदी आबादी गाँवों में रहती है। देश को अगर विकसित करना है तो सत्तर प्रतिशत आबादी को नज़रअंदाज नहीं किया जा सकता है।”
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