उत्तराखंड के बाद अरुणाचल में बीजेपी को करारा झटका

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उत्तराखंड के बाद अरुणाचल में बीजेपी को करारा झटकाgaonconnection

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट से बीजेपी को करारा झटका लगा है। अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने अहम फैसला सुनाते हुए केंद्र सरकार को झटका दिया। सुप्रीम कोर्ट ने अरुणाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार बहाल करते हुए राष्ट्रपति शासन रद्द कर दिया। अरुणाचल में 26 जनवरी से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था।

ये मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा कोर्ट ने कहा का जरूरत पड़ने पर घड़ी की सुईयों को पीछे ले जाया जाएगा और वही हुआ। कोर्ट ने सात महीने पीछे जाकर राज्यपाल के फैसले को असंवैधानिक बताते हुए कांग्रेस सरकार को बहाल करने का आदेश दिया है। सर्वोच्च अदालत ने राज्य में 15 दिसंबर 2015 वाली स्थिति बरकार रखने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गर्वनर को विधानसभा बुलाने का अधिकार नहीं था। यह गैरकानूनी था। हालांकि जस्टिस जे एस खेहर, जस्टिस दीपक मिश्रा और जस्टिस मदन लोकुर ने अलग अलग फैसले सुनाए। सुप्रीम कोर्ट यह तय करेगा कि क्या राज्यपाल को यह अधिकार है कि वह स्वत संज्ञान लेकर विधानसभा का सत्र बुला सकता है या नहीं।

फिलहाल फैसले के बाद विपक्षियों को नरेंद्र मोदी पर हमले का एक और मौका मिल गया है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा, ''ये तानाशाह नरेंद्र मोदी के लिए सबक है। उम्मीद है उत्तराखंड और अरुणाचल प्रदेश से सबक लेते हुए दिल्ली की सरकार आसानी से चलने देंगे।”

वहीं कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र और संविधान की जीत बताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह से माफी मांगने की मांग की है।

क्या था पूरा मामला?

दरअसल अरुणाचल प्रदेश के स्पीकर नबम रेबिया ने सुप्रीम कोर्ट में ईटानगर हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें 9 दिसंबर को राज्यपाल जेपी राजखोआ के विधानसभा के सत्र को एक महीने पहले 16 दिसंबर को ही बुलाने का फैसले को सही ठहराया था। इसके बाद 26 जनवरी को राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया और कांग्रेस की नबम तुकी वाली सरकार परेशानी में आ गई क्योंकि 21 विधायक बागी हो गए। इससे कांग्रेस के 47 में से 26 विधायक रह गए। सुप्रीम कोर्ट ने 18 फरवरी को दूसरी सरकार बनने से रोकने की तुकी की याचिका नामंजूर कर दी। 19 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ही बागी हुए कालीखो ने 20 बागी विधायकों और 11 बीजेपी विधायकों के साथ मुख्यमंत्री की शपथ ले ली और सरकार बना ली थी।

 

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