ऊर्जा सुरक्षा की एक सकारात्मक छवि

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ऊर्जा सुरक्षा की एक सकारात्मक छविगाँव कनेक्शन

सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन से लड़ते हुए सतत विकास लक्ष्यों का एक अनिवार्य हिस्सा है जो भावी पीढिय़ों की ऊर्जा आवश्यकताओं से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करती है। 

ज्ञात हो दुनिया की कुल आबादी का 18 फीसदी (करीब 1.3 अरब लोग) हिस्सा आज भी बिजली के पहुंच से दूर हैं। इनमें से अधिकांश भारत, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, इथोपिया जैसे विकासशील

देशों में रह रहे हैं। भारत में, जहां देश के विशाल आकार और ऊर्जा की भारी कमी की वजह से ग्रामीण क्षेत्रों के लोग, अपनी बिजली आपूर्ति पर भरोसा नहीं कर सकते, स्वच्छ ऊर्जा व्यवस्था खासतौर से प्रासंगिक है। प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर रहते हुए, लोग सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, माइक्रो हाइड्रो टेक्नोलाजी का प्रयोग अथवा इन तीनों के समुच्चय में से कोई भी चुन सकते हैं।

नवीकरणीय ऊर्जा के और भी कई रूप दुनिया में उपलब्ध हैं और हम बेहतर तरीके से उनका इस्तेमाल करने में भी सक्षम हो रहे हैं। प्रणालियां अलग-थलग हो सकती हैं जिन्हें स्टैण्ड अलोन कहा जाता है अथवा मुख्य बिजली ग्रिड से उन्हें जोड़ा जा सकता है, जिन्हें ग्रिड इंटरैक्टिव कहा जाता है। ग्रिड इंटरैक्टिव प्रणाली का लाभ यह है कि उसके स्वामी अतिरिक्त उत्पादन होने की स्थिति में वस्तुत: ग्रिड को ऊर्जा बेच भी सकते हैं जिससे उनको आमदनी का नया जरिया मिल सकता है, या फिर जरूरत पडऩे पर स्वयं अधिक ऊर्जा हासिल कर सकते हैं। 

पूर्वी जर्मनी के ब्रांडेनबर्ग राज्य में स्थित फील्डहेम गाँव में ऐसा ही नज़ारा देखने को मिलता है। यह गाँव पूरी तरह से स्थानीय अक्षय स्रोत के साथ अपने 145 निवासियों के लिए बिजली और गर्मी की आपूर्ति सौर, पवन एवं बायो ऊर्जा के ज़रिए करता है। यहां बिजली आधुनिक पवन फार्मों और एक फोटोवोल्टिक सौर ऊर्जा पार्क से उत्पादित होती है। ठण्ड में गर्मी के लिए  लकड़ी के चिप्स का इस्तेमाल एक बायोगैस संयंत्र से किया जाता है। फील्डहेम गाँव के पवन फार्मों फोटोवोल्टिक सौर ऊर्जा और बायोगैस संयंत्र के लिए वित्तपोषण स्थानीय ऊर्जा उपभोक्ताओं नगर पालिका और राज्य सरकार का एक साझा प्रयास है केवल इतना ही नहीं यहां अन्य गाँवों में 30 फीसदी बेरोजगारी की तुलना में शून्य बेरोजगारी है। फील्डहेम में पर्यावरण सुरक्षा के साथ-साथ ऊर्जा सुरक्षा की एक सकारात्मक छवि उभरती है। 

उम्मीद है कि आगे आने वाले समय में भारत एवं जर्मनी में ही आपसी सहयोग के चलते हमारे देश का हर गाँव फील्डहेम की तरह ऊर्जा सुरक्षा की एक सकारात्मक छवि बनकर उभरेगा। अक्षय उर्जा की विकेंद्रित व्यवस्था का चलन पूरे भारत में बढ़ रहा है, एक लाख से अधिक लोग चावल की भूसी से बनी ऊर्जा का इस्तेमाल कर रहे हैं। लद्दाख में, आदिवासी समुदाय अपने कृषि उत्पादों की प्रोसेसिंग माइक्रो-हाइड्रो ऊर्जा से संचालित मशीनों से करते हैं। कर्नाटक में, ग्रामीण गोबर की खाद से बनी गैस पर खाना पका रहे हैं। 

उल्लेखनीय है कि भारत की ऊर्जा सुरक्षा एक प्रमुख चुनौती है बल्कि देश के संपूर्ण विकास के लिए अपरिहार्य है। गौरतलब है कि करीब 210 गीगावाट क्षमता के साथ भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा बिजली उत्पादक देश है और इसकी 66 फीसदी बिजली का उत्पादन कोयला दहन से होता है। जाहिर है कि बिजली संकट का समाधान दिन-ब-दिन महंगी होती जा रही कोयला दहन वाली प्रौद्योगिकियों पर निर्भरता बढ़ाकर संभव नहीं है। बिजली संकट के टिकाऊ और दीर्घकालिक हल के लिए हमें अक्षय ऊर्जा के स्रोतों जैसे सौर और बायोमास में निवेश बढ़ाकर वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों का एक ठोस बुनियादी ढांचा बनाने की दिशा में तत्पर होना होगा।

हाल ही में भारत और जर्मनी भी स्वच्छ ऊर्जा के प्रमुख क्षेत्रों में संबंधों को बढ़ाने पर सहमत हुए हैं। ये करार हुआ है कि जर्मनी भारत को हरित ऊर्जा गलियारे के विकास तथा सौर ऊर्जा परियोजनाओं के लिए एक-एक अरब यूरो की सहायता देगा जबकि भारत जर्मनी की कंपनियों को कारोबारी मंजूरियां दिलाने एवं झंझट से मुक्त करने के लिए फास्ट ट्रैक मंजूरी की सुविधा देगा। ऐसे में जर्मन कंपनियां का भारतीय उर्जा परियोजनाओं में सहयोग देने को तत्पर होना अवश्यम्भावी है 

पिछले दो वर्षों में भारत के चार राज्यों के साठ हजार गाँवों को अंतरराष्ट्रीय स्वयंसेवी संगठन 'क्लाइमेट ग्रुप' ने स्वच्छ सौर ऊर्जा से जोड़े हैं। पहल बिजली (बिजली के लिए हिंदी शब्द) महाराष्ट्र, पश्चिम के राज्यों में बंगाल, झारखंड और उत्तर प्रदेश स्थानीय उद्यमियों से समर्थित है और इसे  डच पोस्टकोड लॉटरी से फंड से शुरू किया गया है 

इस कार्यक्रम को सभी विकासशील देशों में आगे बढ़ाकर लाखों ऊर्जा वंचित लोगों तक पहुचाया जा सकता है। सस्ती और स्वच्छ ऊर्जा जलवायु परिवर्तन से लड़ते हुए सतत विकास लक्ष्यों का एक अनिवार्य हिस्सा है, क्लाइमेट ग्रुप एक वैश्विक संगठन है जो अमेरिका चीन और यूरोप समेत भारत में काम करता है

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व पर्यावरणविद् हैं, ये उनके अपने विचार हैं।)  

 

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