वाई दिस कोलावरी दीदी ?

मंजीत ठाकुरमंजीत ठाकुर   22 April 2016 5:30 AM GMT

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पहली नज़र में देखिए तो ममता बनर्जी बौखलाहट में दिखाई देती हैं। उनकी सरकार के कई मंत्रियों पर और तृणमूल कांग्रेस के कई नेताओं पर भ्रष्टाचार के संगीन मामले हैं। शारदा चिट फंड घोटाले से लेकर नारद स्टिंग तक और कोलकाता में फ्लाईओवर गिरने तक ममता बनर्जी को जवाब नहीं सूझ रहा है।

चुनावी मंचों से ममता बनर्जी न सिर्फ वाम मोर्चे के खिलाफ आग उगलती दिख रही हैं बल्कि वह अपने पुराने साथी बीजेपी के खिलाफ खासकर प्रधानमंत्री के खिलाफ कड़े तेवरों में बोल रही हैं। जबकि, बंगाल में ममता के खिलाफ बीजेपी बहुत ज्यादा कुछ कर पाएगी इसकी उम्मीद कम ही है। बल्कि बीजेपी को मिलने वाली संभावित बढ़त से ममता को उन सीटों पर फायदा ही होगा, जहां अल्पसंख्यक वोटों का ध्रुवीकरण वह अपने पक्ष में चाह रही हैं, और जहां उनकी पार्टी अभी भी कमजोर है। यह इलाके उत्तरी बंगाल के मुर्शिदाबाद, मालदा जैसे जिले हैं और यह कांग्रेस का गढ़ है।

तो फिर सवाल तो वाजिब है कि वाई दिस कोलावरी दीदी? यह बात भी है कि आचार संहिता उल्लंघन मामले में ममता बनर्जी की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं। असल में, इस मुश्किल में फंसने के लिए ममता बनर्जी खुद ही जिम्मेदार हैं। मैं हर बार कहता हूं कि जिस एरोगेंस या अकड़पन की वजह से पश्चिम बंगाल की जनता ने वाम मोर्चा को सत्ता से बेदखल कर दिया और सत्ता की चाबी तृणमूल कांग्रेस को सौंप दी, वही अकड़ अब तृणमूल कांग्रेस में भी दिखने लगी है।

असल में, आसनसोल की एक चुनावी रैली में ममता बनर्जी ने आसनसोल को ज़िला बनाने का वायदा कर दिया। यह सरासर आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन का मामला था। जाहिर है, चुनाव आय़ोग फौरन हरकत में आया और एक नोटिस ममता बनर्जी को थमा दी लेकिन इसके बाद सामने आय़ा ममता का वह बेपरवाह रवैया जो खलने वाला है। ममता को मिले नोटिस का जवाब पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव ने दिया था। अब आयोग ने जो नोटिस दिया था वह अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस के अध्यक्ष को था न कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को लेकिन जवाब मुख्य सचिव ने दिया। सरकारी तंत्र पर सत्ताधारी दल के शिकंजे की यह एक अलग कहानी है।

संयोग से, ममता बनर्जी को जिस दिन नोटिस मिला वह पहला बैशाख था, यानी बंगाली नए साल का पहला दिन। ममता ने वीरभूमि की रैली में बिफर कर कहा था कि मुझे नोटिस के बारे में पता चला। जो मैंने कहा, वह फिर कहूंगी। एक हजार बार कहूंगी। एक लाख बार कहूंगी। जो करना है कर लो। यदि कोई मेरे खिलाफ झूठी अफवाह फैलाएगा, तो मैं जवाब मांगूंगी।’ यह सरासर एक संवैधानिक संस्था पर प्रहार था और एक तरह से अवमानना भी। बहरहाल, चुनाव आयोग ने ममता बनर्जी की तरफ से पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव द्वारा दिए गए जवाब को खारिज कर दिया और कहा कि इस नोटिस का जवाब खुद ममता बनर्जी को देना चाहिए और इसके लिए आयोग ने आखिरी तारीख 22 अप्रैल की तय कर दी।

आयोग की चिट्ठी की भाषा कड़ी है और उसमें साफ लिखा है कि आचार संहिता उल्लंघन के मामले में नोटिस पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री को नहीं, बल्कि तृणमूल कांग्रेस की नेता ममता बनर्जी को दिया गया था, लिहाजा, इसका जवाब भी उन्हें ही देना चाहिए। आयोग ने जोर दिया है कि अगर ममता इस नोटिस का जवाब 22 अप्रैल तक देने में नाकाम रहती हैं तो उसके बाद आयोग उनकी राय सुने बिना अपना फैसला ले सकता है। इधर, आयोग ने ममता के नजदीकी माने जाने वाले और सत्ताधारी दल के पक्ष में पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाने के आरोप में कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को पहले ही हटा दिया। ममता शाय़द इस बात से भी काफी नाराज़ चल रही हैं। नारद स्टिंग के मामले में भी ममता को बचाव में कुछ सूझ नहीं रहा और ऐसे में ममता यही कह रही हैं कि अगर यह स्टिंग चुनाव की प्रक्रिया से पहले आ गया होता तो शायद वह अपने उम्मीदवार बदल लेतीं। तो क्या यह समझा जाए कि ममता बनर्जी बौखला गई हैं लेकिन चालीस दिनों का मेरे अपने बंगाल प्रवास का अनुभव यही कह रहा है कि ममता (भले ही कुछ कम सीटों के साथ) सत्ता में वापसी कर रही हैं। तो उनकी बौखलाहट किसलिए? या यह उनके स्वभाव का हिस्सा बन चुका है? लेकिन चुनावी घमासान के बीच चुनाव आयोग के साथ इस तरह आमने सामने की लड़ाई में उतरी ममता लोकतंत्र के पर्व को खटास से भर रही हैं यह तय है।

(लेखक पेशे से पत्रकार हैं। ग्रामीण मुद्दों व विस्थापन पर लिखते हैं। ये उनके निजी विचार हैं।)

 

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