लखनऊ। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने देश में दालों के सुरक्षित भंडार बनाने को अनुमति दे दी है। इसके लिए वर्तमान वित्तीय वर्ष 2015-16 में ही खरीफ फसल से पचास हजार टन और 2015-16 में आने वाली रबी की फसल से एक लाख टन दालों की सरकारी खरीद की जाएगी।
दालों की ये खरीद बाजार मूल्यों पर भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई), भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ मर्यादित (नेफेड), लघु कृषक कृषि व्यापार संघ (एसएफएसी) और निर्धारित की गई किसी अन्य एंजेसी के द्वारा किया जाएगा। लघु कृषक कृषि व्यापार संघ (एसएफएसी) खरीदारी कृषक उत्पादक संगठनों के द्वारा करेगा। खरीफ और रबी 2015-16 के लिए सरकारी खरीद न्यूनतम समर्थन मूल् (एमएसपी) से ऊपर बाजार मूल्य पर मूल्य स्थायीकरण निधि से की जाएगी। सरकार ने किसानों के हितों की रक्षा के लिए 500 करोड़ रुपये की मूल्य स्थायीकरण निधि का प्रावधान किया है।
दालों का सुरक्षित भंडार बनाने का निर्णय दालों के मूल्यों में अत्यधिक उतार-चढ़ाव पर नियंत्रण रखने के साथ-साथ खाद्य मंहगाई को रोकने के लिए किया जा रहा है। सितम्बर माह में दलों के मूल्य 200 रुपये प्रति किलो तक पहुँच गए थे जिससे केंद्र सरकार को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था।
कृषि मंत्रालय के अनुसार भारत की सालाना खपत दो करोड़ टन है और उत्पादन एक करोड़ 90 लाख टन के आस-पास। खपत ज्यादा होने के कारण भारत बड़े पैमाने पर दालों का आयत करता है।
देश में दलहन की खेती बढ़ाने के विषय पर गाँव कनेक्शन से बातचीत में देश के विख्यात खाद्य नीति विश्लेषक देविंदर शर्मा ने कहा, “बाज़ार में मूल्यों का उतार-चढ़ाव और एक विश्वसनीय बाज़ार की कमी ही किसानों को दलहन की खेती से दूर करती है। यदि राज्य सरकारें बाज़ार में आने वाले दाल के हर दाने को खरीदने के लिए आगे आती हैं, तो भारत में दलहन उत्पादन में अविश्वसनीय बढ़त देखने को मिलेगी” उन्होंने सरकार द्वारा आयत शुल्क बढ़ाने की आवश्यकता पर भी ध्यान खींचा।
कृषि मंत्रयालय के आधिकारिक पत्र के अनुसार, “इससे किसानों को दालों का उत्पादन बड़े पैमाने पर करने के लिए प्रोत्साहित करने के साथ-साथ आगामी कुछ वर्षों में देश को दालों के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने में सहायता मिलेगी।”
भारत अपनी आवश्यकता को पूरा करने के लिए 40-50 लाख टन सालाना दालों का आयत करता है।
आर्थिक मामलों पर मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) ने आवश्यकता होने पर दालों का आयात वाणिज्य मंत्रालय के सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम द्वारा करने का निर्णय भी लिया है। एमएसपी से मूल्यों के कम होने पर सुरक्षित भंडार के लिए दाल कृषि, सहकारिता एवं कृषि कल्याण विभाग द्वारा एमएसपी पर मूल्य समर्थन योजना द्वारा खरीदी जाएगी।
कृषि मंत्रालय ने दालों का उत्पादन बढ़ाने की वर्तमान नीति में कमी की पहचान की है और दालों का उत्पादन बढ़ाने में बीजों की नई किस्मों की कमी को एक महत्वपूर्ण रूकावट पाया है। मंत्रालय के अनुसार, “इसके अतिरिक्त एकीकृत पोषक प्रबंधन, एकीकृत कीट प्रबंधन एवं कृषि यंत्रीकरण पर अधिक ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। वर्ष 2016-17 से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन( एनएफएसएम) का विस्तार किए जाने का प्रयास किए जाएगें ताकि दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिए अतिरिक्त कदम उठाएं जा सकें।”
कृषि मंत्रालय ने रबी वर्ष 2015-16 और ग्रीष्म सत्र 2016-17 में दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिए किये गए उपायों का भी ब्यौरा दिया, जो इस प्रकार है:
1. रबी और ग्रीष्म दालों के लिए अतिरिक्त 440 करोड़ रूपए का आवंटन।
2. पूर्वी भारत के राज्यों आसाम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिसा, पूर्वी उत्तरप्रदेश और पश्चिम बंगाल में दालों का उत्पादन बढ़ाने के लिए बीजीआरईआई (पूर्वी भारत में हरित क्रांति) योजना के तहत वर्ष 2015-16 में रबी सत्र से दाल की खेती के लिए चावल उत्पादन क्षेत्र को सम्मिलित करना।
3. रबी 2015-16 से दालों के बीजों की नई किस्मों और नई किस्मों को प्रोत्साहित के लिए कृषि विज्ञान केंद्रों (केवीके) द्वारा दालों की नई किस्मों के प्रदर्शन के लिए विशेष कार्यक्रम।
4. रबी विपणन सत्र 2016-17 के लिए चने के न्यूनतम समर्थन मूल्य( एमएसपी) को 3175 रूपए से बढाकर 3425 रूपए और मसूर के लिए 3075 रूपए से बढ़ाकर 3325 रूपए किया गया।