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मकर संक्रांति पर मोदी जारी कर सकते हैं नयी फसल बीमा योजना

India

लखनऊ। प्रधानमंत्री मोदी लोहड़ी के मौके पर किसानों नयी फसल बीमा योजना का उपहार दे सकते हैं।

जनवरी 13 को मकर संक्रांति व पोंगल जैसे त्यौहारों पर यह योजना लागू हो सके इसके लिए प्रधानमंत्री के दफ्तर में प्रमुख सचिव पीके मिश्र खुद कृषि मंत्रालय में शनिवार अवकाश के दिन भी बैठकें करते रहे। समाचार पत्र दैनिक जागरण ने इन बैठकों कि जानकारी प्रकाशित की। 

नई फसल बीमा योजना का उद्देश्य सरकार ने काफी साफ़ रखा है कि इसे पुरानी बीमा योजनाओं के 23 फीसदी के दायरे से बहुत आगे तक ले जाया जा सके। सरकार का अनुमान है कि प्रस्तावित नई फसल बीमा योजना में 50 फीसद से अधिक किसान शामिल हो जाएंगे। इसके लिए बीमा प्रीमियम का 95 फीसद से अधिक हिस्सा केंद्र व राज्य सरकारें वहन करेंगी। 

योजना से ये होंगे लाभ

– नई बीमा योजना का सबसे अधिक लाभ बुंदेलखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, उत्तरी बिहार, सौराष्ट्र, विदर्भ, मराठवाड़ा और तटीय ओडिशा जैसे जोखिम वाले क्षेत्रों को होगा। 

– नई योजना में एक बड़ा संशोधन नुकसान के सर्वे को लेकर भी हुआ है। राजस्व विभाग की सर्वेक्षण रिपोर्ट को सभी बीमा कंपनियों को स्वीकार करना अनिवार्य होगा। 

– नई बीमा योजना में फसल नुकसान का पता लगाने को अत्याधुनिक रिमोट सेंसिंग तकनीकों का भी प्रयोग किया जाएगा, जिससे कि बीमा भुगतान की प्रक्रिया को तेज किया जा सके।

– अनाज और तिलहनी फसलों पर अधिकतम 2.5 प्रतिशत की प्रीमियम व बागवानी फसलों पर 5 प्रतिशत की प्रीमियम राशि। हालांकि कैबिनेट के भीतर कुछ लोग चाहते हैं कि प्रीमियत एक समान रूप से एक से डेढ़ प्रतिशत प्रीमियम सभी फसलों के लिए निर्धारित हो।

– मौजूदा ‘संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना’ में बीमा का औसत प्रीमियम 5.5 प्रतिशत है। कुछ सबसे ज्यादा नाज़ुक फसलों के लिए यह प्रीमियम 40 प्रतिशत तक भी है।

– यदि पूरे फसल क्षेत्र का 50 प्रतिशत हिस्सा लगभग 19 करोड़ 40 लाख हेक्टेयर भी बीमित किया जाता है और किसान के लिए बीमा की राशि 2.5 से 5 प्रतिशत तक तय की जाती है तो नाज़ुक फसलों के आधार पर केंद्र को हर साल 8,000 करोड़ रुपए का खर्च वहन करना होगा।

– लेकिन यदि सत-प्रतिशत किसानों के बीमा के लिए सभी फसलों के लिए प्रीमियम 1.5 प्रतिशत तय किया जाता है तो केंद्र को 11,000 करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ झेलना पड़ सकता है।

– पिछले वर्ष मौजूदा योजना के तहत केवल 27 प्रतिशत फसल क्षेत्र ही बीमित किया जा सका था, जिस पर 3,150 करोड़ रुपए का खर्च आया था।

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