श्रम विभाग को नहीं दिखते ये ‘छोटू’

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बहराइच। शहर में कचहरी के ठीक सामने एक होटल है, जहां 12 साल का एक लड़का फटी टीशर्ट पहने नाले के पास जूठे बर्तन साफ कर रहा था। उसके शरीर में कई जगह जले के निशान भी हैं। आने-जाने वाले लोग उसे ‘छोटू’ या फिर ‘ओ लड़के’ कहकर ही बुलाते हैं।

जिले में ऐसे सैकड़ों ‘छोटू’ हैं जो पंचर बनाते, होटल, कारखानों और दुकानों पर काम कर रहे हैं लेकिन श्रम विभाग को ये नजर नहीं आते हैं। चाइल्ड लाइऩ सेवा 1098 ने अपने सर्वे में बहराइच शहर में ही 53 बाल मज़दूर खोज निकालें हैं लेकिन श्रम विभाग को जिले में एक भी बच्चा मजदूरी करता नजर नहीं आया है।

टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस के प्रोफेसर जेरु बिलीमोरिया द्वारा संचालित चाइल्ड लाइन सेवा 1098 द्वारा कराये गए सर्वे में जिला मुख्यालय पर 53 बाल मजदूरों को काम करते हुए पाया गया है। इन बच्चों की उम्र 8 से 14 वर्ष के बीच है। चाइल्ड लाइन ने अपनी रिपोर्ट श्रम विभाग को सौंप दी है लेकिन अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।

चाइल्ड लाइन 1098 के सेंटर को-आर्डिनेटर सत्येन्द्र पाण्डेय ने गाँव कनेक्शन को बताया, ”कचहरी के सामने होटल पर काम करने वाला छोटू पास ही में हरदी गाँव का रहने वाला और पिछले चार महीने से वहां काम कर रहा हैं लेकिन उसे न एक पैसा मिला है और न ही कोई छुट्टी।” सतेंद्र आगे बताते हैं, ”छोटू ने हमसे कहा सुबह 4 बजे उठता हूं और रात 11 बजे सोता हूं। मेरे तीन भाई और हैं जो स्कूल नहीं जाते हैं। पकौडिय़ां तलते हुए ये मेरे हाथ जले हैं।”

सतेंद्र पांडेय बताते हैं, ”उनकी टीम ने पिछले 20 दिनों में ही 53 बाल मजदूरों की फोटो समेत पूरी डिटेल श्रम विभाग को दी है लेकिन श्रम विभाग कोई कार्रवाई नहीं कर रहा है।” जिले के श्रम विभाग पर सवाल उठाते हुए सतेंद्र पांडेय कहते हैं, ”बालश्रम अधिनियम 1984 के मुताबिक पुलिस इसमें सीधे कोई कार्रवाई नहीं कर सकती है। बाल श्रम आयुक्त की उपस्थिति में ही बच्चे छुड़ाए और मजदूरी कराने वालों पर मुकदमा दर्ज किया जाता है। लेकिन पिछले दो वर्षों में श्रम विभाग ने एक भी केस दर्ज नहीं किया है।”

इस मामले में जिला श्रम परिवर्तन अधिकारी एके दीक्षित से संपर्क करने पर बताया, ”प्राप्त सर्वे 1098 संस्था के हैं, चुनाव के कारण उनके सर्वे पर कोई जांच नहीं हुई। जांच हो जाने पर बच्चों को मुक्त करा कर उन सभी आरोपियों पर कार्यवाही की जाएगी।” चाइल्ड लाइन संस्था के मुताबिक कई ऐसे मामले आए हैं जब बच्चों की जिले से बाल तस्करी के सबूत मिले हैं। लेकिन जब शहर के बीचों बीच काम कर रहे ये बच्चे नहीं छुड़ाए जा सकते हैं फिर बाकी का क्या कहें।

क्या कहते हैं नियम

बालश्रम अधिनियम 1984 के अनुसार 14 वर्ष तक के बच्चों से मजदूरी कराना अपराध है। नियमों के तहत जिले में श्रम आयुक्त को बाल मजदूरी रोकने की जिम्मेदारी दी गई है। श्रम विभाग के अधिकारियों की मौजदूगी में ही न सिर्फ बच्चे मुक्त कराए जाते हैं बल्कि आरोपियों पर केस भी दर्ज किया जाता है। इसके साथ ही क्षतिपूर्ति के रूप में बाल मजदूरों को 10 से 30000 रुपये भी दिए जाते हैं।

रिपोर्टर – प्रशांत श्रीवास्तव

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