सोलह वर्ष का आकाश और कैंसर

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सोलह वर्ष का आकाश और कैंसरगाँव कनेक्शन, पड़ताल

मुम्बई। रहन-सहन और खान-पान की बदलती आदतों से देश में कैंसर के मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। सीमित अस्पतालों, कम संसाधनों व महंगे इलाज के चलते कैंसर से लड़ाई में या तो लोग अपना सब कुछ गंवा रहे हैं या मजबूरन वैकल्पिक तरीकों से इलाज खोज रहे हैं। 

साल 2010 में अपनी दसवीं की परीक्षा दे रहे आकाश (तब 16 वर्ष) को जब बुखार चढ़ा तो उसके परिजनों को लगा कि यह परीक्षाओं के दबाव की वजह से है। लेकिन जब उल्टियां और तेज़ बुखार छुट्टियों के बाद भी जारी रहा तो परिजनों की चिंता बढ़ गई।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 100 किमी दूर राज्य का सीमेंट का गढ़, बलोडा बाज़ार जि़ले के भटगाँव तालुका में रहने वाले आकाश को पहले उसके गाँव में ही डॉक्टर के पास ले जाया गया। ''लेकिन मेरे डॉक्टर ने मुझे तुरंत शहर के एक विशेषज्ञ डॉक्टर के पास रेफर कर दिया। वहां मेरा तीन-चार महीने इलाज चला लेकिन कोई सुधार नहीं हुआ," आकाश (अब 21 वर्ष) ने 'गाँव कनेक्शन' रिपोर्टर को बताया। अपनी अस्पताल की फाइल, बैंगनी रंग का चौखानों की डिज़ाइन वाला बैग लिए- जिसमें पानी की बोतल और कुछ फल रखे थे, आकाश नवी मुम्बई में स्थित टाटा मेमोरिएल हॉस्पिटल में ओपीडी के बाहर अपनी बारी आने का इंतज़ार कर रहा था।

जब आकाश का हीमोग्लोबिन 2.5 के भी नीचे घातक स्तर तक गिर गया और बहुत कमज़ोर हो गया तो उसे छत्तीसगढ़ के ही एक बड़े निजी अस्पताल में ले जाया गया, जहां पता चला कि आकाश को 'एक्यूट मेलोइड ल्यूकीमिया' है जो कि रक्त कैंसर का एक प्रकार है।

आकाश के पिता एक छोटे किसान हैं जिन पर पत्नी व पांच बच्चों के परिवार की जि़म्मेदारी है। वे निजी अस्पताल का खर्च नहीं उठा सकते थे, इसलिए उन्होंने तुरंत मुम्बई के टाटा मेमोरियल अस्पताल का रुख किया। ''सरकारी अस्पताल का खर्च मैं उठा पाउंगा यही सोचा था," पिता ने बताया।

मुंम्बई आने की मुश्किलों को याद करते हुए आकाश बताता है कि उसने पहली बार इतना बड़ा अस्पताल देखा था, जहां इतने सारे लोग हों। ''बहुत भींड़ थी, मैं तो लगभग खो ही गया था," मरीज़ों की इतनी ज्य़ादा संख्या की वजह से आकाश को 15 दिन बाद भर्ती होने के लिए बिस्तर मिल पाया।

शुरुआत में आकाश व परिवार को अस्पताल द्वारा मरीज़ व परिजनों के लिए संचालित एक गेस्टहाउस में रुकना पड़ा। लेकिन 800 रुपए प्रति दिन का किराया उनके लिए 'बहुत ज्य़ादा' था, इसलिए परिवार के अनुसार वे कैंसर मरीजों को मुफ्त रुकवाने की व्यवस्था करने वाली नाना पालकर समिति भवन में ठहर गए, वहां बस खाने का थोड़ा-बहुुत खर्च देना पड़ता था।

नए शहर की मुश्किलों और कठिन इलाज के बीच जूझते आकाश के मन में कई बार यह प्रश्न उठता कि क्या उसने इलाज करवाने का निर्णय लेकर सही किया। हर कीमोथेरेपी प्रकिया सात दिन तक चलती और हर चरण के साथ मुश्किलें बढ़ती जातीं। ''किस्मत से मेरे मां-बाप ने कभी मेरे सामने पैसों की चर्चा नहीं की। हालांकि मुझे पता था कि वो पैसे जुटाने के लिए इधर-उधर भाग रहे हैं।"

जगह न मिल पाना ही उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल से आने वाले मरीज़ों के लिए मुम्बई के टाटा मेमोरियल अस्पताल में सबसे बड़ी समस्या है। लगातार बढ़ रहे मकान के किराए के कारण मध्यम वर्गीय व निम्न वर्गीय परिवार के लिए मुम्बई में किराए पर रहना बहुत मुश्किल है। चैरिटेबल संस्थानों और धर्मशालाओं की यहां जितनी संख्या मौजूद है वो लगातार बढ़ रहे मरीजों और तीमारदारों की संख्या के आगे नाममात्र है। 

आकाश के अनुसार वे लोग बहुत खुशकिस्मत थे जो उन्हें वडाला में मरीज़ों के लिए संचालित गेस्ट हाउस में काफी कम दामों पर एक कमरा मिल गया। ''मुम्बई में हमें बहुत सी मुश्किलें झेलनी पड़ीं, कहां रहें, कितना खर्च करें, मुश्किल निर्णय थे। संक्रमण होने का खतरा भी बना रहता है तो रुकने की जगह भी इसे ध्यान में रखकर चुननी होती है। साथ ही पिता जी यहां थे तो (छत्तीसगढ़ में) घर पर कोई खेतों की देखभाल करने वाला नहीं था। मेरी बहन और बड़ा भाई भी तब पढ़ाई कर रहे थे।"

कीमोथेरेपी के चार चरणों के बाद सितम्बर 2012 में आकाश की अस्थि-मज्जा का प्रत्यारोपण किया गया। उसकी और उसकी बहन की अस्थि-मज्जा सत प्रतिशत मिल गई थी। इलाज बहुत कठिन था और महंगा भी लेकिन आकाश बताता है कि उसके चाचा ने खुले दिल से मदद की। 

छत्तीसगढ़ सरकार के संजीवनी कोष से भी आकाश को 1.5 लाख रुपए की मदद मिली थी। साथ ही प्रधानमंत्री राहत कोष से भी आकाश को कुछ वित्तीय सहायता प्राप्त हुई।

पिता सुरेश बताते हैं कि टाटा अस्पताल के डॉक्टरों ने विभिन्न एनजीओ और ट्रस्ट के माध्यम से खर्च जुटाने में उनकी बहुत सहायता की। 

''कोई ऐसा ट्रस्ट नहीं बचा जिससे हमने मदद न मांगी हो। सामान, यहां रहना और आने-जाने में लगने वाले पैसे ऐसे खर्च थे जिन्हें हम नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते थे। अब तो इधर-उधर भागते-भागते पांच साल हो चुके हैं। कभी-कभी तो आकाश मुझसे नाराज़ हो जाता था क्योंकि मैं मदद के लिए चेरिटेबल ट्रस्ट के ऑफिसों में घूमता रहता और वो अस्पताल में अकेले बैठा, नज़रअंदाज़ महसूस करता। लेकिन वो मजबूरी थी। अगर एनजीओ ने मदद न की होती तो मुझे नहीं पता मैं कैसे अपनी सीमित कमाई के साथ ये सारे खर्च उठा पाता," सुरेश ने कहा।

ट्रांसप्लांट के बाद भी मुश्किलें खत्म नहीं हुईं। आकाश को लगभग सभी इंद्रियों- आंख, त्वचा, मूत्राशय और फेफड़ों में बहुत से जानलेवा संक्रमणों का सामना करना पड़ा।

संक्रमण दर संक्रमण आकाश का शरीर कमज़ोर होता गया और पैसे भी खत्म होते गए। खर्चों को पूरा करने में परिवार की बचीखुची बचत राशि और ट्रस्ट से मिली मदद काम आई।

''हम अब तक अस्पताल में इलाज पर 35-40 लाख रुपए खर्च कर चुके हैं। इस खर्च में ही ट्रस्ट से मिली मदद भी शामिल है। अन्य खर्च इससे अलग थे। हमारा परिवार अब केवल कमाई पर निर्भर है," सुरेश ने कहा।

आकाश बताता है कि अस्पताल में उसके मरीज़ों वाले खाते में दवाई खरीदने के लिए भी रुपए नहीं बचे हैं। ''मेरी दवाईयां डॉ नवीन ने खरीदकर दी हैं," उसने कहा। डॉ नवीन खत्री टाटा अस्पताल के रक्त कैंसर विभाग के प्रमुख हैं।

इस संघर्ष के बाद भी आकाश ने आशा नहीं छोड़ी है। उसने हाल ही में डिस्टेंट एजुकेशन के ज़रिए कला विषय में स्नातक के लिए पर्चा भरा है।

''मैं बाहर नहीं जा सकता। मेरे खान-पान पर भी बहुत पाबंदियां हैं। मैं तो अब गाड़ी भी नहीं चला सकता। मेरे परिवार वाले मुझे घर से ही पढऩे के लिए प्रोत्साहित करते हैं, ताकि मैं आराम भी कर सकूं।" आकाश अपनी बात खत्म करते हुए आगे कहता है, ''जब मैं बिलकुल ठीक हो जाऊं, तो शायद एक दिन नौकरी भी कर सकूं ताकि मां-बाप को कुछ सुख दे पाऊं।"

कैंसर आखिर है क्या?

कैंसर कोई एक ही किस्म की बीमारी नहीं होती, बल्कि यह कई रूप में होता है। कैंसर शब्द ऐसे रोगों के लिए प्रयुक्त किया जाता है जिसमें असामान्य कोशिकाएं बिना किसी नियंत्रण के विभाजित होती हैं और वे अन्य ऊतकों पर आक्रमण करने में सक्षम होती हैं। ये घातक इसलिए भी होता है क्योंकि कैंसर की कोशिकाएं रक्त और लसीका प्रणाली के माध्यम से शरीर के अन्य भागों में भी फैल सकती हैं। कैंसर के 100 से अधिक प्रकार होते हैं। अधिकतर कैंसरों के नाम उस अंग या कोशिकाओं के नाम पर रखे जाते हैं जिनमें वे शुरू होते हैं- उदाहरण के लिए, बृहदान्त्र में शुरू होने वाला कैंसर पेट का कैंसर कहा जाता है 

कैंसर की उत्पत्ति

सभी प्रकार के कैंसर कोशिकाओं में शुरू होते हैं, जो शरीर की बुनियादी इकाई होती हैं। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए कोशिकाएं वृद्धि करती हैं और नियंत्रित रूप से विभाजित होती हैं। कोशिकाएं जब पुरानी या क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, तो उनके स्थान पर नई कोशिकाएं आ जाती हैं। हालांकि कभी-कभी यह व्यवस्थित प्रक्रिया गलत हो जाती है। जब किसी सेल की आनुवंशिक सामग्री (डीएनए) क्षतिग्रस्त हो जाती है या वे बदल जाती हैं, तो उससे उत्परिवर्तन (म्युटेशन) पैदा होता है, जो कि सामान्य कोशिकाओं के विकास और विभाजन को प्रभावित करता है। जब ऐसा होता है, तब कोशिकाएं मरती नहीं, और उसकी बजाए नई कोशिकाएं पैदा होती हैं, जिसकी शरीर को जरूरत नहीं होती। ये अतिरिक्त कोशिकाएं बड़े पैमाने पर ऊतक रूप ग्रहण कर सकती हैं, जो ट्यूमर कहलाता है। सभी ट्यूमर कैंसर नहीं होते है। सौम्य ट्यूमर कैंसर वाले ट्यूमर नहीं होते। अक्सर शरीर से हटाए जा सकते है और ज्यादातर मामलों में, फिर वापस नहीं आते। हालांकि घातक ट्यूमर कैंसर वाले ट्यूमर होते हैं, और इन ट्यूमर की कोशिकाएं आसपास के ऊतकों पर आक्रमण कर सकती हैं तथा शरीर के अन्य भागों में फैल सकती हैं। 

ज्यादातर दिखने वाली श्रेणियां

कार्सिनोमा-  ये ऐसा कैंसर होता है जो त्वचा या उन ऊतकों में उत्पन्न होता है, जो आंतरिक अंगों के स्तर या आवरण बनाते हैं।

सारकोमा- हड्डी, वसा, मांसपेशियों, रक्त वाहिकाओं या अन्य संयोजी ऊतक में होने वाला कैंसर।

ल्यूकेमिया- कैंसर जो कि रक्त बनाने वाले अस्थि मज्जा जैसे ऊतकों में शुरू होता है। इससे असामान्य रक्त कोशिकाओं का भारी मात्रा में उत्पादन होता है।

लिंफोमा और माएलोमा- ये कैंसर प्रतिरक्षा प्रणाली की कोशिकाओं में शुरू होता है।

केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के कैंसर- ये कैंसर मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के ऊतकों में शुरू होता है।

ये लक्षण दिखें तो ले डॉक्टरी परामर्श

कैंसर का पता आम इंसान नहीं लगा सकता, क्योंकि इसके और कई सामान्य बीमारियों के लक्षण में अंतर कम होते हैं। फिर भी तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें, यदि आपको अपने शरीर में ये लक्षण दिखें:

  • स्तन या शरीर के किसी अन्य भाग में गांठ।
  • एक नया तिल या मौजूदा तिल में परिवर्तन।
  • कोई ख़राश जो ठीक नहीं हो पाती।
  • स्वर बैठना या खाँसी ना हटना।
  • आंत्र या मूत्राशय की आदतों में परिवर्तन।
  • खाने के बाद असुविधा महसूस करना।
  • निगलने के समय कठिनाई होना।
  • वजन में बिना किसी कारण के वृद्धि या कमी।
  • असामान्य रक्तस्राव।
  • कमजोर लगना या बहुत थकावट महसूस करना।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार

महिलाओं में सबसे ज्यादा होने वाले पांच कैंसर स्तन कैंसर, कोलोरेक्टम कैंसर, फेफडों का कैंसर, पेट का कैंसर और गर्भाशय का कैंसर हैं।

पुरुषों में सबसे ज्यादा फेफड़ों का कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, कोलोरेक्टम कैंसर, पेट का कैंसर और यकृत का कैंसर हैं।

कैंसर होने के पांच सामान्य कारण शरीर के वजन का अनुपात, फल और सब्जि़यों का सेवन, व्यायाम की कमी, तम्बाकू का सेवन और शराब हैं।

 

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