महोबा। औसतन एक हेक्टेयर के तालाब से सालभर में एक लाख बीस हज़ार रुपए की मछलियां निकलती हैं। बुंदेलखंड में 50 हज़ार से ज्यादा तालाब हैं। यानी अगर इऩ तालाबों में पानी होता तो कई सौ करोड़ रुपए की मछली उत्पादन बुंदेलखंड में होता और लाखों लोगों को रोज़गार के जरिया मिलता।
बुंदेलखंड इलाके में सूखे से त्राहि-त्राहि मची तो मछली पालन का व्यवसाय लगभग बंद हो गया है। महोबा के राजापुर गाँव के देवी प्रसाद (55 वर्ष) के पास तालाब का वर्ष 2018 तक पट्टा है, लेकिन वो बेरोजगार हैं। मायूसी के साथ देवी प्रसाद बताते हैं, “जब पानी नहीं हैं तो मछली क्या होंगी, कुछ साझेदारों के साथ मिलकर पट्टा लिया था, 2018 तक पट्टा है, अब उसके पैसे अलग से भरने होंगे। दोनों बेटे ईंट पाथने बाहर चले गए हैं।” देवी प्रसाद की तरह इस गाँव के अन्य दस लोगों को पट्टे मिले थे, जिनसे 50 से ज्यादा घरों की रोजी-रोटी चलती थी अब सब बेरोजगार हो गए हैं। बुंदेलखंड में मछली पालन लगभग खत्म हो गया है, कुछ निजी तालाबों में काम हो भी रहा है, लेकिन उत्पादन गिर गया है।
मत्स्य विभाग के आंकड़े देखे तो बुंदेलखंड में मछली उत्पादन काफी घाटा हुआ है। वर्ष 2014-15 में 140521 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ वहीं 2015-16 में घटकर 137586 मीट्रिक टन ही उत्पादन हुआ है। इलाके के 6889.59 हेक्टेयर रकबा वाले 5938 तालाबों में मछली पालन होता है।
मत्स्य पालन के व्यापार पर पड़े असर के बारे में महोबा जिले के मत्स्य सहायक निदेशक सुभाष चंद्र अग्रवाल बताते हैं, “विभाग की समूची कमाई तालाबों पर निर्भर है। तीन साल से औसत से 60-70 प्रतिशत कम वर्षा हो रही है और बुंदेलखंड़ इलाके की मिट्टी अच्छी बारिश के बावजूद 7 से 8 महीने तक ही पानी रोकने में सक्षम है।”
वो आगे बताते हैं, “पानी है नहीं, तो किसी ने तालाब पट्टे पर लिया नहीं और जल नहीं तो मछलियों का सवाल ही नहीं पैदा होता। ये मान के चलिए की मत्स्य व्यापार चित्रकूट, ललितपुर और झाँसी में तो लगभग ठप है।” कम बारिश से रोजगार तो बंद हुआ ही कारोबारियों को भी काफी नुकसान हो रहा है।
वर्ष 2013 में आशिफ खां ने तालाब पट्टे पर लिया था। अच्छा उत्पादन न होने के कारण मछली पालन छोड़कर मजदूरी कर रहे हैं। आशिफ बताते हैं, “दो साल पहले पांच साल के लिए दस लाख रुपए का ठेका लिया था, जिसमें डेढ़ लाख का बीज डाला था। उस बीज से 25 हजार रुपए की ही मछलियां बिक पाई थी। घाटा होने के कारण जो रकम थी वो भी वापस नहीं कर पाए अभी तक उसके पांच लाख रुपए ही दिए है।” आशिफ बांदा जिले से 30 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में कल्हरा गाँव में रहते है और पिछले कई वर्षों से मछली पालन का व्यवसाय कर रहे है।
इस समस्या से सिर्फ आशिफ ही नहीं जूझ रहे है बल्कि बुंदेलखंड के हजारों किसान जो इस व्यवसाय से जुड़े हुए है उनको काफी नुकसान हुआ है। कल्हरा गाँव के यूसूफ बताते हैं, “मैंने दो तालाब का पट्टा पांच साल के लिए लिया था जिसमें से एक तालाब में 1.70 लाख और दूसरा तालाब 22 हजार 500 का था।इन दोनों तालाबों में 95 हजार के बीज डाले थे अभी तक इनसे 20 हजार रुपए की कमाई हो पाई। सूखा पडऩे से तालाब का पानी सूख गया और मछलियां मर गई जिससे काफी नुकसान हुआ अगर इस बार अच्छी बारिश हो भी गई तो भी मछली पालन नहीं करेंगे।”
उत्पादन घटने से मछली पालकों ने मत्स्य व्यवसाय से मुह मोड़ लिया। बांदा जिले के जिला मत्स्य अधिकारी डॉ एन. के. अग्रवाल ने बताया, “वर्ष 2015-16 में 155 हेक्टेयर का लक्ष्य दिया गया था लेकिन 55 हेक्टेयर ही करा सके। घाटे के डर से कोई भी किसान काम करने को तैयार नहीं हुआ, जिन्होंने ने पट्टे पर तालाब लिए या तो उन्होंने कोई और व्यवसाय चुन लिया या फिर किसी दूसरे शहर कमाने के लिए चले गए।”
डॉ. अग्रवाल बताते हैं, क्षेत्र में मछली पालन की संभावनाएं हैं, जिनके निजी तालाब है वह तो उत्पादन कर लेते है पर ग्रामसभा के तालाब सूखे पड़े हुए है।इसलिए हमने शासन को पत्र लिखा था कि जितने भी ग्रामसभा के तालाब है उनके पास ट्यूबवेल बनाए जाए अभी तक कोई इस प्रस्ताव की कोई मंजूरी नहीं मिली है। यहां पर नेचुरुल ब्रीडिंग होती है जो सूखा पडऩे से काफी प्रभावित हुई है। बुंदेलखंड में करीब डेढ़ से दो लाख का बीज आता है।
और अगर अच्छी बारिश होती है। तो लाखो की संख्या में मछलियां अंड़े देती है। इस बार मछली उत्पादन 70-80 फीसदी घाटे में जा रहा है। मछली पालन से जुड़े कारोबारी, मछुआरे और अधिकारी बताते हैं, बुंदेलखंड की रोहू, कतला मछली आदि बहुत प्रसिद्धि थी, और इन प्रजातियों की लखनऊ तक में काफी मांग थी।
- बुंदेलखंड में मछली पालन और उसके कारोबार को लेकर चित्रकूट, झांसी, बांदा का कार्यभार संभाल रहे मत्स्य सहायक निदेशक ने सुरेश कुमार ने गाँव कनेक्शन से फोन पर बात की।
- प्र. चित्रकूट में कितने तालाब हैं और उनकी क्या स्थिति क्या है?
- उ.वर्तमान समय में चित्रकूट जनपद में 1152 तलाब हैं, जिसमे से 95 प्रतिशत तालाबों में पानी नहीं है, कुछ तालाब तो सूख कर क्रिकेट मैदान बन गए हैं।