यहां तिल-तिल कर मर रहे हैं परिवार

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लातूर (महाराष्ट्र)। ”मेरे पति ने 30 हज़ार रुपए बैंक से और कुछ रुपए साहूकार से कर्ज़ लिए थे। लेकिन दोनों तरफ नुकसान हो गया और कर्ज़ बढ़ता जा रहा था। इसीलिए उन्होंने फांसी लगा ली।” इतना कहने के बाद ऊषा करडे अपने आंसू पोछने लगती हैं। 

ऊषा के पति महादेव करडे ने सूखे और कर्ज़ से परेशान होकर आत्महत्या कर ली थी। महाराष्ट्र में किसानों द्वारा आत्महत्या करने के बाद उनके परिवारों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है।

महाराष्ट्र के लातूर जि़ला मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर आउसा तालुका के हासेगाँववाड़ी गाँव के किसान महादेव व्यंकट करडे ने आत्महत्या कर ली थी। ”खेती कम है, तो कर्ज़ लेकर जानवर खरीदते थे, फिर कुछ दिन घर में रखने के बाद बेचते थे। सूखे में चारा भी नहीं है। इसलिए जानवर बहुत सस्ते में बेचने पड़े। इससे काफी नुकसान हो गया।” ऊषा करडे ने बताया। 

पति की मौत के बाद तीन बच्चों की जिम्मेदारी अब ऊषा करडे पर आ गई है। सूखे के कारण दूसरे खेतों में काम भी बहुत कम मिलता है। ”दो साल पहले जो दाल हुई थी अभी तक वही चला रही हूं। वो भी अब सोच-सोच कर खर्च करनी पड़ती है। पहले जितनी दाल दिन भर में खर्च होती थी अब उसकी आधी में ही काम चलाती हूं। अगर यह दाल खत्म हो गई तो और कुछ घर में है भी नहीं। सब्ज़ी महीने में एक बार ही बाज़ार से आ पाती है कभी-कभी।”

देशभर में अपराधों और आत्महत्याओं को दर्ज़ करने वाली संस्था राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार महाराष्ट्र में पिछले तीन वर्षों में करीब 3,000 किसान आत्महत्या कर चुके हैं, जबकि देशभर में वर्ष 2014 में करीब 5,500 किसानों ने मौत को गले लगा लिया। 

लातूर जिले के जि़लाधिकारी पाण्डुरंगा पोले बताते हैं, ”सरकार ने बैंकों को आदेश दे दिया है कि वो किसानों पर कर्ज़ पर लिए गए पैसे वापस करने के लिए सख्ती न करे, किसान अपनी सुविधानुसार पैसे वापस करेगा। सरकार सभी किसानों को सस्ते मूल्यों पर राशन उपलब्ध करा रही है। पुराने तालाबों की क्षमता बढ़ाई जा रही है। नहरों का निर्माण कराया जा रहा है ताकि भविष्य में पानी की समस्या से निपटा जा सके। अभी जिन गाँवों में पीने के पानी की समस्या है वहां पर टैंकर से पानी पहुंचाया जा रहा है।”

महाराष्ट्र की ज़मीन में मिट्टी से ज्य़ादा तो पत्थर हैं, ऐसी ज़मीन पर वैसे भी खेती करना बड़ी चुनौती है। ऊपर से सूखे ने तो किसानों की रीढ़ ही तोड़ रखी है। 

”इससे पहले ऐसा ही सूखा सन 1972 में पड़ा था। इस वर्ष फिर से वही हालात हैं।” इसी गाँव के किसान देवशाला अण्णराव भंगे (60 वर्ष) बताते हैं, ”अब तो हालत ऐसी हो गई है कि अब भर पेट रोटी भी तभी नसीब होती है जब दिन में कहीं मजदूरी लग जाती है।”

परभनी जि़ले से करीब 15 किमी दूर पालम ब्लॉक के बनभुवाड़ी गाँव के किसान शिवदास बापूराव घंटे (45 वर्ष) ने सोयबीन, कपास, तूर और हल्दी की फसल बोई थी। वो बताते हैं, ”सोयाबीन की फसल में प्रति एकड़ 18 हजार रु. का खर्चा आया, जिसमें करीब 60 हजार की फसल निकलनी चाहिये थी लेकिन पैदावार मात्र 10 से 5 किलो प्रति एकड़ ही हुई है।” सोयाबीन 30 रुपये प्रति किलो बिकती है। शिवदास ने करीब 17 एकड़ में सोयाबीन, कपास सात एकड़ और तूर 12 एकड़ में बोई थी। 

मराठवाड़ा में भू-जल स्तर 500 से 600 फुट पर है, जिससे किसी भी बोर से पानी नहीं निकलता। इसलिए यहां के किसानों को पूरी तरह से बारिश के पानी पर ही निर्भर रहना पड़ रहा है।

मराठवाड़ा के आठ में से चार जि़ले जालना, उस्मानाबाद, बीड़, सोलापुर सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। पूरे मराठवाड़ा में आठ जि़ले औरंगाबाद, नांदेड़, लातूर, जालना, बीड़, परभनी, उस्मानाबाद, हिंगोली आते हैं। 

देश के 91 प्रमुख जलाशयों का भंडारण

महाराष्ट्र तथा गुजरात पश्चिमी क्षेत्र में आते हैं। इस क्षेत्र में 27.07 बीसीएम (अरब घन मीटर) की कुल संग्रहण क्षमता वाले 27 जलाशय हैं। इन जलाशयों में कुल उपलब्ध, संग्रहण 16.61 बीसीएम है, जो इन जलाशयों की कुल क्षमता का 61 प्रतिशत है। पिछले वर्ष की इसी अवधि में इन जलाशयों की संग्रहण स्थिीत 81 प्रतिशत थी और इसी अवधि में इन जलाशयों में पिछले दस वर्षों का औसत संग्रहण कुल क्षमता का 83 प्रतिशत था। इस तरह पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में चालू वर्ष में संग्रहण कम है, पर पिछले दस वर्षों की इसी अवधि के दौरान रहे औसत संग्रहण से भी कम है।

वहीं अगर हम देश सभी महत्वपूर्ण जलाशयों की स्थिति पर नज़र डालें तो देश में कुल 91 महत्वपूर्ण जलाशय हैं जिनमें 08 अक्टूबर, 2015 को 94.63 बीसीएम जल का संग्रहण आंका गया था। इन 91 जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 157.799 बीसीएम है जो देश में जुटाई गई अनुमानित संग्रहण क्षमता 253.388 बीसीएम का लगभग 62 प्रतिशत है।

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