वर्षा जल प्रकृति से मिलता रहेगा लेकिन भंडारित करना होगा

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वर्षा जल प्रकृति से मिलता रहेगा लेकिन भंडारित करना होगागाँव कनेक्शन

मौसम विभाग ने भविष्यवाणी कर दी है कि इस साल वर्षा सामान्य से अधिक होगी तो सरकार चलाने वालों के चेहरे खिल गए। किसान तो हर समय आसमान की तरफ ही देख रहा है। सरकार के ख़्याली पुलाव पकने लगे कि अब महंगाई घट जाएगी, जानवरों को चारा उपलब्ध हो जाएगा, जलाशयों में पानी रहेगा और बिजली उत्पादन होता रहेगा आदि। ऐसा इसलिए कि हम पूरी तरह इन्द्रदेव पर निर्भर हैं और सोचते हैं उन्हें नियमित रूप से अपना काम करते रहना चाहिए। जब घर में आग लगेगी हम कुआं खोद लेंगे। 

मान भी लें कि इन्द्रदेव हमें बराबर पानी देते रहेंगे तो भी उस पानी को सहेज कर रखना हमारा काम है। प्रकृति ने पानी सहेज कर रखने की व्यवस्था भी कर रखी है यदि हम उस व्यवस्था को बिगाड़ें नहीं। हमें उस व्यवस्था का भरपूर उपयोग करना चहिए। प्रकृति ने जलचक्र के माध्यम से ऐसी व्यवस्था की है कि समुद्र तल से पानी भाप बनकर बादलों के रूप में आसमान में जाता है और वहां घनीभूत होकर पानी जमीन पर आता है। जमीन पर आकर पानी नदियों के माध्यम से फिर समुद्र में जाता है जहां से फिर भाप बनता है। यह चक्र चलता रहता है।

पानी जब जमीन पर वर्षा जल के रूप में गिरता है तो प्रकृति उसका एक अंश जमीन के नीचे भंडारित कर देती है भूजल के रूप में, ठीक उसी प्रकार जैसे किसान अपनी उपज का एक भाग भंडारित करके रख लेता है। जमीन के अन्दर जल भंडारण तभी होगा जब धरती पर वह धीरे-धीरे बहेगा और जमीन के नीचे प्रवेश करने के लिए उसे समय मिलेगा। इसके लिए जरूरी है जमीन पर पेड़, पौधे और घासफूस रहे। यदि धरती इनसे खाली होगी तो पानी बिना रोक-टोक के तेजी से बहकर नदियों के माध्यम से समुद्र में चला जाएगा। 

जब वर्षाजल बहकर नदी तक जा रहा होता है तो रास्ते में गड्ढे, तालाब और निचले स्थानों में इकट्ठा हो जाता है जिसे हम साल भर सिंचाई आदि के उपयोग में लाते हैं। यदि तालाबों की जलधारक क्षमता घटती चली जाएगी तो सतह पर पानी नहीं बचेगा और पूरी तरह से भूजल पर निर्भरता हो जाएगी। आजकल यही हो रहा है और भूजल का स्तर नीचे गिरता जा रहा है, कहीं-कहीं तो एक मीटर प्रतिवर्ष की गति से पानी नीचे जा रहा है इसलिए इतना ही काफी नहीं है कि पानी बरसे बल्कि यह भी जरूरी है कि उस पानी को हम भंडारित कर सके। 

इस प्रकार जल का संग्रह करना और प्रदूषण तथा अपव्यय से बचाना उतना ही जरूरी है जितना पानी का बरसना। संग्रह के लिए अनुकूल परिस्थितियां होनी चाहिए अर्थात धरती पर वनस्पति का आवरण और तालाबों आदि की जलधारक क्षमता का बने रहना। अनेक बार हम लालच या अज्ञानता के चलते प्रकृति द्वारा दी गई नेमत को बचा नहीं पाते। हमें इससे बचना होगा। यदि पर्याप्त मात्रा में जल भंडारण है तो मानसून का कम या अधिक होना मनुष्य को चिन्तित नहीं करेगा।  

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