Dec 25, 2025
लेकिन समय बदला, खानपान बदला, पर्यटन बढ़ा और अरहर की मांग कश्मीर में लगातार बढ़ने लगी।
Credit: Gaon Connection Creatives
अब विज्ञान ने एक नया रास्ता खोला है। ICRISAT और SKUAST-K ने मिलकर साबित किया है अरहर कश्मीर में उग सकती है।
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3-4 महीने में पकने वाली, ठंड सहने की क्षमता और कम समय में भी बेहतर उत्पादन, यानी हिमालय भी अब अरहर उगा सकता है।
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जहाँ सामान्य उपज 2 टन/हेक्टेयर होती है, वहीं कश्मीर में 2.5 टन/हेक्टेयर तक उत्पादन मिला। यह सिर्फ़ प्रयोग नहीं, उम्मीद है।
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जलवायु परिवर्तन के दौर में कश्मीर को मिल रहा है, फसल विविधीकरण, मिट्टी की बेहतर सेहत, किसानों के लिए नया विकल्प, प्रोटीन सुरक्षा
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जो फसल कभी बाहर से आती थी, वही अब कश्मीर की खेतों में उग सकती है। यह अरहर की कहानी नहीं, हिमालयी खेती के नए अध्याय की शुरुआत है।
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