ये बीमारियां अश्व प्रजाति के लिए हैं ज़्यादा ख़तरनाक

दिति बाजपेईदिति बाजपेई   10 July 2016 5:30 AM GMT

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लखनऊ। प्रदेश के बीस लाख परिवारों की आय अश्व प्रजाति पालन से जुड़ी हुई है। ग्लैंडर, सर्रा, पेट का दर्द जैसी कई बीमारियों से अश्व प्रजाति के पशु की मौत हो जाती है। 

इसके साथ ही उनका आर्थिक नुकसान भी होता है। ब्रुक इंडिया प्रदेश के 22 जिलों में अश्व प्रजाति के पशुओं में होने वाली बीमारियों के प्रति जागरूक कर रही है।

ब्रुक इंडिया के सीईओ मेजर जनरल एमएल शर्मा ने बताया, “इक्वाइन (अश्व प्रजाति) में ग्लैंडर, सर्रा, पेट का दर्द, टिटनेस बीमारियां होने से पशुपालक को आर्थिक नुकसान होता है। जानकारी और रखरखाव की पूरी जानकारी न होने के कारण ही इक्वाइन में यह सारी बीमारियां होती हैं।”

इक्वाइन में होने वाली बीमारियों के बारे में जागरूक करने के बारे में शर्मा बताते हैं, “ज्यादातर डॉक्टर इक्वाइन का इलाज नहीं कर पाते हैं।

इसके लिए जिन जिलों में हम काम कर रहे हैं उनमें महिलाओं के सेल्फ हेल्प ग्रुप बनाएं है, जिनके माध्यम से हम उनको जागरूक करते हैं और वह अपने स्तर से इक्वाइन का इलाज भी करते हैं। गाँवों में अश्व पालन से जुड़े इस तरह के समूहों को बनवाकर उन्हें लगातार प्रोत्साहित करने का काम ‘ब्रुक इंडिया’ कई वर्षों से कर रही है।” 19वीं पशुगणना के अनुसार, देश में 11.30 लाख घोड़े, खच्चर और गधे हैं, जिनमें उत्तर प्रदेश में दो लाख 51 हजार पशु हैं। शाहजहांपुर जिला मुख्यालय से लगभग आठ किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में ददरौल ब्लॉक के बेहटा गाँव में रहने वाली ऊषा स्वयं सहायता समूह से जुड़ी हैं और इनके साथ गाँव की दस महिलाएं और जुड़ी हैं, जिनके पास अश्व प्रजाति के पशु हैं। 

ऊषा (29 वर्ष) बताती हैं, “जब से ग्रुप बना है तब से हमारे पशु को जो भी बीमारी होती है उसके लक्षण से पहचान लेते हैं, साथ ही जिन पशुओं को जो दवा देनी होती है उसका गाँव में चार्ट भी लगा है कि कौन सी दवा कितनी देनी है। पशु के और कामों के लिए हम हर महीने 50 रुपए जमा करते हैं, इससे पूरे महीने में डेढ़ हज़ार रुपए जमा हो जाते हैं।”

 

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