यहां नवरात्र के बाद शुरू होती है दुर्गा पूजा

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यहां नवरात्र के बाद शुरू होती है दुर्गा पूजा

सुलतानपुर। सम्पूर्ण देश में विजयदशमी पर मूर्ति विसर्जन के साथ ही दुर्गा पूजा समाप्त हो जाती है लेकिन अपनी अनूठी परम्पराओं व भव्यता के लिये प्रसिद्ध सुलतानपुर जिले की ऐतिहासिक दुर्गा पूजा महोत्सव दशहरे के बाद प्रारंभ होकर पूर्णिमा तक चलता है।

ज़िले के प्रयागीपुर चौराहे पर बन रहे कामाख्या मन्दिर के प्रतिरूप को व्यवस्थित करते हुए देवेश तिवारी (40 वर्ष) ने बताया, ''मां विंध्यवासिनी पूजा समिति वर्ष 1973 से महोत्सव मनाते चली आ रही हैं। इस बार हम झारखंड के कारीगर सोहन से कोलकाता के मशहूर कामाख्या मन्दिर का स्वरूप तैयार करा रहे हैं। इस समिति की स्थापना भोलानाथ पाठक ने की थी।"

अपनी अलग विशेषता के लिये ज़िले की दुर्गा पूजा महोत्सव को कोलकाता के बाद देश में दूसरे स्थान का गौरव प्राप्त है। सुलतानपुर के पन्डालों में देश-विदेश में बनें मन्दिरों का स्वरूप दिया जाता है, जिनको देखने के लिये दूर दराज से श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता हैं।

विशाल पंडाल के पास मूर्तियों का शृंगार कर रहे मनोज अग्रहरी (35 वर्ष) ने बताया, ''33 सालो से हमारे यहां दुर्गा पूजा मनाया जा रहा है। हर बार हमारी समिति कुछ अलग करती हैं। इस बार मथुरा, वृंदावन में बन रहे चन्द्रोदय मन्दिर को पंडाल का रूप दे रहे हैं।"

अम्बेमाता पूजा समिति के अध्यक्ष शीतला प्रसाद कसौधन (65 वर्ष) ने बताया कि, ''देश ही नहीं बल्कि विदेश में कोलकाता के बाद सुलतानपुर का दुर्गा पूजा महोत्सव दूसरे नंबर पर आता है। हर साल हम माता जी की मूर्ति को अलग-अलग बनाते है। चावल, अरहर की दाल, रूद्राक्ष, सीप अदि पदार्थों से भी हम मूर्ति बना चुके हैं। इस बार हमने कौड़ी व शंख से माता जी की मूर्ति बनाई है।

महोत्सव में खास 

ज़िले में महोत्सव की शुरुवात वर्ष 1959 में हुई थी। इस वर्ष दुर्गा पूजा महोत्सव के 56 वर्ष पूरे होने जा रहे है। इस महोत्सव में माता शक्ति के सभी रूपों व देश-विदेश के भव्य मंन्दिरों की प्रतिमाओं की झलक पन्डालों में देखने को मिलती है। महोत्सव में पहली मूर्ति भीखारीलाल सोनी ने ठठेरी बाज़ार में लगाई थी। शहर में करीब 250 और जिले में करीब दो हजार मूर्तियों का   में विसर्जन होता हैं। 72 घण्टे के ऊपर चलने वाला मूर्ति विसर्जन शोभा यात्रा आकर्षण का केन्द्र होता है।

रिपोर्टर - केडी शुक्ला

 

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