यहां पर सीता की नाव रोज़ नदी के बहाव को देती है मात

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यहां पर सीता की नाव रोज़ नदी के बहाव को देती है मातgaonconnection

चित्रकूट। जिले की छोटी गंगा इन दिनों उफनाई हुई है, लेकिन सीता निषाद (18 वर्ष) बेखौफ होकर अपनी नाव दिन में कई बार इस पार से उस पार ले जाती हैं। सीता ने नाव खेने का वो पेशा चुना है, जिसे करने में आज के युवाओं का भी पसीना छूट जाता है।

चित्रकूट जिले में लोहदा गाँव से सटकर पैसुनी नदी और चिनगारी नाला बहता है। पैसुनी इन दिनों उफान पर है। मगर हाथ में भारी पतवार से वह लहरों को काट कर लोगों को नदी पार उतार रही है। पैसुनी को चित्रकूट में छोटी गंगा कहा जाता है। इस नदी का उद्गम सती अनुसुइया आश्रम के समीप अनुसुइया पहाड़ से हुआ। जो लगभग 35 किमी. की दूरी पर उत्तर की ओर तय करने के बाद यमुना में मिल जाती है। मुख्यालय से 27 किमी. दूर लोहदा गाँव की सीता निषाद ग्रामीण इलाके की किशोरियों के लिए एक मिसाल बन गई हैं।

लोहदा घाट से नाव से नदी पार कराना सीता के परिवार का दायित्व लंबे समय से रहा है। सीता का कहना है कि जहां तक उसे याद है पहले उसके बाबा फिर पिता नाव चलाते थे। सीता के पिता लखन लाल पैर और एक हाथ से निःशक्त हैं। फिर भी अपनी जवानी में लोगों को पार उतारने का काम करते रहे। उम्र ढलने के बाद पिता नाव चलाने की स्थिति में नहीं रह गये। जबकि बड़े भाई ने इस पुश्तैनी काम में हाथ बंटाने से इंकार कर दिया। 

सीता अपने परिवार मे चौथे नंबर की बेटी है। वो पिछले पांच वर्षों से वह नाव चलाती हैं, जिसमें पिछले दो साल से तो वह अकेले ही लोगों को पार लगाती है। सीता ने नाव चलाना पिता के साथ ही सीखा। नाव किनारे लगाने के बाद सीता बताती हैं, “नाव में तीन से चार मोटर साइकिले व 8-10 सवारियाँ बैठाकर नाव खेती हैं। इससे ज्यादा सवारियाँ होने पर मैं मना कर देती हूँ। पिछले वर्षों के सीजन में प्रतिदिन छह सौ से आठ सौ रुपए तक की कमाई हो जाती थी।” कुछ मायूसी के साथ वो आगे बताती हैं, “जिस घाट में पहले हम नाव चलाते थे वहां पुल बन गया है तो बाहर के लोगों का आना बंद हो गया है। बस गाँव को ही पार लगाते हैं। इससे कमाई भी कम हो गई है।” गाँव के लोगों को पार लगाने के एवज़ में सीता को साल भर में चार से पांच कुंतल अनाज मिल जाता है। नाव की कमाई अब लगभग नगण्य होने से उसके चेहरे में चिंता तो साफ झलक रही थी।

रिपोर्टर- डॉ. प्रभाकर सिंह

 

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