यूपी के गाँवों में 35 हज़ार HIV के शिकार

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यूपी के गाँवों में 35 हज़ार HIV के शिकारgaonconnection

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में एचआईवी और एड्स का खतरा शहरों के साथ-साथ गाँवों में तेजी से पैर पसार रहा है। यूपी एड्स नियंत्रण सोसायटी (यूपीएसएसीएस) के आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के गाँवों में करीब 35 हजार से भी अधिक एचआईवी प्रभावित रोगी हैं।

यूपीएसएसीएस के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में वर्ष 2008 तक 50 हज़ार से कम लोग एचआईवी संक्रमित थे, वहीं अब यह आंकड़ा बढ़कर 90,000 हो गया है। भारत के सभी राज्यों के करीब 10,000 पुरुष और महिलाओं के बीच किए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे 2016 मुताबिक भारत में शहरी क्षेत्रों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में एचआईवी संक्रमण 40 फीसदी अधिक है। 

इसमें पुरुषों में एचआईवी संक्रमण के मामले महिलाओं की तुलना 64 फीसदी ज़्यादा है। इसका सीधा अर्थ है कि यूपी के कुल 90 हजार संक्रमितों में से 35 हजार ग्रामीण इलाकों में हैं। इनमें 35 हजार में अकेले 25 हजार की संख्या पुरुषों की है।

उत्तर प्रदेश राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी की स्टेट हेड प्रीती पाठक बताती हैं, “ इन कारणों को देखते हुए प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में राज्य एड्स नियंत्रण सोसायटी (यूपीएसएसीएस) एक नया अभियान टार्गेट इंटरवेंशन (टीआई) को और आक्रमक अंदाज में शुरू करने का फैसला किया है।

इसके तहत गैर सरकारी संस्थाएं (एनजीओ) गाँवों में बढ़ रहे एचआईवी संक्रमण को रोकने के लिए लोगों के बीच जागरूकता फैला रहे हैं। प्रदेश के गाँवों में भी एचआईवी एड्स को लेकर जारूकता की बहुत कमी है।”

नाको की वर्ष 2013-14 की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में दो करोड़ से अधिक लोगों की एचआईवी काउंसिलिंग कराई गई, जिसमें से दो लाख 40 हजार 234 लोगों में एचआईवी पॉजिटिव पाया गया। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2013-14 में उत्तर प्रदेश में 11 लाख से अधिक लोगों ने एचआईवी की जांच कराई, जिसमें 12 हजार 954 लोगों में एचआईवी पॉजिटिव मिला।

यूपीएसएसीएस द्वारा प्रदेशभर में करवाई गई एचआईवी जांच में यह पता चला है कि एचआईवी संक्रमण फैलने का प्रमुख कारण लोगों का पलायन है। अक्सर देखा ये गया है कि काम के लिए बाहर जाने वाले लोग वहां से संक्रमित हो कर आते हैं और इससे एचआईवी फैलता है। यूपीएसएसीएस द्वारा प्रदेश के सभी जिला अस्पतालों के संपर्क में बनाए गए इंट्रीग्रेटेड काउंसिलिंग एंड टेस्टिंग सेंटर (आईसीटीसी) की मदद से एचआईवी मामलों को जल्दी चिंहित कर उन्हें एचआईवी मुक्त कराया जा रहा है। 

गाँवों में एड्स के प्रति जागरुकता में कमी

सचिन कुमार लखनऊ के गैर सरकारी संगठन ह्यूमाना के कार्यकर्ता हैं और इसके साथ साथ वो यूपीएसएसीएस के टार्गेट इंटरवेंशन अभियान के प्रतिनिधि भी हैं। वो पिछले पांच वर्षों से लखनऊ मंडल के कई ग्रामीण क्षेत्रों में एड्स जागरूकता अभियान चला चुके हैं। सचिन बताते हैं,’’ गाँवों में अभी भी एड्स के प्रति लोगों को बहुत कम जानकारी है। इससे बारे में लोगों को सचेत करने औऱ जो संक्रमित लोग हैं, उन्हें पूरा इलाज दिलवाने के लिए हमारी संस्था पूरे प्रदेश में काम कर रही है। टीआई के ज़रिए इस वर्ष अभी तक हमने करीब 1,500 लोगों की एचआईवी जांच करवाई है।’’

टार्गेट इंटरवेंशन प्रोग्राम के बारे यूपीएसएसीएस की संभागीय सहायिका प्रतिभा सक्सेना बताती हैं,”टार्गेट इंटरवेंशन प्रोग्राम का सहयोग प्रदेश के 84 गैर सरकारी संगठन कर रहे हैं। ये सभी संस्थाएं अपने कार्यकर्ताओं को गाँवों में भेजती हैं। इन कार्यकर्ताओं का काम संक्रमित व्यक्ति को चिन्हित कर उसे जिला अस्पताल रिफर करना होता है, जिसके बाद उसे इलाज के लिए आईसीटीसी केंद्र भेजा जाता है।”

एड्स से मौतें

एड्स से मरने वालों की संख्या पर नजर डालें तो वर्ष 2011 में एड्स से संबंधित बीमीरी से 1.48 लाख लोगों की मृत्यु हो गई जिनमें सात फीसदी बच्चे थे। वहीं अगर 2007 से 2011 के आंकड़ों पर नजर डाले इस एचआईवी संक्रमण से हर साल मरने वाले लोगों में 42 फीसदी की कमी आई है।

सीएचसी-पीएचसी में एचआईवी पीड़ित होते हैं दरकिनार

“एचआईवी एड्स की दवाएं और इसका इलाज अभी भी ग्रामीण सीएचसी औऱ पीएचसी में नहीं उपलब्ध है। अगर दूर गाँव में कभी कोई एचआईवी संक्रमित हो जाए, तो उसे इलाज के लिए जिला अस्पताल में ही सुविधा मिल सकती हैं।” एड्स जागरूकता अभियान से जुड़ीं कार्यकर्ता प्रतिभा सक्सेना बताती हैं। उन्होंने बताया कि सीएचसी-पीएचसी को एचआईवी और एड्स के मरीजों से दूर रखना भी एक समस्या है।

हर साल देश में सवा लाख लोग हो रहे संक्रमित

भारत सरकार के 2011-2012 के आंकड़ों पर नजर डालें तो हर साल तकरीबन 1.16 लाख लोग एचआईवी के संक्रमण के चपेट में आ रहे हैं जिनमें 1,09,74 लोग वयस्क हैं जबकि 19346 लोगों की उम्र 15 वर्ष से अधिक है। हालांकि यह संख्या पिछले वर्ष की अपेक्षा कम है लेकिन फिर भी जिस तरह से संक्रमण के नए मामले सामने आ रहे हैं वह चिंता का विषय है। 

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

 

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