किसान का बेटा किसान नहीं बनना चाहता, जानिए क्यों?

Devanshu Mani TiwariDevanshu Mani Tiwari   31 Jan 2018 6:45 PM GMT

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किसान का बेटा किसान नहीं बनना चाहता, जानिए क्यों?फोटो: गाँव कनेक्शन

अक्सर डॉक्टर का बेटा डॉक्टर बनना चाहता है, इंजीनियर का बेटा इंजीनियर, व्यापारी का बेटा व्यापारी, पर किसान का बेटा क्या अपने देश में किसान बनना चाहता है? शायद नहीं!

14 से लेकर 18 साल के ग्रामीण युवाओं पर किए गए एक सर्वे के मुताबिक, देश के ज़्यादातर युवा किसान नहीं बनना चाहते। एनुअल स्टेटस एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) 2017 के मुताबिक, ग्रामीण इलाक़ों के ज़्यादातर युवा पढ़ाई के साथ खेती-बाड़ी के काम में हाथ बंटाते हैं, लेकिन इनमें से सिर्फ 1.2 फीसदी युवा ही आगे चलकर किसान बनने की ख्वाहिश रखते हैं।

28 राज्यों में करीब 30 हज़ार युवाओं से बातचीत के आधार पर तैयार की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक, 14-18 साल के करीब 42 प्रतिशत छात्र पढ़ाई के साथ छोटे-मोटे काम भी करते हैं। इनमें से ज़्यादातर, यानी 79 प्रतिशत छात्र खेती और उससे जुड़े कामों में हाथ बंटाते हैं। बचपन से ही अपने परिवार वालों को खेती करते देखने और ख़ुद खेती से जुड़े होने के बाद भी इनमें से एक प्रतिशत से कुछ ही ज़्यादा छात्र खेती को अपना व्यवसाय बनाना चाहते है।

गैर सरकारी संस्था प्रथम की ओर से जारी की गई इस रिपोर्ट के मुताबिक, ग्रामीण इलाक़ों के 18 प्रतिशत युवा लड़के सेना या पुलिस में जाने की ख्वाहिश रखते हैं, 12 प्रतिशत इंजीनियर बनना चाहते हैं, जबकि 25 प्रतिशत लड़कियां टीचिंग को अपना करियर बनाना चाहती हैं, 18 प्रतिशत लड़कियां डॉक्टर या नर्स बनना चाहती हैं, जबकि 13 प्रतिशत लड़कियां और 9 प्रतिशत लड़के, कोई भी सरकारी नौकरी कर लेने को तैयार हैं।

क्यों खेती नहीं करना चाहते ग्रामीण युवा?

यूं तो ग्रामीण इलाक़ों में रहने वाले करीब 70 प्रतिशत लोग किसी ना किसी तरह खेती से जुड़े हुए हैं, लेकिन दिनों दिन मुश्किल होती परिस्थितियों की वजह से युवा खेती से दूर होते जा रहे हैं।

“खेती में कुछ बचता नहीं है, जितनी लागत लगा दो, हमेशा घाटा ही होता है। कोई फायदा नहीं होगा, तो कैसे काम चलेगा। यही कारण है कि यहां के बहुत सारे लोग या तो ठेला चलाते हैं, या फिर कोई बिज़नेस करते हैं।'' उत्तर प्रदेश के मुबारकपुर गाँव के पंकज कहते हैं।

तेरहिया गाँव के सूरज पांडेय अभी पढ़ाई कर रहे हैं। उनके घर आय का मुख्य स्रोत खेती है, पर सूरज के पिता और वो ख़ुद भी नहीं चाहते कि बेटा बड़ा होकर किसान बने।

हम कुछ ऐसा करने चाहते हैं, जो आगे हमारी मदद कर सके। अभी खेती है पर ये किसी को नहीं पता है कि आगे इससे कितना फायदा मिलेगा। खेती में आगे चल कर हमें कोई उम्मीद नहीं दिखती।
सूरज, तेहरिया गाँव

यह भी पढ़ें: किसान का दर्द : “आमदनी छोड़िए, लागत निकालना मुश्किल”

आखिर कैसे किसान बनने के बारे में सोचें युवा?

नेशनल सैंपल सर्वे (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण) की एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में एक किसान औसतन 6 हज़ार रुपए कमाता है।

किसान की औसत आमदनी: 6426 रुपए प्रति माह

  • खेती से आमदनी 3078 रुपए
  • मवेशियों से आमदनी 765 रुपए
  • मजदूरी से आमदनी 2069 रुपए
  • अन्य स्त्रोत 514 रुपए
  • किसान की कुल आमदनी प्रति माह: 6426 रुपए प्रति माह

(स्रोत: नेशनल सैंपल सर्वे)

यानी मौसम की मेहरबानी रही, फसलें रोगों मुक्त रहीं, छुट्टे-जानवरों से किसी तरह खेत बच भी गए तो भी एक किसान सारे खर्चे निकाल कर महीने में सिर्फ औसतन छह हज़ार रुपए घर लाता है, जबकि इससे कई कम मेहनत वाले कामों में इससे कई ज़्यादा कमाई हो जाती है।

गाँव कनेक्शन ने जब खेती के मुकाबले कुछ दूसरे धंधों से होने वाली आमदनी के बारे में जानकारी जुटाई, तो तस्वीर कुछ ऐसी थी-

  • चाट का ठेला: 50 से 60 हज़ार रुपए की शुरुआती लागत। 300 से 400 रुपए/दिन, यानी महीने में 10 से 12 हज़ार रुपए।
  • रिक्शा चालक: शुरुआती लागत 10 हज़ार रुपए। आमदनी- 200 से 250 रुपए/दिन, यानी महीने में 5 से 6 हज़ार रुपए।
  • ई-रिक्शा चालक: शुरुआती लागत एक लाख 20 हज़ार रुपए। 500 से 700 रुपए रुपए/दिन, यानी महीने की कमाई 15 से 20 हज़ार रुपए।
  • दिहाड़ी मजदूर: आमदनी- 200 से 250 रुपए/दिन, 30 दिन काम करने पर महीने की कमाई 6 से 7 हज़ार रुपए।
  • मोटर मैकेनिक: दुकान खरीदने और मशीनें मिलाकर शुरुआती खर्च 2 से 3 लाख रुपए। आमदनी- रोज़ चार से पांच हज़ार रुपए, यानी महीने की आमदनी एक से डेढ़ लाख रुपए।

ये सब वो काम हैं, जिनके लिए किसी ख़ास ट्रेनिंग, पढ़ाई और ज़्यादा पूंजी की ज़रुरत भी नहीं है। उसके बावजूद, ज़्यादातर लोगों की आमदनी एक आम किसान से ज़्यादा ही है।

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