नए कवियों को मंच देने के लिए बुंदेलखंड के युवा इंजीनियर ने बनाई कविशाला

Shefali SrivastavaShefali Srivastava   22 May 2017 8:06 PM GMT

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नए कवियों को मंच देने के लिए बुंदेलखंड के युवा इंजीनियर ने बनाई कविशालाहमीरपुर के किसान परिवार से आते हैं अंकुर मिश्रा

लखनऊ। अगर टैलंट की पहचान हो तो सारी मुश्किलें पीछे रह जाती हैं। कुछ ऐसी ही कहानी है अंकुर मिश्रा की जो बेहद साधारण किसान परिवार से आते हैं और आज एक आन्त्रप्रिन्योर, इंजीनियर, लेखक, कवि, ट्रैवलर और सोशल वर्कर हैं। इसी के साथ उन्होंने कविशाला नाम से वेबसाइट भी बनाई है जो नए कवियों को एक मंच प्रदान करता है जहां वे अपनी रचनाएं पोस्ट कर सकते हैं।

अंकुर मानते हैं कि टेक्नोलॉजी के इस दौर में गज़ल के लिए फिर भी लोगों में इंट्रेस्ट है लेकिन हिंदी कविता के लिए बहुत कम जगह है। ऑनलाइन ब्लॉग लिखने के लिए कई प्लेटफॉर्म है लेकिन कविता के लिए ढूंढने पर कुछ नहीं मिला, इसलिए मैंने पिछले साल मई की शुरुआत में कविशालाडॉटइन नाम से वेबसाइट बनाई। हफ्ते भर में ही करीब 40-45 लोगों का इंगेजमेंट इसमें दिखा। आज एक साल में करीब एक हजार से ज्यादा कवि इससे जुड़े हैं और सात हजार के करीब कविताएं हमारे पास आर्काइव हैं। हमारी साइट के डेली विजिटर्स भी साढ़े तीन से चार हजार के बीच हैं।

अंकुर बताते हैं कि नई पीढ़ी में हम किसी कवि को नहीं जानते। कुमार विश्वास, मुनव्वर राणा और राहत इंदौरी के बाद काफी ज्यादा जेनरेशन गैप आ गया। इस लिहाज से मुझे लगा कि नए राइटर्स को मौका देने के लिए प्लेटफॉर्म देना चाहिए। रेख्ता, कविताकोश जैसी वेबसाइट्स भी बड़े कवियों के काम को जगह देती हैं।

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आठवीं कक्षा में शुरू किया पहला स्टार्टअप

अब बात अंकुर की, अंकुर हमीरपुर जिले से गिटकरी गांव से ताल्लुक रखते हैं जो यूपी के बुंदेलखंड में आता है। एक साधारण किसान परिवार से ताल्लुक रखने वाले अंकुर का बचपन गाँव में बीता जहां बिजली की कोई व्यवस्था नहीं थी। शाम होते ही पढ़ने में दिक्कत होती। शुरुआती पढ़ाई भी प्राइमरी स्कूल में हुई जहां टीचर बेहद कठोर थे। वह बताते हैं कि उन्होंने पांचवी कक्षा में इंग्लिश पढ़ने को नसीब हुई थी। अंकुर मानते हैं कि हमारे स्कूल में पढ़ाई का स्तर काफी नीचे हो गया है। कक्षा आठ में उन्होंने यूनीक एजुकेशनल ग्रुप नाम से पहला स्टार्टअप शुरू किया। उन्होंने कई संस्थानों और स्वयंसेवकों से बोलकर वहां गणित और विज्ञान के लिए वीकली सेशन लेने की गुजारिश की। धीरे-धीरे अंकुर का ये स्टार्टअप इतना प्रसिद्ध हुआ कि 17 गाँवों के 100 स्कूलों तक इसकी पहुंच हो गई। ये सब कुछ अंकुर ने अपनी पॉकेट मनी से पॉसिबल किया।

बीटेक में चलाया पहली बार कंप्यूटर

इसके बाद अंकुर आगे की पढ़ाई के लिए गुड़गांव में रहने लगे और वहां बीटेक करना शुरू किया। अंकुर बताते हैं कि पहली बार कंप्यूटर से एनकाउंटर बीटेक में ही हुआ था। गुड़गांव में ही उन्होंने आईटी कंपनी फोरेंटेक शुरू की। साथ ही राइटिंग में इंट्रेस्ट की वजह से ‘लव इज़ स्टील फ़्लर्ट’ नाम की एक नॉवेल लिखी। इसके अलावा कविता संग्रह ‘क्षणिक कहानियों की विरासत’ और ‘नई किताब’ भी उन्होंने लिखी। जब राइटिंग का पेशा मुकम्मल हुआ तो उन्होंने कविशाला नाम से अपना एक और स्टार्टअप शुरू किया।

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ऑफलाइन मीटिंग में मिलता है नए लेखकों को मौका

वेबसाइट के अलावा कविशाला की ऑफलाइन मीटअप भी होते हैं। बीते 21 मई को इनका सातवां मीट अप था जहां कवि व लेखक नई रचनाओं को सुनाते हैं। अंकुर बताते हैं कि मीटअप में 100 के करीब लोग आते हैं। उनके द्वारा सुनाई गई कविताओं को हम वेबसाइट पर भी आर्काइव करते हैं।नए कवियों को प्रमोट करने के लिए कविशाला सालाना मैगजीन भी निकालते हैं जिसमें करीब 50 कवियों की रचनाओं को प्रकाशित किया जाता है। इनकी दूसरी मैगजीन जून तक आने की उम्मीद है।

सोशल मीडिया पर कविशाला का फेसबुक पेज व ट्विटर हैंडल भी है। कोई अपनी रचना [email protected] पर डायरेक्ट मेल भी कर सकता है।

            

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