एक युवा: कर्म से राजनेता, दिल से डॉक्टर
राजनीति के गिरते स्तर को बचाने के लिए पढ़े-लिखे युवाओं को इसमें आना बहुत जरूरी है, ऐसा मानना है डॉक्टरी के पेशे से राजनीति में आए सपा प्रवक्ता आशुतोष वर्मा का
Manish Mishra 11 March 2019 1:34 PM GMT

लखनऊ। राजनीति के गिरते स्तर को बचाने के लिए पढ़े-लिखे युवाओं को इसमें आना बहुत जरूरी है, ऐसा मानना है डॉक्टरी के पेशे से राजनीति में आए सपा प्रवक्ता आशुतोष वर्मा का।
एमबीबीएस में बैच में टाप करने के बाद सरकारी नौकरी की, वहां मन मुताबिक काम न कर पाने की कसक के चलते छोड़ दिया, उसके बाद अपना क्लीनिक चलाने वाले डॉ. आशुतोष वर्मा मानते हैं, "सिस्टम का पार्ट बनकर आप सिस्टम का इलाज कर सकते हैं, कोरी भाषणबाजी से सिस्टम को नहीं बदल सकते। मुझे लगता है कि मैं बाहर बैठ के कुछ नहीं कर सकता था।"
सपा प्रवक्ता आशुतोष वर्मा मानते हैं कि आज कल लोग विचारधारा पर कम पर्सनल चीजों पर हमला ज्यादा करते हैं। जब भी वो कभी किसी बहस का हिस्सा बनते हैं तो मुद्दों को समझ करके जाते हैं।
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"साइंस का छात्र हूं, तो पढ़ता जरूर हूं, प्रवक्ता के तौर पर डिबेट में तैयारी से जाता हूं, टीवी पर लड़ाई करने में भरोसा नहीं रखता। जबसे राजनीति में आया हूं तो मेरा ज्यादा समय किताबों में गुजर रहा है," आशुतोष वर्मा कहते हैं, "इतनी तो मैंने मेडिकल की किताबें नहीं पढ़ीं, जितनी लोहिया जी और सामजवाद के बारे में पढ़ाई की।"
एक डॉक्टर के पेशे से खुश आशुतोष वर्मा बताते हैं, "एक समारोह में अखिलेश यादव जी ने कहा था कि कहना आसान है और करना मुश्किल, जो लोग बाहर से आके राय देते हैं वो साथ आके काम करें तो बेहतर लगेगा। इसके बाद मैंने उनके साथ जुड़ने का ठान लिया और अपनी तरह से उनका साथ दे रहा हूं।"
कर्म से राजनेता और दिल से सपा प्रवक्ता डॉक्टर आशुतोष वर्मा को साइंस की किताबें और दवाइयों के नाम के साथ ही राजनीतिक बयानबाजी पर भी नजर रखनी पड़ती है।
"मेरे लिए यह चैलेंज था कि एक डॉक्टर जो चैंबर में मरीजों को देखता है और आराम की ज़िंदगी जीता है, दूसरे यह चुनाव की भीड़ में धक्का मुक्की करेगा, आशुतोष बताते हैं, "मेरे अंदर हमेशा सवाल रहता था कि हमने समाज को क्या दिया? सिस्टम ने मुझे बनाया, लेकिन मैंने पलट कर क्या दिया? इस सवालों के जवाब में राजनीति में आया हूं।"
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वह आगे कहते हैं, "आज की राजनीति दूषित हो गई है, ये डॉक्टर पालिटिक्स का इलाज करने आया है।"
अपने कॉलेज के दिनों की याद करते हुए डॉ. आशुतोष कहते हैं, "गरीब मरीज के लिए सिस्टम को जितनी दिलचस्पी लेनी चाहिए थी उतनी नहीं रहती, लेकिन अगर कोई वीआईपी आ जाए तो पूरा अमला लग जाता है। उस वीआईपी की हैसियत इतनी होती थी कि वह आराम से बड़े से बड़े अस्पताल में इलाज करा सकते थे। यही सिस्टम की खामी है।"
अपने राजनीतिक करियर के बारे में बताते हुए डॉ. आशुतोष ने कहा, "एक्सीडेंटल पॉलीटीशियन होता तो चुनाव और टिकट के लिए लड़ाई लड़ रहा होता। मैं पैदाइशी समाजवादी नहीं हूं, लेकिन कर्मशील समाजवादी बनना चाहता हूं। अभी समाजवाद को सीख रहा हूं, लेकिन जिस दिन सीख जाऊंगा तो परमानेंट वहीं दिखूंगा।"
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