जब गाड़ी की सर्विसिंग समय-समय पर कराते हैं तो शरीर की जाँच के लिए डॉक्टर के पास जाने से क्यों कतराते हैं?

कई बार हम बीमारियों के लक्षणों को नज़रअंदाज करते रहते हैं; और जब तक ध्यान देते हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। गाँव पॉडकास्ट के एक ख़ास एपिसोड में डॉ मृदुल मेहरोत्रा ने इसी बारे में विस्तार से बात की।

Manvendra SinghManvendra Singh   3 April 2024 11:13 AM GMT

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"जैसे अपनी गाड़ी सर्विस कराते हैं, चाहे स्कूटर हो, या फिर मोटर साइकिल; तो उसी तरह आप अपने शरीर की सर्विस साल में एक बार क्यों नहीं कराते? आप बीमारियों से हमेशा के लिए सदा मुक्त हो जाएँगे," डॉ मृदुल मेहरोत्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया।

वो आगे कहते हैं, "जो वेस्टर्न कंट्रीज हैं वहाँ पर एक कहावत बहुत प्रचलित है कि 'I have to see my doctor' वो लोग कोई बीमार नहीं होते हैं; लेकिन उनके यहाँ एक नियम है कि हमको अपने डॉक्टर के पास साल में एक बार ज़रूर जाना है।"

वो लोग जब जाते हैं तो उनका फैमिली डॉक्टर उनको देखता है। चेस्ट देखता है, लंग्स देखता है, हार्ट रेट देखता है। ECG करता है और कुछ टेस्ट भी करता है; जिससे डॉक्टर को पता चल जाता है की उनका मरीज़ किन चीज़ों से एक्सपोज़ हो चुका है। जैसे मधुमेह, हमारे देश में ये बीमारी बढ़ती चली जा रही है, यानी की अगर 500 लोग शादी में खड़े हैं तो उसमे 100 लोग ऐसे होंगे जिन्हे मधुमेह की बीमारी है; फिर भी वो खाना इतना भर के खाते हैं कि अगला आदमी दिख नहीं रहा होता क्योंकि उसके सामने चावल की दीवार खड़ी होती है।

कहने का मतलब ये है कि अगर हमे पता चल जाए की मधुमेह होने वाला है तो इस बीमारी के होने से पहले आप इसे रोक सकते हैं। इसके लिए एक अलग टेस्ट होता है, फास्टिंग PP टेस्ट नहीं होता जो लोग समझते हैं उसका टेस्ट होता है Glycosylated Hemoglobin Test जो एक विशेष विधि से किया जाता है।

हड्डियों की सेहत कैसे ठीक रखें?

आज कल जिसको देखो उसके घुटने ख़राब हो रहे हैं। पहले के समय में हमारे, दादा, दादियों के घुटने ख़राब नहीं होते थे, मेरे बाबा झंडी लेकर संडीले से मलिहाबाद पैदल ही आ जाया करते थे। अगर 35 साल में महिलाएँ अपनी हड्डियों की दो तीन जाँचें करा लें तो हमे पता चल जाता हैं कि इन्हें कौन सी बीमारी आगे चल कर होने वाली है। तुरंत हम एक सप्लीमेंट देंगे उस चीज़ को ठीक करेंगे और वो बीमारी से मुक़्त हो जाएँगी।

अभी हमारे पास एक केस आया था; उनका स्पाइनल कॉड का डिस्क बाहर निकला हुआ था और इसका ट्रीटमेंट बहुत महँगा है। लाखों रूपए का खर्चा है उसमे पैरालिसिस का भी ख़तरा है; लेकिन ये हुआ क्यों, क्योंकि 40 साल में इन महाशय ने कोई जाँच कराई ही नहीं। अगर ये एक बार भी अपने डॉक्टर के पास चले जाते तो हमें पता चल जाता कि इनकी हड्डियों में किस चीज़ की कमी है; उसके बाद सिर्फ दवाओं से उन कमियों को पूरा करते हैं हड्डियां मजबूत होती और डिस्क कभी बाहर निकलती ही नहीं और न ये बीमारी कभी उन्हें होती; लेकिन हमारे देश में लोग जागरूक ही नहीं हैं।

कैसे पता कर सकते हैं कि हमें कोई बीमारी होने वाली है?

जैसे गाड़ी जब ख़राब होने वाली होती है तो उसमे खड़बड़ खड़बड़ की आवाज़ आती है; वैसे ही आपका शरीर भी आपको सिग्नल देता है कि शरीर में कुछ गड़बड़ है और इसको सर्विसिंग की ज़रुरत है। लेकिन हमारे देश में दर्द के बहुत से बहाने हैं; जैसे आज मौसम बदल गया है, आज पुरवाइयाँ हवा चल रही, आज पछवाहियाँ हवा चल रही और न जाने क्या क्या लेकिन दर्द एक सिग्नल है की आपको कोई बड़ी बीमारी हो सकती है तो कृपया करके तुरंत अपने डॉक्टर को ज़रूर दिखाए।

जाँच के लिए सही जगह का चुनाव कैसे करें?

जहाँ भी जाँच कराएँ तो एक बात ज़रूर जान ले की ये नियम भी है और आपका अधिकार भी, आप बस ये कहे कि मुझे आपके लैब के डॉक्टर से बात करना है। अगर वहाँ डॉक्टर मौजूद है तभी वहाँ आप जाँच कराएँ, चाहे खून की जाँच हो, यूरिन की जाँच हो या फिर कोई और जाँच हो , अगर डॉक्टर मौजूद नहीं है तो आप खुद समझदार हैं कि आपके खून के साथ क्या होगा उसका ईश्वर ही मालिक है, रिपोर्ट नार्मल छप जाएगी आप खुश हो जाएँगे।

जहाँ डॉक्टर नहीं होता वहा सैंपल लेने से ही गलतियाँ शुरू हो जाती है; क्योंकि सैंपल लेने का एक तरीका होता है उसकी प्रोसेसिंग का भी एक तरीका होता है। किसी सैंपल को फ्रीज़ मैं रखना है, किसी सैंपल को फ्रीज़ में नहीं रखना, तो किसी सैंपल को रूम टेम्प्रेचर पर रखना है तो किसी सैंपल तो तुरंत देखना होता है। अब डॉक्टर साहब हैं नहीं शाम को आएँगे या कभी नहीं आएँगे तो एक बिना योग्यता वाला आदमी जब सैंपल देखेगा तो उसको तो सब नॉर्मल ही दिखेगा।

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