हर साल करीब 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा फैला रहा है इंसान, दुनिया की कुल आबादी के भार के बराबर है ये

इस साल पृथ्वी दिवस की थीम, 'गृह बनाम प्लास्टिक' है। प्लास्टिक पर 2024 के अंत तक एक ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र संधि के लिए दुनिया के देशों के बीच सहमति होने की उम्मीद है।

Dr Sushil DwivediDr Sushil Dwivedi   22 April 2024 8:17 AM GMT

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हर साल करीब 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा फैला रहा है इंसान, दुनिया की कुल आबादी के भार के बराबर है ये

पृथ्वी दिवस हर साल 22 अप्रैल को मनाया जाता है। यह दिन पृथ्वी और इसके पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाने और उसकी सुरक्षा के लिए कार्रवाई करने का प्रतीक है। पहला पृथ्वी दिवस मनाने की शुरुआत 22 अप्रैल 1970 को अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन ने की जिसमें लगभग दो करोड़ अमेरिकियों ने पृथ्वी दिवस के पहले आयोजन में हिस्सा लिया था। तब से हर साल पृथ्वी दिवस का आयोजन एक विशेष थीम के साथ 22 अप्रैल को होता आ रहा है।

इस वर्ष 2024 की थीम 'गृह बनाम प्लास्टिक' है; इस थीम, के साथ पृथ्वी दिवस मनाने का उद्देश्य मानव और ग्रह स्वास्थ्य के लिए प्लास्टिक प्रदूषण के नुकसान के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। पिछले वर्षों में पृथ्वी दिवस की थीम के रूप में जलवायु परिवर्तन और स्वच्छ ऊर्जा से लेकर प्रजातियों की रक्षा और वृक्षारोपण के लाभों तक कई पर्यावरणीय मुद्दों को शामिल किया जा चुका है।

इस साल की थीम, 'गृह बनाम प्लास्टिक', इसलिए और भी प्रासंगिक है क्योंकि प्लास्टिक पर 2024 के अंत तक एक ऐतिहासिक संयुक्त राष्ट्र संधि के लिए दुनिया के देशों की सहमति होने की उम्मीद है। प्लास्टिक को लेकर ब्रिटेन सहित दुनिया के 50 से अधिक देशों ने 2040 तक प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने का आह्वान किया है।

धरती पर आज इंसान प्लास्टिक से बुरी तरह घिर चुका है, वह प्लास्टिक खा रहा है, पी रहा है और पहन भी रहा है। जहाँ इसने हमें आगे बढ़ने का रास्ता दिया, पर साथ ही यह अपने साथ अनेको समस्याएँ भी साथ लाया। उन्हीं में से एक इसके प्रदूषण की समस्या है। दुनिया के सामने यह समस्या कोई नयी नहीं है, काफी समय से हम इसके बढ़ते प्रदूषण से जूझ रहे हैं। यह न केवल पर्यावरण के लिए बल्कि हमारे स्वास्थ्य के लिए भी हानिकारक है। आज हम हर साल करीब 30 करोड़ टन प्लास्टिक कचरा फैला रहे हैं, जो कि सम्पूर्ण मानव जाति के भार के बराबर है। आज दुनिया भर के लिए अब प्लास्टिक एक बड़ा सिरदर्द बन चुका है।

क्या है माइक्रोप्लास्टिक

समुद्र की गहराई से लेकर पहाड़ की चोटियों तक इंसान ने प्लास्टिक के छोटे-छोटे टुकड़ों से ग्रह को पाट दिया है। अगर आप अपने आसपास नज़र दिखाएंगे तो आपको प्लास्टिक की कई सारी चीज़ें नज़र आएँगी। ऐसी ही चीज़ों के बारीक टुकड़े जब बहुत छोटे आकार में टूट जाते हैं तो उन्हें माइक्रोप्लास्टिक कहा जाता है।

आमतौर पर पाँच मिलीमीटर से छोटे टुकड़े माइक्रो प्लास्टिक कहलाते हैं। कुछ टुकड़े इससे भी छोटे होते हैं, जिन्हें नैनो स्केल में ही मापा जा सकता है। उन्हें नैनो प्लास्टिक कहा जाता है। ये प्लास्टिक के बारीक-महीन कण, हर उस चीज़ में पहुँच रहे हैं जो हम खाते हैं और जिसमें हम साँस लेते हैं। ऐसा अनुमान है कि इस पृथ्वी पर मौजूद हर एक व्यक्ति औसतन हर साल 50 हज़ार से ज़्यादा प्लास्टिक कणों का उपभोग करता है, और अगर इसमें साँसों के ज़रिए हमारे भीतर पहुँचने वाले कणों को भी शामिल कर लिया जाए, तो इनकी संख्या और भी बढ़ जाती है।

जब कभी हम यात्रा कर रहे हों या ऐसी जगह हो, जहाँ साफ़ पानी न मिल पाए, वहाँ हमारी कोशिश रहती है कि बोतलबंद पानी मिल जाए। हम यह मानते हैं कि इस पानी में गंदगी नहीं होंगी, लेकिन इस पानी के अंदर माइक्रोप्लास्टिक यानी प्लास्टिक के असंख्य महीन कण हो सकते हैं। आज धरती पर रहने वाला हर एक व्यक्ति कम से कम 5 ग्राम यानी एक क्रेडिट या डेबिट कार्ड के भार जितना प्लास्टिक पानी से, खाने से या माइक्रोप्लास्टिक युक्त हवा से अपने शरीर में ले रहा है।


पीने का साफ़ पानी हम सभी की बुनियादी ज़रूरतों में से एक है। आईआईटी पटना के एक शोध में बारिश के पानी में भी माइक्रोप्लास्टिक कण मिले थे। इसी तरह एक अन्य शोध में पाया गया कि भारत में ताज़ा पानी की नदियों और झीलों तक में माइक्रोप्लास्टिक मिल रहा है। इनमें फ़ाइबर, छोटे टुकड़े और फोम शामिल हैं। इस शोध के मुताबिक, फैक्ट्रियों से निकलने वाले गंदे पानी और शहरी इलाकों से निकलने वाले प्लास्टिक वेस्ट जैसे कई कारणों से ये हालात बने हैं। माइक्रो प्लास्टिक पानी के अलावा यह उस ज़मीन में भी बहुतायत में पाए जाने लगे हैं, जहाँ खेती होती है।

अमेरिका में साल 2022 में एक पड़ताल की गई थी। इसके मुताबिक़, सीवर की जिस गाद को वहाँ फसलों के लिए खाद के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, उसमें माइक्रोप्लास्टिक होने के कारण 80 हज़ार वर्ग किलोमीटर खेती योग्य ज़मीन दूषित हो गई थी। इस गाद में माइक्रोप्लास्टिक्स के अलावा, कुछ ऐसे केमिकल भी थे, जो कभी विघटित नहीं होते यानी उसी अवस्था में बने रहते हैं।

वहीं, ब्रिटेन में कार्डिफ़ यूनिवर्सिटी ने पाया था कि यूरोप में हर साल खेती वाली ज़मीन में खरबों माइक्रोप्लास्टिक कण मिल रहे हैं जो हर निवाले के साथ लोगों के शरीर के अंदर पहुँच रहे हैं। कुछ पौधे ऐसे हैं, जिनमें बाक़ियों की तुलना में माइक्रोप्लास्टिक ज़्यादा होता है। दरअसल, कुछ शोध बताते हैं कि जड़ों वाली सब्ज़ियों में माइक्रोप्लास्टिक ज़्यादा पाए जाते हैं। यानी पत्ते वाली सब्जियों में कम माइक्रोप्लास्टिक होंगे, जबकि मूली और गाजर जैसी सब्ज़ियों में ज्यादा देखे गए हैं।

माइक्रोप्लास्टिक के संभावित खतरे

वैज्ञानिकों ने हाल ही में शरीर में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी की पहचान की है, संभावना है कि इंसान वर्षों से प्लास्टिक के छोटे कण को खा रहे हैं, पी रहे हैं या साँस के जरिए शरीर में ले रहे हैं।

हालांकि मनुष्यों पर स्वास्थ्य अध्ययन अभी तक विकसित नहीं हुए हैं, कुछ जानवरों में विषाक्तता चिंताओं को पुष्ट करती है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, रिवरसाइड द्वारा किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि प्लास्टिक में मौजूद हानिकारक केमिकल्स अगली दो पीढ़ियों में मेटाबॉलिक डिजीज का कारण बन सकते हैं।

माइक्रोप्लास्टिक के ख़तरों को लेकर अभी सीमित शोध सामने आए हैं। कुछ शोध ऐसे भी हैं कि ये हमारे एंडोक्राइन ग्रंथियों (हार्मोन पैदा करने वाली ग्रंथियों) के काम में समस्या पैदा करती हैं। हो सकता है भविष्य में पता चले कि माइक्रोप्लास्टिक बहुत गंभीर नुक़सान कर सकते हैं, इसलिए अभी से सजग रहने की ज़रूरत है। हर दिन ऐसे नए अध्ययन सामने आ रहे हैं जिनमें इनके इंसानों और अन्य जीवों के स्वास्थ्य पर पड़ते दुष्प्रभाव उजागर हो रहे हैं।

संयुक्त राष्ट्र ने कहा है कि इस समस्या से निपटने के लिए उपलब्ध विज्ञान और समाधानों के मद्देनजर, देशों की सरकारों, कंपनियों और अन्य हितधारकों से, इस संकट को सुलझाने के लिए कार्रवाई की गति और दायरा बढ़ाने होंगे। आज प्लास्टिक का इस्तेमाल कम करने या प्लास्टिक के विकल्प के रूप में अन्य प्रकृति हितैषी वस्तुओं का इस्तेमाल करने की जरूरत है। इस पृथ्वी दिवस पर पृथ्वी और प्लास्टिक के 100 साल पुराने रिश्ते को अलविदा कहने के बारे में गंभीरता से विचार करके कदम उठाना होगा।

कैसे मनाएँ विश्व पृथ्वी दिवस

पृथ्वी दिवस पर आप छोटे छोटे काम करके पृथ्वी को बचाने में जैसे महत्पूर्ण योगदान दे सकते हैं। प्लास्टिक का उपयोग कम करें, कपड़े के थैले का उपयोग करें और दोबारा इस्तेमाल में आने वाली पानी की बोतल लें। ऊर्जा को बचाने का काम करें। इसके लिए ज़रुरी है बत्तियां बंद करें और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों को अनप्लग करें, जब आप उनका उपयोग नहीं कर रहे हों। पानी जीवन के लिए बहुत ज़रुरी हैं, इसलिए पानी बचाएं इसके लिए आप कम समय तक शॉवर लें और नल को बंद कर दें। साथ ही न सिर्फ नए पौधे लगाएँ और पेड़ों की रक्षा करें बल्कि तीज त्योहार, जन्मदिन, शादी की वर्षगांठ और दूसरे महत्वपूर्ण अवसरों पर हरे भरे पौधे लोगों को भेंट मैं दें।

पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का उपयोग करें। पर्यावरणीय संगठनों का समर्थन करें। भौतिकवादी जीवन छोड़ें, खाने पीने और अन्य चीजों की बर्बादी रोकें, जितनी आवश्यकता हो उतने ही चीजें उपयोग के लिए खरीदें चीजों को दोबारा उपयोग करें, घर पर जितना हो सके एसी के उपयोग से बचें और अगर उपयोग ही करें तो तापमान 24 डिग्री सेंटीग्रेड रखें, पृथ्वी हमारा एकमात्र घर है। इसे बचाने के लिए हम सबको मिलकर प्रयास करना जरूरी है।

(लेखक विज्ञान और पर्यावरण मामलों के जानकार हैं और वर्तमान में भारत सरकार के शैक्षिक मिशन के तहत भारतीय राजदूतावास केन्द्रीय विद्यालय काठमांडू में कार्यरत हैं।)

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