गन्ने के घाटे से उबरने के लिए तराई के किसानों ने शुरु की केले की खेती, मंडी न होने से परेशान

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गन्ने के घाटे से उबरने के लिए तराई के किसानों ने शुरु की केले की खेती, मंडी न होने से परेशानप्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत बीमा भी नहीं होता है।

आलोक मिश्र, कम्यूनिटी रिपोर्टर

लखीमपुर-खीरी। साल 2009 के आस-पास जब खीरी के ईसानगर ब्लॉक में केले की खेती की आमद हुई, तब चीनी मिल होने के कारण ये क्षेत्र गन्ने का गढ़ हुआ करता था, जहां किसान गन्ने के घाटे से त्रस्त आ गए थे। केले की फसल कुछ सालों तक मुनाफा तो लाई लेकिन अब इस खेती से भी लागत नहीं निकल पा रही है।

क्षेत्र में आज 1000 एकड़ से ज्यादा में केले की खेती होने के बावजूद कोई मण्डी नहीं है। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत भी अभी इस फसल का बीमा नहीं किया जा सकता। लगातार बढ़ती लागत ने अब क्षेत्र के केला किसानों की कमर तोड़नी शुरू कर दी है।

हम लोग बहुत मेहनत करते हैं, नयी तरह की खेती करने की बहुत इच्छा भी है, लेकिन मंडी ना होना, सही जानकारी न मिलनी हमारी सामस्या है, आज भी ग्रीन कार्ड, धान और गेहूं का बनता है, केले में बीमा का फायदा नहीं मिलता।
राजकिशोर वर्मा, किसान

यूपी में तेजी से बढ़ रहा है केले का रकबा।

लगभग सात साल पहले जब केले की खेती इस क्षेत्र में शुरू हुई थी तो किसानों से इस नकदी फसल को हांथोंहाथ इसलिए लिया क्योंकि उन्हें लगा था कि गन्ने की फसल के बढ़ते बकाये और मिलों की मनमानी से फुर्सत मिलेगी। लेकिन अब किसानों के कहना है कि उनकी लागत भी नहीं निकल पा रही है। अनुमान के अनुसार क्षेत्र में एक कुंतल केले को उगाने की लागत आती है 450 से 500 रुपए, जबकि प्रति कुंतल केले का बाज़ार में दाम मिलता है 300 रुपए तक।

खीरी क्षेत्र का ये ब्लॉक ही नहीं बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में पिछले एक दशक में हज़ारों किसानों ने केले की फसल को नकदी फसल के तौर पर अपनाया। लेकिन जितनी तेजी से किसान ने केला की खेती शुरू की, सरकारें उतनी तेजी से किसानों को ढांचागत व्यवस्था मुहैया नहीं करा पाईं।

प्रधानमंत्री जी कहते हैं कि फसल बीमा होगा पर केले की फसल के बीमा के लिए बैंक तो मानती नहीं है।
राजकुमार तिवारी, लखपेड़ा गाँव के किसान

सही जानकारी पहुंचने का कोई ढांचा नहीं और किसान भी अंधाधुंत रासायनिक उर्वरक और दवाएं झोंककर अपनी लागत बढ़ाते जा रहे हैं। फत्तेपुर गाँव के किसान हरि सिंह ने कहते हुए अपनी बात खत्म की कि अगर सरकार कोशिश करके मंडी खुलवा दे, तो शायद कुछ सुधार हो जाएगा।

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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