‘काउंसलिंग से पहले जमीनी हकीकत समझें’

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‘काउंसलिंग से पहले जमीनी हकीकत समझें’कन्नौज के विनोद दीक्षित अस्पताल में आशा ज्योति केंद्र में चल रहे प्रशिक्षण में यूनीसेफ से आए ट्रेनर रवेन्द्र सिंह जादौन।

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

कन्नौज। पीड़ित बच्चों और महिलाओं की काउंसलिंग करने से पहले जमीनी हकीकत समझें। बातचीत बहुत ही सरल और प्यारभरी भाषा में होनी चाहिए, जिससे पीड़ित को यह लगे कि सभी लोग उनके लिए ही बने हैं। यह कहना है यूनीसेफ से आए ट्रेनर रवेन्द्र सिंह जादौन का।

उन्होंने उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में विनोद दीक्षित अस्पताल में चल रहे आशा ज्योति केंद्र में प्रशिक्षण के अंतिम और तीसरे दिन उन्होंने कहा कि जो भी काउंसलर हैं उन पर बड़ी जिम्मेदारी है।

उन्होंने सभागार में मौजूद लोगों को बताया कि लोग शीशा कैसे देखते हैं। शीशे की तरह बच्चे भी होते हैं, जिनसे कुछ भी कहो वह बोलते नहीं हैं। उन्होंने आगे बताया कि जब कोई अफसर से बात होती है तो रिस्पेक्ट के साथ बातचीत शुरू होती है। इसी तरह अगर काउंसलर कोई पीड़िता या बच्चे का स्वागत कर, अच्छे से बातचीत कर आत्मीयता से घुल जाता है तो उसे काफी आराम मिलता है। उसकी मदद करने में भी सफलता मिलती है।

ट्रेनर अभिषेक दीक्षित ने बताया, ‘‘आशा ज्योति केंद्र पर पांच दिन तक पीड़िता को रखा जाता है। बाद में संचालन समिति की अनुमति से उसे अल्पाग्रह में ठहराया जा सकता है।” प्रभारी जिला प्रोबेशन अधिकारी पवन कुमार सिंह ने कहा, ‘‘सरकारी तंत्र और एनजीओ से जुड़े लोगों की यह जिम्मेदारी है कि वह रानी लक्ष्मी बाई आशा ज्योति केंद्र का सही ढंग से प्रचार-प्रसार करें।”

This article has been made possible because of financial support from Independent and Public-Spirited Media Foundation (www.ipsmf.org).

     

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