आखिर कब रुकेगा बंदरों का आंतक?
गाँव कनेक्शन 11 April 2017 2:18 PM GMT
दिति बाजपेई (स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क)
लखनऊ। अतुल पांडेय (38 वर्ष) पिछले कई वर्षों से मक्के की बेहतर पैदावार नहीं ले पा रहे हैं, क्योंकि बंदरों का झुंड उनकी फसलों को बर्बाद कर देता है।
यह समस्या अतुल पांडेय की ही नहीं बल्कि सीतापुर, हरदोई, कानपुर, गाजियाबाद समेत प्रदेश के कई जिलों के किसानों की है। बरेली जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी. दूर भोजीपुरा ब्लॉक में गंगोरा पिपोरा गाँव है। इस गाँव के अधिकतर किसानों ने खेती करना ही छोड़ दिया है। अतुल बताते हैं, “जिन किसानों के पास सुरक्षा के इंतजाम है वो किसान थोड़ा बहुत खेती कर पा रहे है नहीं तो ज्यादातर किसानों ने खेती करना ही छोड़ दिया है।”
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बंदरों का कहर ग्रामीण क्षेत्रों में ही नहीं बल्कि शहरी क्षेत्रों में भी बढ़ रहा है। नगर निगम और वन विभाग इस समस्या से निजात दिलाने के लिए नकाम साबित हो रहे है। लखनऊ के नगर निगम के मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी ने बताया, “इसमें नगर निगम का कोई भूमिका नहीं है इस समस्या को वन विभाग देखता है।” कृषि मंत्रालय के अनुसार उत्तर भारत में पिछले तीन वर्षों से नीलगाय, जंगली सूकर, बंदर व अन्य पशुओं के बढ़ते आतंक से 15,000 से अधिक किसानों को नुकसान हुआ है।
वन विभाग अभियान चलाया जाएगा और बंदरों के आंतक को रोकने के लिए रेस्क्यू सेंटर बनाने की योजना बनाई जा रही है। इसके लिए शासन को बजट देंगे ताकि जिन बंदरों को पकड़ा जाए। उनको इधर-उधर छोड़ने की बजाय सेंटर में रखें।श्रद्धा यादव, डीएफओ , लखनऊ
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश को मिलाकर करीब 4.5 करोड़ हेक्टेयर कृषि योग्य ज़मीन है, जिसमें दो करोड़ हेक्टेयर से अधिक ज़मीन पर छुट्टा पशुओं का प्रकोप है। हरदोई जिले के बेनीगंज ब्लॉक के सिंकदरपुर गाँव में रहने वाले हर्षित कुमार (33 वर्ष) किसान है। हर्षित बताते हैं, “दिन भर और रातभर खेत में बैठने के बाद भी बंदर फसलों का नुकसान कर देते है। कई बार शिकायत की है न नगर निगम सुनाता है और न ही वन विभाग सुनता है। इस समस्या से बहुत से किसान परेशान है।”
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