लेमनग्रास की खेती का पूरा गणित इस युवा किसान से समझिए

लेमनग्रास से निकलने वाले तेल की बाजार में बहुत मांग है। लेमन ग्रास से निकले तेल को कॉस्मेटिक्स, साबुन और तेल और दवा बनाने वाली कंपनियां खरीद लेती हैं। यही वजह है कि किसानों का इस फसल की ओर रूझान भी बढ़ा है।

Sachin Dhar DubeySachin Dhar Dubey   2 Nov 2019 9:59 AM GMT

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हरौनी, सरोजनीनगर (लखनऊ)। खेती से आमदनी बढ़ाने के लिए पारंपरिक खेती से इतर किसान अब नए प्रयोगों की तरफ बढ़ रहे हैं। इन्हीं में से एक प्रयोग है लेमनग्रास की खेती। किसानों के लिए ये फायदे का खेती बनती जा रही है। लेमनग्रास की खूबी ये है कि इसे सूखा प्रभावित इलाकों में भी लगाया जा सकता है।

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 40 किलोमीटर दूर हरौनी गाँव के समीर चड्ढा भी लेमन ग्रास की खेती करते हैं। लेमनग्रास की खेती की शुरूआत के बारे में समीर बताते हैं, "मैंने जिस जगह पर लेमनग्रास की खेती शुरू की है। वहां पहले केवल गेंहूं धान की पारंपरिक खेती ही होती थी। लेकिन आज यहां मैं मेंथा, लेमन ग्रास और गेंदे की खेती कर रहा हूं। इससे आसपास के लोगों को रोजगार भी मिल रहा है।"


इस पौधे से निकलने वाले तेल की बाजार में बहुत मांग है। लेमन ग्रास से निकले तेल को कॉस्मेटिक्स, साबुन और तेल और दवा बनाने वाली कंपनियां हाथों हाथ ले रही हैं। यही वजह है कि किसानों की इस फसल की ओर रूझान भी बढ़ा है।

समीर आगे कहते हैं, "लेमनग्रास की किसानी ज्यादा मंहगी नहीं हैं। इसका एक पौधा केवल 75 पैसे में मिलता है। इसके अलावा अन्य फसलों की अपेक्षा इसमें बीमारियां भी कम लगती हैं। कीट लगने की संभावना भी ना के बराबर है, इसलिए इस फसल में कीटनाशक छिड़कने की जरूरत ही नहीं पड़ती। जब कीटनाशक का उपयोग ही नहीं होता है तो किसान अतिरिक्त खर्चे के बोझ से बच जाता है। पत्तियां कड़वी होने की वजह से जानवर भी इसे नहीं खाते हैं तो इसके रख रखाव पर भी ज्यादा ध्यान नहीं देना पड़ता है।"

भारत सालाना करीब 700 टन नींबू घास के तेल का उत्पादन करता है, जिसकी एक बड़ी मात्रा निर्यात की जाती है। भारत का लेमनग्रास तेल किट्रल की उच्च गुणवत्ता के चलते हमेशा मांग में रहता है। 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी करने के वादे को पूरा करने की कवायद में जुटी भारत सरकार ने एरोमा मिशन के तहत जिन औषधीय और सगंध पौधों की खेती का रकबा बढ़ा रही है उसमें एक लेमनग्रास भी है।

सभी पौधों की तरह लेमनग्रास के पौधों को लगाने की भी एक विधि होती हैं। पौधों में पत्तियां ज्यादा से ज्यादा हो इसके लिए इसको एक-एक फीट के दूरी पर लगाया जाता है। समीर के मुताबिक पौधा लगाने के बाद यह लगभग छह महीने में तैयार हो जाता है। उसके बाद हर 70 से 80 दिनों पर इसकी कटाई कर सकते हैं। साल भर में इसकी पांच से छह कटाई संभव है। यही कारण है कि एक बार पौधा लगाने के बाद किसान को लगभग सात साल तक दोबारा पौधा लगाने से छुट्टी मिल जाती है। इस पौधे को बारहमासी मुनाफा देने वाले पौधे की भी संज्ञा दी जाती है।


एक एकड़ में लगाए गए लेमनग्रास के पौधे से एक कटाई में तकरीबन पांच टन तक पत्तियां निकलती हैं। समीर बताते हैं, "पांच टन की पत्तियों से 25 लीटर तक तेल निकाला जा सकता है। इसी तरह साल भर में छह कटाई से 100 से 150 लीटर तेल की प्राप्ति हो सकती है। अगर एक लीटर तेल 1200 से 1300 रुपये प्रति लीटर बिके तो भी किसान को तकरीबन एक लाख तक का मुनाफा आसानी से मिल सकता है।"

लेमनग्रास की खेती सूखा प्रभावित इलाकों जैसे मराठवाड़ा, विदर्भ और बुंदेलखंड तक में की जा रही है। सीमैप के गुणाभाग और शोध के मुताबिक एक हेक्टेयर लेमनग्रास की खेती में शुरु में 30000 से 40000 हजार की लागत आती है। एक बार फसल लगाने के बाद साल में पांच से छह कटाई ली जा सकती हैं, जिससे करीब 100-150 किलो तेल निकलता है। खर्चा निकालने के बाद एक हेक्टेयर में किसान को प्रतिवर्ष 70 हजार से एक लाख 20 हजार तक का शुद्ध मुनाफा हो सकता है।

नर्सरी, रोपाई और निराई-गुड़ाई

लेमनग्रास की जड़ लगाई जाती है, जिसके लिए पहले नर्सरी तैयार की जाए तो लागत कम हो सकती है। अप्रैल से लेकर मई तक इसकी नर्सरी तैयार की जाती है, एक हेक्टेयर की नर्सरी के लिए लेमनग्रास के करीब 10 किलो बीज की आवश्यकता होगी। 55-60 दिन में नर्सरी रोपाई के लिए तैयार हो जाती है। यानि जुलाई अगस्त में तैयार लगना चाहिए। हर तरह की मिट्टी और जलवायु में पैदा होनी वाली इस फसल में गोबर की खाद और लकड़ी की राख सबसे ज्यादा फायदा करती है। लेमनग्रास को ज्यादा निराई गुड़ाई की जरुरत नहीं होती, साल में दो से तीन निराई गुड़ाई पर्याप्त हैं। ज्यादा सूखे इलाकों में पूरे साल में 8-10 सिंचाई की जरुरत होगी।

लेमनग्रास से तेल निकालने की प्रकिया

लेमनग्रास के पत्तियों से तेल निकालने के लिए एक विशेष टंकी आती है जिसकी क्षमता लगभग एक टन की होती है। उस टंकी में पहले पत्तियों को अच्छे तरीके से कसकर भरा जाता है फिर पिंजरे से पत्तियों इस तरीके से दबाया जाता है ताकि कहीं भी से टंकी के अंदर हवा बनने की जगह नहीं रहे। इसके बाद टंकी को अच्छे तरीके से सावधानी से से बंद कर दिया जाता है। पिंजरे के नीचे टंकी के नीचे वाले हिस्से में पानी होता है। झुकाई करते समय पानी भाप बनकर पाइप के सहारे टंकियों में रखे पत्तियों से होकर गुजरती। वह पत्तियों का सारा तेल खींचते हुए ऊपर की ओर निकलती है। जिसे पाइप के माध्यम से एक कंडेशनर में ले लिया जाता है। झुकाई के लिए हर किसान अपने सुविधा अनुसार लकड़ियों या बॉयलर का उपयोग करता है।


समीर बताते हैं, "भाप को कंडेशनर में लेने के बाद सबसे पहले उसे ठंडा करने की प्रकिया अपनाते हैं। इस प्रकिया के दौरान तेल और पानी अलग अलग दिखने लगती है। तेल की भार पानी से हल्की होती है तो ऊपर रह जाती है पानी नीचे। इस प्रकिया जिसके बाद तेल की परत को हम अलग कर देते हैं। इस तरीके से हमें लेमन ग्रास के पौधे से तेल की प्राप्ति होती है।"

तेल निकालने की प्रकिया के समय कुछ बातों का ध्यान रखें

किसी भी प्रकिया को अपनाने के लिए कई सावधानियां अपनाई जाती। एक छोटी सी लापरवाही पूरी मेहनत बर्बाद कर सकती है। लेमनग्रास से तेल निकालने की प्रकिया में भी कई सावधानियां अपनानी पड़ती है। कुछ बातें जो ध्यान देने योग्य है उस बारे में समीर बताते हैं -

1- अगर फसल को धूप नहीं मिली हो तो उस समय तेल न निकालें। क्योंकि ऐसे समय बहुत कम तेल की प्राप्ति होगी।

2- फसल ज्यादा पक गई है तो भी निकलने वाले तेल की कमी हो सकती है।

3- टंकी बहुत अच्छे से बंद होनी चाहिए ताकि भाप की कहीं से लीकेज नहीं होनी चाहिए क्योंकि उस भाप में भी तेल की ठीक ठाक मात्रा होती है।

4-लेमन ग्रास की पत्तियों की तकरीबन तीन से चार घंटे तक झुकाई होनी चाहिए। इतनी झुकाई मिलने पर ही तेल निकलना शुरू होता है। अगर झुकाई सही से नहीं की गई तो तेल उतनी अच्छी मात्रा में नहीं निकलेगा जितना निकलना चाहिए।

लेमनग्रास के तेल का उपयोग और मार्केटिंग

लेमनग्रास की खेती करने वाले किसानों को बाजार ढूंढने में ज्यादा मेनहत करने की जरूरत नहीं पड़ती है। बाजार में इसको हाथोंहाथ लिया जाता है। देश के हर हिस्से में इसके कई सारे पर्चेजर्स मिल जाते हैं। यह किसानों को उनके तेल के मनमुताबिक कीमत भी देते हैं। डिटर्जें , साबुन, कॉस्मेटिक्स और दवाओं के व्यापारी अपने प्रोडक्टों में इसके तेल का उपयोग करते हैं ताकि लबें समय तक उसकी महक बरकरार रहे।

लेमनग्रास की खेती के लिए यहां कर सकते हैं संपर्क :

केंद्रीय औषध एवं सगंध पौध संस्थान (सीमैप)

फोन नंबर : 0522-2718629, ईमेल: [email protected]

किसान से संपर्क करें : समीर चड्ढा (9554180717)

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