रिपोर्टर डायरी: मौत की टाइमलाइन- मिनट दर मिनट उखड़ती रहीं सांसें और सोता रहा हमारा सिस्टम

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक बुजुर्ग आदमी ने सरकार से मदद मांगी। एक बार नहीं, कई बार मदद मांगी। बेटा अस्पताल दर अस्पताल भटकता रहा। 18 घंटे में भी उस बुजुर्ग तक मदद नहीं पहुंच सकी और अंतत: उनकी सांसें थम गईं।

Mithilesh DharMithilesh Dhar   18 April 2021 1:45 PM GMT

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रिपोर्टर डायरी: मौत की टाइमलाइन- मिनट दर मिनट उखड़ती रहीं सांसें और सोता रहा हमारा सिस्टम

मदद की गुहार लगाते रहे विनय श्रीवास्तव लेकिन मदद नहीं पहुंची। (तस्वीर- उनके सोशल मीडिया से साभार। घर की तस्वीर उनके बेटे ने भेजी)

लखनऊ के 65 वर्षीय विनय श्रीवास्तव ट्वीटर पर अपनी थमती सांसों के बारे में मिनट दर मिनट जानकारी देते रहे, मदद की गुहार लगाते रहे, लेकिन हमारा सरकारी सिस्टम उनसे बार-बार पूरी जानकारी मांगता रहा। लेकिन उन्हें इलाज नहीं मिल सका, अस्पताल में बेड नहीं मिल सका और जानकारी मांगने का सिलसिला उनकी सांसों के साथ थम गया।

वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार विनय श्रीवास्तव बार-बार गिरते ऑक्सीजन लेवल की जानकारी देते रहे। उनकी सांसों के लेवल के साथ-साथ हमारे सरकारी सिस्टम के लेवल की भी सच्चाई मिनट दर मिनट सामने आती रही। हमारी स्वास्थ्य सुविधाओं के लेवल की परत-दर-परत सच्चाई सामने आती रही और 18 घंटे बाद भी एक बुजुर्ग तक मदद नहीं पहुंच सकी। घटना उत्तर प्रदेश की राजधानी की है।

आइये आपको मौत की टाइमलाइन पर ले चलते हैं

समय शाम 7 बजकर 52 मिनट, तारीख 16 अप्रैल

लखनऊ के विकास नगर के रहने वाले विनय श्रीवास्‍तव की अचानक तबीयत खराब हो गई। उनका ऑक्‍सीजन लेवल 52 पर पहुंच गया।


उन्‍होंने ट्विटर पर # योगी आदित्‍यनाथ के साथ लिखा- 'आपके राज्य में डॉक्टर और अस्पताल सब निरंकुश हो गए है। मैं 65 साल का हूं। इसके अलावा मुझे स्‍पांडिलाइटिस भी है। मेरे शरीर में ऑक्‍सीजन लेवल घटकर 52 हो गया है। कोई भी हॉस्पिटल, लैब और डॉक्‍टर मेरा फोन नहीं उठा रहे हैं।'

2.1 PM, 17 अप्रैल

विनय श्रीवास्तव के ट्वीट के बाद लगभग 18 घंटे बाद 17 अप्रैल को दोपहर 2 बजकर 1 मिनट पर सरकारी हेल्पलाइन नंबर 112 का रिप्लाई आता है और कॉलिंग नंबर की मांग की जाती है।


2.2 PM

1 मिनट बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के सूचना सलाहकार शलभमणि त्रिपाठी का रिप्लाई आता है-कृपया पूरी जानकारी उपलब्ध कराएं।


2.3 PM

2 बजकर 3 मिनट पर ही विनय श्रीवास्तव के बेटे हर्षित श्रीवास्तव का जवाब आता है और वे नाम नंबर, पता सब शेयर कर देते हैं। उधर से जवाब मिलता है, ओके।


2.30 PM

दोपहर के 2 बजकर 8 मिनट एक यूजर ने ट्वीट करते हुए लिखा-आदरणीय बाबूजी माननीय योगी जी पर विश्वास रखें, आपकी पूरी मदद कुछ ही समय में की जाएगी। शलभमणि भैया पर विश्वास रखें।


इस ट्वीट के बाद 22 मिनट बाद 2 बजकर 30 मिनट पर विनय जवाब में लिखते हैं-कब तक विश्वास रखूं जनाब, अब तो मेरा ऑक्सीजन लेवल 50 पर आ गया है। बलरामपुर के गार्ड अस्पताल में घुसने नहीं दे रहे।

मैंने देश को वोट दिया है, ना किसी राजनेता को

विनय श्रीवास्तव के इस पोस्ट पर कुछ लोगों को आपत्ति हुई। कुछ लोगों ने उन्हें यह कहकर धिक्कारा कि तुम्हारा परिवार तो भाजपा को वोट देता है, भाजपाई है।


इससे दुखी विनय ने 2 बजकर 33 मिनट पर किये अपने ट्वीट में लिखते हैं- मैंने देश को वोट दिया है ना कि किसी राजनेता को। भगवान ना करे कि आपके किसी करीबी को ये दिक्कत हो और आप उनसे ये सवाल करें।

2.36 PM


मदद नहीं मिलता देख विनय श्रीवास्तव भी अपना पूरा पता भेजते हैं। यहां तक कि पिन कोड भी शेयर कर देते हैं।

3.16 PM

कहीं से कोई मदद नहीं मिली। निराश होते हुए विनय एक बार फिर ट्वीट करते हैं और लिखते हैं- मेरा ऑक्सीजन लेवल 31 हो गया है, कब कोई मेरी मदद करेगा? साथ ही उन्होंने ऑक्सीमीटर की तस्वीर भी साझा की।


ये उनका आखिरी ट्वीट था।

4.21 PM


विनय श्रीवास्तव के बेटे हर्षित ने जानकारी दी कि पिता जी नहीं रहे। और सवाल पूछा- कहां गये एंबुलेंस?

'सबने मिलकर पापा को मार डाला'

हमने हर्षित श्रीवास्‍तव से फोन पर बात की। रोते हुए उन्होंने कहा कि पापा को कई अस्‍पतालों में लेकर गया, लेकिन किसी ने उनको अंदर तक नहीं आने दिया। सबने उनसे कोविड टेस्‍ट रिपोर्ट के साथ आने के लिए कहा। उन्‍होंने डॉक्‍टरों से बहुत विनती की कि रिपोर्ट तो 24 घंटे बाद आएगी पर किसी ने उनकी नहीं सुनी। सबने मिलकर मेरे पापा को मार डाला। उन्होंने यह भी बताया कि वे पापा को लेकर बलरामपुर अस्पताल गये, लेकिन वहां डॉक्टर ने कहा कि रिपोर्ट लाओ तभी एडमिट करेंगे।

हर्षित के अनुसार उन्होंने बताया कि टेस्ट कराया लेकिन अभी तक रिपोर्ट नहीं आई है। रिपोर्ट आ जायेगी लेकिन तब तक आप पापा को एडमिट कर लीजिए, लेकिन किसी ने नहीं सुना। मैं एक नहीं कई अस्पताल गया, लेकिन कहीं भी उन्हें भर्ती नहीं किया गया।

यह पहली घटना नहीं है

राजधानी लखनऊ की खराब स्‍वास्‍थ्‍य प्रणाली की यह पहली घटना नहीं है।

लखनऊ के गोमती नगर के विनम्र खंड में रहने वाले निवासी रिटायर्ड जिला जज रमेश चंद्रा (67) की एक चिट्ठी सोशल मीडिया पर अभी भी खूब वायरल हो रही है। जिसमें उन्होंने लिखा है कि वह और उनकी पत्नी मधु चंद्रा (64) दोनों कोरोना पॉजिटिव थे। 15 अप्रैल गुरुवार की सुबह 10 बजे उनकी पत्नी का निधन हो गया।

जिला जज रमेश चंद्रा की यह चिट्ठी वायरल हो गई।

उन्होंने आगे लिखा है, 'मैं कल (बुधवार 14 अप्रैल) सुबह 7 बजे लगातार प्रशासन के द्वारा उपलब्ध कराए गए नंबरों पर फोन करता रहा लेकिन न तो कोई घर पर दवा देने आया और न ही अस्पताल में भर्ती की प्रक्रिया की गई।'

अपने पत्र में उन्होंने यह भी लिखा कि प्रशासन की लापरवाही के कारण मधु चंद्रा का स्वर्गवास हो गया। वर्तमान समय में स्थिति यह है कि कोई डेडबॉडी उठाने वाला नहीं है। कृपया मदद की जाए।'

उनके दिये नंबर पर हमने फोन किया तो किसी महिला ने फोन उठाया। रोते हुए उन्होंने बस इतना ही कहा कि अगर इलाज मिला होता तो हम उन्हें बचा लाते। आगे बात करने की हमारी हिम्मत नहीं हुई।

लखनऊ ही नहीं, पूरे देश से आ रही ऐसी तस्वीरें

सोशल मीडिया खोलिए, समाचार देखिए, चारों ओर हाहाकार मचा हुआ है। ऐसी-ऐसी तस्वीरें आ रही हैं जिसे देखकर आपको रोना आ जायेगा। अब जैसे यही तस्वीर देख लीजिये।

इस तस्वीर में एक महिला राजधानी दिल्ली के लोक नायक अस्पताल के बाहर एक महिला 45 मिनट तक एंबुलेंस में बैठकर अस्पताल में बेड का इंतजार करती रही। पति के शरीर में हलचल नहीं थी और महिला रोये जा रही थी। और कुछ देर बाद उन्हें मृत घोषित कर दिया। ये तस्वीर हमारी स्वास्थ्य सुविधाओं की जमीनी हकीकत बयां करने के लिए काफी है।


एक तस्वीर और देखिये। ये तस्वीर भी राजधानी दिल्ली के लोक नायक अस्पताल के बाहर की है। मरीज अस्पताल में भर्ती में था लेकिन उसे ऑक्सीजन नहीं मिला और ऑक्सीजन लेवल गिरता जा रहा था। अंत में मरीज बाहर आया और ऑक्सीजन सिलेंडर की व्यवस्था कर अस्पताल के बाहर ऑक्सीजन लगाकर बैठ गया।

लोक नायक अस्पताल की ये दोनों तस्वीरें @hemantrajora_ के ट्वीटर हैंडल से साभार

और अंत में अपनी बात दुष्यंत कुमार के इस शेर के साथ खत्म करना चाहूंगा-

यहां तो सिर्फ गूंगे और बहरे लोग बसते हैं

ख़ुदा जाने यहां पर किस तरह का जलसा हुआ होगा

(नोट- रिपोर्टर डायरी वह कोना है जहां रिपोर्टर खबरों से इतर अपने जज्बात को शब्दों में बयां करता है जो रिपोर्टर के निजी विचारों पर आधारित होते हैं।)

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