कृषि क्षेत्र को और सहारे की दरकार

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में वे सारी बातें दोहराई जो राष्ट्रपति के अभिभाषण का हिस्सा थी। उन्होंने 4 करोड़ किसानों को पीएम फसल बीमा योजना का लाभ मिलने और पीएम किसान योजना के 11.8 करोड़ लाभार्थी किसानों का जिक्र ख़ास तौर पर किया।

Arvind Kumar SinghArvind Kumar Singh   2 Feb 2024 7:15 AM GMT

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कृषि क्षेत्र को और सहारे की दरकार

हालाँकि अंतरिम बजट में किसी बड़े ऐलान की परंपरा नहीं रही है, लेकिन बीते कई बजटों में निराशा के बाद कृषि क्षेत्र को उम्मीद थी कि चुनाव के पहले सरकार कुछ बड़े ऐलान कर गाँव और किसानों को रिझाने का प्रयास करेंगी। पिछले अंतरिम बजट में ही मोदी सरकार ने किसानों को पीएम किसान योजना का तोहफा दिया था। इस बार किसान इंतज़ार कर रहे थे कि पीएम किसान योजना की धनराशि बढ़ने के साथ एमएसपी पर भी कुछ बड़े ऐलान होंगे। कृषि आदानो से जीएसटी कम होने का भी इंतज़ार था, पर ऐसा हुआ नहीं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बजट को विकसित भारत के चार स्तंभों को ताकत देने वाला बताया, जिसमें एक स्तंभ किसान भी हैं। इसमें 3 करोड़ ग्रामीण आवास के बाद अगले 5 साल में दो करोड़ और घरों को बनाने की बात है। तीन करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने लक्ष्य है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में वे सारी बातें दोहराई जो राष्ट्रपति के अभिभाषण का हिस्सा थी। उन्होंने 4 करोड़ किसानों को पीएम फसल बीमा योजना का लाभ मिलने और पीएम किसान योजना के 11.8 करोड़ लाभार्थी किसानों का जिक्र ख़ास तौर पर किया।


केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने अंतरिम बजट की तारीफ करते हुए कहा कि यह हमारे अन्नदाताओं का जीवन स्तर और ऊंचा उठाएगा। उन्होंने भी पीएम-किसान का जिक्र करते हुए कहा कि इससे 11.80 करोड़ किसानों को अब तक करीब 2.81 लाख करोड़ रुपये मिले हैं, जबकि किसानों के लाभ के लिए 1361 ई-नाम मंडियां हुईं जिससे 3 लाख करोड़ रु. का व्यापार दर्ज हो चुका है। आत्मनिर्भर तिलहन अभियान पर सरकार आगे बढ़ रही है। सभी कृषि-जलवायु क्षेत्रों में विभिन्न फसलों पर नैनो डीएपी (उर्वरक) का विस्तार करने के साथ कई दूसरे कदम उठ रहे हैं।

लेकिन भारतीय किसान यूनियन के नेता चौधरी राकेश टिकैत इससे खुश नहीं हैं। वे इसे चुनावी ढ़कोसला बता रहे हैं, जिसमें किसानों को केवल धोका मिला है। सरकार ने कहा है कि देश की मंडियों को राष्ट्रीय कृषि बाजार से जोड़ा जा रहा है। उनके मुताबिक फसल बीमा और पीएम किसान दोनों योजनाएँ सहायक नहीं है। 500 रुपये प्रतिमाह की धनराशि से देश के आय के स्रोत कृषकों का भला नहीं कर सकती है। भला इससे होगा अगर बजट में पेट्रोल-डीजल के दामों में कटौती होती।

किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट ने मुताबिक अभी न्यूनतम समर्थन मूल्य के संबंध में दलहन - तिलहन जैसी 75 फ़ीसदी फसलों को खरीद की परिधि से बाहर किया हुआ है। बाजरा,ज्वार, मक्का, रागी जैसे मोटे अनाजों की खरीद होती नहीं। 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मोटा अनाज वर्ष घोषित हुआ तो किसानों को खरीद बढ़ने की आशा थी। उनके मुताबिक वर्ष 2014 के पूर्व भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में राजनाथ सिंह ने कृषि का पृथक से बजट लाने की देशभर में घोषणा की थी, जो जमीन पर नहीं उतरी।


2014-15 में कृषि मंत्रालय का बजट 23 हजार करोड़ रु. होता था जो अब करीब पाँच गुना अधिक 1.25 लाख करोड़ रु. हो गया है, यह सही है। किसान मानधन योजना, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई परियोजना, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, जैविक खेती, मृदा स्वास्थ्य कार्ड से लेकर प्राकृतिक खेती जैसी कई नई पहले की। दूसरी हरित क्रांति और प्रोटीन क्रांति की बातें भी हुई। पर समग्र रूप में कृषि क्षेत्र को मिले संसाधन नाकाफी थे। यह भी चिंताजनक बात है कि कुल केंद्रीय व्यय में कृषि और संबंधित क्षेत्रों के लिए आवंटन महज 3.2 फीसदी है और घटता जा रहा है। ग्रामीण विकास क्षेत्र का व्यय भी 5.29 फीसदी पर है। जीडीपी में खेती का योगदान भले घटता जा रहा है। फिर भी सबसे अधिक लोगों को यही क्षेत्र बांधे हुए है।

बीते एक दशक में कई किसान आंदोलन चले पर वाजिब दाम के मसले पर चुनौतियां बरकरार हैं। किसान कम उत्पादन करें तो मुसीबत और अधिक पैदा करें तो अधिक मुसीबत। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अनाजों की खरीद धान औऱ गेहूँ के साथ चंद राज्यों तक सीमित है। खेती की बढ़ती लागत के बीच अगर एमएसपी से संरक्षित फसलें भी बदहाल होंगी उनकी खरीद गारंटी नहीं होगी तो बाकी फसलों को तो कोई पूछने वाला नहीं है। इसी के साथ असिंचित इलाकों के किसानों के साथ अलग दिकक्ते हैं। लेकिन खेती बाड़ी से जुड़े सवाल केवल भारत सरकार से जुड़े नहीं है। बहुत से मामलों में राज्य सरकारों की भूमिकाएं भी अहम हैं। पर केंद्रीय भूमिका के हिसाब से अंतरिम बजट में यथास्थिति के साथ यह संकेत है कि आगामी सरकार को खेती को चुनौतियों से निपटने के लिए कुछ ठोस कदम उठाने की दरकार होगी।

(अरविंद कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)

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