गणतंत्र दिवस विशेष : इस बार भी राजपथ पर नहीं दिखेगी यूपी की झांकी 

Ashwani NigamAshwani Nigam   25 Jan 2018 9:16 AM GMT

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गणतंत्र दिवस विशेष : इस बार भी राजपथ पर नहीं दिखेगी यूपी की झांकी उत्तर प्रदेश से शामिल हो चुकी है झांसी की रानी की झांकी

लखनऊ। 69वां गणतंत्र दिवस कल पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाएगा। इसको लेकर तैयारियां जोरोशोरों पर हैं। इस बार का यह राष्ट्रीय उत्सव कई मायनों में खास है। ऐसा पहली बार है जब एक नई बल्कि 10 देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस समारोह के मुख्य अतिथि होंगे। इस अवसर पर 26 जनवरी, 2018 को नई दिल्ली के इंडिया गेट के राजपथ पर होने वाली परेड में उत्तर प्रदेश की झांकी नहीं दिखेगी। झांकियों के चयन के लिए रक्षा मंत्रालय की तरफ से बनाई गई विशेषज्ञ कमेटी ने उत्तर प्रदेश की झांकी में कई कमी पाते हुए इसे रिजेक्ट कर दिया। यह उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यानाथ सरकार के साथ प्रदेश के लिए बड़ा झटका है।

गणतंत्र दिवस की परेड वह मौका होता है जब देश के विभिन्न राज्य देश-विदेश के लोगों को अपने प्रदेश की कला, संस्कृति, गौरवशाली इतिहास, समृद्ध विरासत और विकास को झांकियों के माध्यम से प्रस्तुत करते हैं। इसके साथ ही केन्द्र सरकार के विभिन्न मंत्रालय भी अपने विभागों की बड़ी उपलब्धियों को झांकी के माध्यम से दिखाते हैं। लेकिन देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के हाथ से लगातार दूसरी बार यह मौका निकल गया है।

इस बारे में जानकारी देते हुए उत्तर प्रदेश सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के निदेशक अनुज कुमार झा ने बताया, '' इस बार गणतंत्र दिवस की परेड के लिए उत्तर प्रदेश की तरफ से जिस झांकी का प्रस्ताव भेजा गया था, उसको मंजूरी नहीं मिली है। इस बार उत्तर प्रदेश की झांकी नहीं शामिल होगी।'' उत्तर प्रदेश की तरफ से अंतिम बार 67वें गणतंत्र दिवस पर राजपथ की परेड में जरदाई कला की थीम पर आधारित झांकी को प्रदर्शित किया गया था। पिछले साल 68वें गणतंत्र दिवस पर भी उत्तर प्रदेश की झांकी को शामिल नहीं किया गया था।

बिस्मिल्लाह ख़ान पर बनी झांकी

हर साल 26 जनवरी, गणतंत्र दिवस के मौके पर नई दिल्ली के राजपथ पर विभिन्न राज्यों को अपनी कला, संस्कृति और विकास को झांकी के माध्यम से दिखाने का मौका मिलता है। लेकिन, झांकी में शामिल होने के लिए रक्षा मंत्रालय की ओर से बनाई गई झांकी चयन की विशेषज्ञ समिति के सामने तमाम राज्यों को अपने राज्य की झांकी का प्रजेंटेशन देना होता है।

इस समिति में सेना के अधिकारी, कला-संस्कृति जानकार और कला की दुनिया से आने वाले बड़े कलाकार शामिल होते हैं। झांकियों के थीम का प्रजटेंशन देखने के बाद यह कमेटी झांकियों के चयन को अंतिम मंजूरी देती है। खास बात यह है कि झांकियों के चयन की यह प्रक्रिया 15 अगस्त के बाद से शुरू हो जाती है जो कई दौर के बाद जनवरी के पहले सप्ताह में पूरी की जाती है।

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गणतंत्र दिवस के समारोह में जहां एक तरफ उत्तर प्रदेश की झांकी नहीं दिखेगी वहीं प्रदेश के पड़ोसी राज्य बिहार और मध्य प्रदेश की झांकी इस समारोह की शोभा बढ़ाएगी। ऐसा पहली बार है जब लगातार पांचवें वर्ष भी बिहार की झांकी इस समारोह में शामिल हो रही है।

इस बार बिहार की झांकी की '' धरहरा की वन पुत्रियां '' थीम पर आधारित है। बिहार के भागलपुर जिले से 33 किलोमीटर दूर धरहरा एक ऐसा गांव हैं जहां पर बेटियों के पैदा होने प खुशी मनाई जाती है और बेटी का जन्म होने पर 10 पेड़ लगाए जाते हैं। इस झांकी के जरिए यह संदेश दिया जाएगा कि समाज में बेटी और पेड़ का बहुत महत्व है।

बिहार के साथ ही इस बार मध्य प्रदेश की झांकी भी राजपथ पर दिखेगी। मध्यप्रदेश की झांकी ''सांची एक प्रमुख बौद्धिक तीर्थ-स्थल '' की थीम पर आधारित है। यूनेस्को की विश्व धरोहर में शामिल सांची एक प्रमुख बौद्ध तीर्थ-स्थल है। यह भोपाल से 46 किलोमीटर दूर उत्तर-पूर्व में विदिशा के निकट रायसेन जिले में स्थित है। यह बौद्ध केन्द्र अपने महान स्तूप के कारण प्रसिद्ध है जो भारत के सबसे पुराने पाषाण ढांचों में से एक है। इस झांकी के जरिए मध्य प्रदेश अपने समृद्ध बौद्ध इतिहास को दिखाएगा।

पिछले वर्ष 2017 में 68वें गणतंत्र दिवस की परेड में 17 राज्यों और 6 केंद्रीय मंत्रालयों ने अपनी झांकियों का प्रदर्शन किया था, जिसमें उड़ीसा तरफ से डोला जात्रा की थीम पर झांकी थी। इस झांकी में राज्य में मनाये जाने वाले एक लोकप्रिय त्योहार 'डोला जात्रा' को दर्शाया गया था।

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उत्तरपूर्व राज्य अरुणाचल प्रदेश की झांकी का थीम याक डांस था। यह झांकी अरुणाचल प्रदेश की बौद्ध जनजातियों के महायान संप्रदाय का सबसे प्रसिद्ध स्वांग है का समर्पित थी। महाराष्ट्र की झांकी में स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की 160 वीं जयंती को दिखाया गया था। मणिपुर राज्य की झांकी में लाइ हरोबा को दिखया गया था। मणिपुर के मेइती समुदाय की ओर से संरक्षित दुनिया के सबसे पुराने कर्मकांडों में से एक है। मणिपुर की झांकी में देवताओं की प्रतिकृति के साथ इस विचित्र और समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा को पवित्र नृत्य के साथ प्रदर्शित किया गया था।

गुजरात ने अपनी झांकी में कच्छ की कला और जीवन शैली को दिखाया था। गुजरात का कच्छ जिला अपनी कला और जीवन शैली के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहां 16 अलग अलग प्रकार से कढ़ाई की जाती है। रोगन कला, मिट्टी का काम और भुंगा बनाने की कला ने कच्छ को दुनिया भर में एक अद्वितीय पहचान दी है। लक्षद्वीप ने अपनी झांकी में "लाक्षा द्वीप" को एक लाख द्वीपों के रूप में परिभाषित किया था। लक्षद्वीप अपने पारिस्थितिकी तंत्र, प्रवाल भित्तियों, चांदी जैसे रेतीले समुद्र तटों, प्रदूषण रहित पर्यावरण और साहसिक खेलों के पर्यटन के लिए दुनिया में विख्यात है।

अपनी पारंपरिक कला और लोक नृत्य के लिए मशहूर, कर्नाटक गणतंत्र दिवस परेड की झांकी में अपने राज्य के पारंपरिक लोक नृत्य को प्रस्तुत किया था। झांकी में भगवान शिव के उपासक गौरावास को पारंपरिक नृत्य करते हुए दिखाया गया था। दिल्ली राज्य की झांकी 'मॉडल स्कूल' की अवधारणा के विकास को दर्शाती हुई दिखाई गई थी। हिमाचल प्रदेश ने अपनी झांकी में चंबा रूमला को दिखाया था। चंबा रूमाल हिमाचल प्रदेश के चंबा शहर में 18वीं सदी के दौरान उत्कर्ष पहाड़ी कला का बेहतरीन नमूना है।

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हरियाणा राजय की झांकी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की थीम पर आधारित थी। पश्चिम बंगाल की झांकी में शरद उत्सव को दिखा गया था। बंगाल में शरद उत्सव एकमात्र ऐसा धार्मिक त्योहार है, जिसको न सिर्फ राज्य बल्कि भारत और दुनिया भर में उत्साह के साथ मनाया जाता है। आज यह दुनिया के सबसे बड़े कला कार्निवलों में से एक बन चुका है। पंजाब ने अपनी झांकी को जागो आइंया थीम पर दिखाया था। "जागो" का शाब्दिक अर्थ है "जाग"। पंजाब में शादी की रात से एक दिन पहले जागो समारोह मनाया जाता है और यह एक जोशपूर्ण उत्सव नृत्य है।

तमिलनाडु की झांकी में '' काराकट्टम '' जो तमिलनाडु का एक लोकप्रिय लोक नृत्य है उसे दिखाया गया था। गोवा ने अपनी झांकी में संगीत विरासत सानगोड को दिखाया था। त्रिपुरा की झांकी में राज्य के एक शानदार रियांग आदिवासी नृत्य होजागिरी को प्रस्तुत किया गया था। जम्मू-कश्मीर की झांकी में गुलमर्ग में शीतकालीन खेल को दिखाया गया था। असम ने अपनी झांकी में कामाख्या मंदिर को थीम बनाया था। गुवाहाटी में नीलांचल पहाड़ियों के ऊपर स्थापित, कामाख्या मंदिर को देश के सबसे बड़े शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।

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