अप्रैल-मई में किसानों पर आफत की बारिश

Arvind ShukklaArvind Shukkla   19 April 2019 12:59 PM GMT

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अप्रैल-मई में किसानों पर आफत की बारिशआंधी-तूफान से मंडियों में रखी उपज बह गयी। तस्वीर मध्य प्रदेश की है।

उत्तर प्रदेश/राजस्थान/मध्यप्रदेश। 16 अप्रैल को उत्तर भारत में आए आंधी तूफान से 50 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई। इसके साथ ही हजारों एकड़ फसल भी बर्बाद हो गई। दो मई 2018 को आंधी-बारिश और ओलावृष्टि से उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब और आंध्रप्रदेश में 125 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। फसलों को भी भारी नुकसान हुआ था। मौसम के चलते हुए हादसों में सबसे ज्यादा हादसे और नुकसान अप्रैल-मई के महीनों में ही हुए हैं।

ओडिशा, राजस्थान, मध्यप्रदेश, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना और उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत के ज्यादातर राज्य पिछले कई वर्षों से लगातार मौसम की मार झेल रहे हैं। बेमौसम बारिश और आंधी-तूफान फसलों को नुकसान पहुंचाते हैं तो आकाशीय बिजली लोगों के लिए जानलेवा साबित होती है।

राजस्थान के सूरतगढ़ जिले में रावतसर रोड पर प्रगतिशील किसान एवं किसान वैज्ञानिक ईश्वर सिंह कुंडू के खेत और बाग हैं। वो बताते हैं, "पिछले 3 सालों से तूफानों की संख्या कुछ ज्यादा ही बढ़ गई है। पहले फसल के दौरान पानी बरसता था, जो फायदा करता था। अब तब बरसता है जब किसान फसल काट रहा होता है, इससे नुकसान हो रहा है।"

मध्यप्रदेश में नरसिंहपुर जिले में पिपरियां राकई के किसान जोगेंद्र द्विवेदी ईश्वर सिंह कुंडू से इत्तेफाक रखते हैं। "नरसिंहपुर जिले में जो गन्ने की खेती ज्यादा हो रही है इसके पीछे भी मौसम है। गर्मियों के सीज़न (मार्च-जून) में हम लोग जो फसलें उगाते थे, उनमें ओलों से बहुत नुकसान होता था, गन्ना मजबूत होता था तो हम इसे ही बोने लगे।"

भारत समेत कई देशों में मौमस को लेकर काम करने वाली संस्था अर्थ नेटवर्क के एशिया हेड कुमार मार्गासहायम गांव कनेक्शन को बताते हैं, "पिछले 4-5 वर्षों (2015 के बाद) में मौसम में बदलावों की संख्या बढ़ी है। मार्च-अप्रैल में आंधी तूफान, ओलावृष्टि और आकाशीय बिजली गिरने की ज्यादा घटनाएं देखी गई हैं।"

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इस बदलाव के पीछे वो जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और पेड़ों की घटती संख्या को जिम्मेदार बताते हैं। अगर एक फीसदी भी तापमान बढ़ेगा तो थंडरस्टोर्म (भारी बारिश, ओले, तेज हवाएं) की संख्या बढ़ेगी।

देश में भारत मौसम विभाग मौसम की जानकारी देता है। इसके साथ ही कई निजी एजेंसियां भी इस क्षेत्र में काम करती हैं। मौसम विभाग मानसून को लेकर पूर्वानुमान से लेकर दीर्घकालीन अनुमान, (कई महीनों का, जैसे मानसून), 15 दिन, 5-7 दिन 3 दिन और 24 घंटे का अनुमान और अलर्ट जारी करता है।


पिछले कुछ वर्षों में मौसम विभाग ने तकनीक के आधार पर काफी तरक्की की है। 16-17 अप्रैल को आए आंधी तूफान के लिए मौसम विभाग ने 13 अप्रैल को ही पूर्वानुमान जारी कर दिया था ताकि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन समेत दूसरी एजेंसियां ग्रामीणों तक पहुंचकर नुकसान होने से बचा सकें।

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मौसम विभाग के अतिरिक्त महानिदेशक मृत्युजंय महापात्रा के मुताबिक पूरे देश में 552 ऑजर्वेटरी सेंटर हैं। जहां कर्मचारी तैनात हैं। इसके अलावा पूरे देश में 675 मौसम केंद्र हैं। साथ ही 1350 जगहों पर ऑटोमेटर रेनगेज सेंटर हैं, जहां डाटा सीधे मौसम विभाग पहुंचाता है। माहापात्रा कहते हैं, मौसम विभाग का फोरकास्ट जिला स्तर पर होता है। अगर लोगों तक सही जानकारी हो तो उनकी जान बचाई जा सकती है।

"मौसम विभाग हर बार पूर्वानुमान भेजता है। आकाशवाणी, वेबसाइट और दूसरे माध्यमों से जानकारियां भेजी जाती हैं। मौमस विभाग बिजली गिरने के 20-30 मिनट पहले तक जानकारी दे देता है। ऐसे में लोगों को अगर सही जानकारी हो तो वो सुरक्षित स्थान तक पहुंच सकते हैं।" मौसम विभाग के एडीजी ये भी बताते हैं कि उनके विभाग का काम सूचना देना है। बाकी का काम राज्य सरकार का होता है।

खेतों में पड़ी फसल ओलावृष्टि के कारण बर्बाद हो गयी।

क्या मौसम की सही जानकारी सही समय पर लोगों तक पहुंचाकर जानमाल के नुकसान से बचा जा सकता है? इस बारे में बात करने पर उत्तर प्रदेश में राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण में प्रोजेक्ट निर्देशक (इमरजेंसी ऑपरेशन) आदिति उमराव का जवाब हां में होता है।

"आंधी, तूफान से होने वाले नुकसान को बिल्कुल कम किया जा सकता है। लोगों की जान बचाई जा सकती है। हमें जो सूचना मिलती है उसे हम डीएम, एसडीएम और तहसीलदार से लेकर लेखपाल तक भेजते हैं, ताकि आम लोगों तक जानकारी पहुंच सके। आने वाले दिनों में हम लोग क्षेत्रवार सीधे मैसेज और वाइस कॉल करेंगे ताकि लोगों को और ज्यादा जागरुक किया जा सके।"

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किसी भी तरह का तूफान (थंडरस्टोर्म, हेलस्टोर्म या डस्टस्टोर्म, लाइटिंग) आने वाला है इसकी सूचना 3-4 दिन पहले दी जा सकती है लेकिन उस तूफान की रफ्तार क्या होगी, बारिश होगी या नहीं, ओले गिरेंगे या नहीं? आकाशीय बिजली की दशा क्या होगी, ये सब सिर्फ 45 मिनट पहले ही पता चल पता है। अर्थ नेटवर्क अपने विस्तृत तकनीकी संसाधनों (डाटा बेस, उपकरण, रडार) आदि के जरिए डिटेल में जानकारी दे सकता है," -कुमार मार्गासहायम, तूफान की सटीक जानकारी की भविष्यवाणी पर बताते हैं।

अर्थ नेटवर्क भारत में आंध्रप्रदेश, उड़ीसा, कर्नाटक और पश्चिम बंगाल में अपनी सेवाएं दे रहा है। कुमार बताते हैं कि आंध्रप्रदेश और उड़ीसा के कई इलाकों में स्थानीय आपदा प्रबंधन इकाइयों के साथ मिलकर किसानों को एक-एक घंटे पर अलर्ट भेजे जा रहे हैं। जिससे उन्हें काफी फायदा भी हुआ है। उड़ीसा में हमने कई गावों में रेडियो जैसे अलार्म भी पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लगाए हैं।

मौसम की जानकारी देने वाली निजी संस्था स्काईमेट किसानों के साथ मिलकर कई राज्यों में काम कर रही है।


स्काईमेट के प्रमुख जतिन सिंह ने पिछले दिनों गांव कनेक्शन से बात करते हुए कहा था, "स्काईमेट के पास कई राज्यों में सेंसर लगे हैं। मौसम विभाग के पास अपने संसाधन है। देश के 55 एयरपोर्ट पर मौसम से संबंधित जानकारी वाले यंत्र लगे हैं। अगर सारी जानकारी लोगों तक सही समय पर पहुंचाई जाए तो मौसम के कारण होने वाले नुकसान को कम किया जा सकता है। स्काईमेट की जानकारी पूरी तरह निशुल्क है। सरकार को बस इसे सही तरीके से इस्तेमाल करना होगा।"

लेकिन क्या मौसम की सही जानकारी लोगों तक पहुंचती है? और लोगों के पास उससे बचने के रास्ते होते हैं?

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इस लेकर गांव कनेक्शन ने उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, झाराखंड, छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में किसानों से बात की। ज्यादातर किसानों ने कहा कि उन्हें जानकारी नहीं मिल पाती। जबकि कई किसानों ने कहा कि उन्हें वाट्सएप आदि के जरिए सूचना मिलती है।

राजस्थान के चित्तौड़गढ़ जिला मुख्यालय से 35 किलोमीटर दूर जयसिंहपुरा में रहने वाले नारायण धनकड एक ग्रामीण यूट्यबर और किसान हैं। वो किसानों के लिए लिए वीडियो बनाते है। नरायण बताते हैं, "मौसम की जानकारी की बात करें तो मुझे तो पता था लेकिन मेरे गांव के 90 फीसदी किसानों को पक्का इसके बारे में जानकारी नहीं होगी।"

मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर में पिपरियां राकई गांव के जोगेंद्र दिवेदी बताते हैं, "पहले कृषि वज्ञान केंद्र के जरिए सूचना मिल जाती थी, लेकिन अभी काफी समय से कोई जानकारी नहीं मिल पा रही है। अख़बार और वाट्सएप ग्रुप के जरिए खबरें मिलती है।"

    

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