कैसे मनाया जाता है छठ महापर्व और कौन हैं छठी मैया?

एक बार फिर नहाय खाय के साथ छठ महापर्व की शुरुआत हो गई, अगर आपके मन भी ये सवाल आता है कि आखिर इस व्रत में क्या होता है, और कैसे की जाती है पूजा तो यहाँ विस्तार से बता रहे हैं।

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छठ अकेला ऐसा पर्व है जिसमें सूरज की सिर्फ उगने पर नहीं डूबते समय भी पूजा की जाती है।

साफ सफाई का इसमें खास ध्यान रखा जाता है, इस व्रत को करने के नियम इतने कठिन है शायद यही वजह है कि इसे महापर्व और महा व्रत भी कहा जाता है। चार दिन के इस त्योहार में गलती की कोई गुंजाइश नहीं है।

लेकिन क्या आप जानते हैं क्यों मनाई जाती है छठ पूजा और कौन हैं छठी मैया?

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार प्रकृति की देवी ने अपने आप को छह भाग में विभाजित किया जिसमें उनके छठे अंश को सर्वश्रेष्ठ देवी के रूप में माना गया है, जो ब्रह्मा की मानस पुत्री हैं। शिशु के पैदा होने के छह दिन बाद और नवरात्रि की षष्ठी तिथि को इन्हीं देवी की पूजा होती है।

छठी मैया की कथा

कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है की एक राजा थे जिनका नाम प्रियव्रत था और उनकी पत्नी का नाम मालिनी था, दोनों की कोई संतान नहीं थी। इस बात से दोनों राजा - रानी बहुत दुखी और परेशान रहा करते थे। पुत्र प्राप्ति के लिए उन्होंने महर्षि कश्यप से यज्ञ करवाया। यज्ञ सफल हुआ और रानी मालिनी गर्भवती हो गईं।


नौ महीने बाद रानी के गर्भ से मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ जिस बात से राजा बहुत उदास हो गए और उन्होंने आत्महत्या करने का फैसला किया।

वो आत्महत्या करने जा ही रहें थे कि अचानक उनके सामने एक देवी प्रकट हुई; देवी ने कहा कि मैं छठी माता हूँ, मैं लोगों की संतान प्राप्ति की इच्छा पूर्ण करती हूँ, जो भी भक्त सच्चे मन और विधि विधान से मेरी पूजा करेगा में उसे संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्रदान करुँगी।

राजा ने देवी का आदेश मानते हुए कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को पूरे विधि विधान से छठी मैया की पूजा करवाई और फल स्वरुप रानी को एक पुत्र की प्राप्ति हुई तभी से छठ का ये पावन पर्व मनाया जाने लगा।

ऐसे मनाया जाता है छठ महापर्व

छठ पूजा पहला दिन:

नहाय खाय 17 नवंबर को छठ पूजा का पहला दिन है। इस दिन सुबह जल्दी उठते हैं, सूर्य की पूजा करते हैं और अपने लिए अच्छा खाना बनाते हैं। पहले दिन के दोपहर के भोजन को नहाय खाय कहते हैं, इसका अर्थ है 'नहाओ और खाओ'।

अगले दिन से उपवास शुरू हो जाता है। उपवास से पहले का ये दूसरा आखिरी भोजन होता है। खाने में चावल, चना दाल में लौकी, आलू और सोया भुजिया, मेथी के पकोड़े, पालक का साग, आलू मटर की सब्जी, धनिया की चटनी, बेसन में तली हुई लौकी (लौकी का बछका) नींबू के रस वाली तली हुई हरी मिर्च होती है।

छठ पूजा का दूसरा दिन:

खरना छठ के दूसरे दिन को खरना भी कहते हैं। इस दिन सुबह लगभग 3 या 4 बजे उठकर शरबत पीते हैं और फिर शुरु हो जाता है पूरे दिन का उपवास। इसके बाद पूरे दिन न तो कुछ खाते हैं और न ही पानी की एक बूंद मुँह में जाती है। सूरज छिपने के समय, खीर और पूड़ी खाकर उपवास तोड़ा जाता है।

खीर, एक पारंपरिक भारतीय मिठाई है, जिसे गुड़ और दूध के साथ उबले हुए चावल के साथ मिलाकर बनाया जाता है। घर में आने वाले सभी मेहमानों को भी खीर परोसी जाती है। शाम को खीर-पूड़ी खाने के बाद से चौथे दिन तक उपवास रहता है। चौथे दिन सुबह सूरज उगने के बाद प्रसाद खाकर उपवास तोड़ते हैं। उसके बाद पानी पिया जाता है और फिर सब लोग खाना खाते हैं।

छठ पूजा तीसरा दिन:

संध्या अर्घ्य छठ पूजा के तीसरे दिन को संध्या अर्घ्य कहा जाता है। इस दिन किसी नदी या तालाब में डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा है। भक्त पूरे दिन निर्जला (बिना पानी के) उपवास रखते हैं। तीसरे दिन, ठेकुआ मिठाई खासतौर पर बनाई जाती है। यह बिहार की एक पारंपरिक मिठाई है जिसे गेहूँ के आटे से तैयार किया जाता है।

छठ पूजा चौथा दिन, उषा अर्घ्य

छठ पूजा के चौथे दिन को उषा अर्घ्य या सुबह के प्रसाद के रूप में जाना जाता है। इस दिन, सभी लोग सूर्योदय से पहले नदी के किनारे या तालाब में उगते सूरज को अर्घ्य देते हैं। अर्घ्य देने के बाद लोग घाट पर बैठकर पूजा-अर्चना करते हैं, फिर आसपास के लोगों में प्रसाद बांटा जाता है।

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