अब अबला नहीं रहेंगी लड़कियां

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अब अबला नहीं रहेंगी लड़कियां

कस्तूरबा स्कूल में लड़कियों के सशक्तिकरण की पहल

गोंडा/रायबरेली। लगातार बढ़ रहे महिला अपराधों को देखकर गोंडा जिले में परिषदीय स्कूलों और कस्तूरबा आवासीय स्कूलों में लड़कियों की सुरक्षा और स्वालंबन के लिए उन्हें प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे वो आगे चलकर आत्मनिर्भर बन सकें।

गोंडा जिले से लगभग 27 किमी दूर धानेपुर कस्तूरबा स्कूल में रहने वाली प्रिया कुमारी (16 वर्ष) बताती हैं, ''हमें ये बताया जाता है कि अगर कोई ऐसी मुसीबत सामने आए तो क्या करना चाहिए। साथ ही आत्मरक्षा के तरीके भी बताए जाते हैं। हफ्ते में एक दिन मीटिंग होती है जिसमें ये सभी जानकारी दी जाती है।"

जिले में कुल मिलाकर 17 कस्तूरबा गांधी आवासीय और 885 परिषदीय स्कूल हैं, जिसमें कस्तूरबा स्कूलों में कुल 1700 लड़कियां पढ़ रही हैं। कस्तूरबा विद्यालय में पढ़ाई छोड़ चुकी या कभी न पढ़ी लड़कियां ही पढ़ती हैं और उनके रहने की व्यवस्था भी विद्यालय में होती है। किताबें, ड्रेस सब नि:शुल्क मिलते हैं।

बढ़ रहे महिला छेड़छाड़ के मामलों को देखकर लड़कियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी स्कूल प्रबंध समिति की महिला सदस्यों को सौंपी गई है। स्कूलों को जाने वाली बालिकाओं के साथ किसी प्रकार की छेड़छाड़ की घटना न हो, बेटियों को सुरक्षा का अहसास हो, इसके लिए शिक्षकों के साथ ही अब विद्यालय प्रबंध समिति के सदस्य नजर रखेंगे। वह स्कूल पर पूरी निगरानी रखेंगे।

गोंडा जिले की बालिका शिक्षा की समन्वयक रजनी श्रीवास्तव बताती हैं, ''स्कूल में सुरक्षा व्यवस्था पर कड़ी नजर रखी जा रही है। परिषदीय स्कूलों में लड़कियों के घर से स्कूल तक आने पर भी निगरानी होगी। उन्हें ये बताया जाता है कि कैसे पूरे गाँव के बच्चे एक साथ स्कूल आएं, जिससे अगर कोई परेशानी भी आती है तो एक-दूसरे की मदद कर सकते हैं।"

वो बताती हैं, ''स्कूल में हर शनिवार को मीना मंच का आयोजन होता है, जिसमें कहानियों से बच्चों को पढ़ने और रोज स्कूल आने के बारे में बताया जाता है। मीना मंच में लड़कियां अपनी कोई भी परेशानी बता सकती हैं।"

ये योजना हर जिले में लागू हो रही है। रायबरेली जि़ले के बेसिक शिक्षा अधिकारी राम सागर पति त्रिपाठी बताते हैं, "हमारे जिले के कस्तूरबा स्कूलों में सिलाई-कढ़ाई सिखाई जाती है जो आगे चलकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा। उनकी सुरक्षा पर भी ध्यान रखा जाता है जिसकी पूरी जिम्मेदारी वार्डन को सौंपी जाती है।"

हालांकि शाहजहांपुर जिले में योजना अभी नहीं शुरू हुई है लेकिन जैसे ही कोई आदेश आयेगा, इसे लागू किया जायेगा। ये जानकारी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी रमेश कुमार ने दी। महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा के ये कार्यक्रम लड़कियों के लिए लाभदायक साबित हो रहे हैं और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने में भी मदद कर रहे हैं।

कस्तूरबा विद्यालय हलधरमऊ गोंडा की सविता कुमारी (14 वर्ष) बताती हैं, ''हमे बहुुत ख़ुशी है की हम भी और लड़कियों की तरह पढ़ पा रहे हैं। मेरे पिता रिक्शा चलाते हैं और मुझे पढ़ाने के पैसे उनके पास नही थे, लेकिन यहां मुझे खाना किताब ड्रेस सब मिलता है । सविता अच्छी सिलाई भी कर लेती है। वो आगे इसे अपने रोजगार का साधन बनाना चाहती है।"

 

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