पेट और जोड़ों का दर्द हो सकता है सोमेटोफार्म डिसऑर्डर

Update: 2015-12-08 05:30 GMT
गाँव कनेक्शन

इस बीमारी में शरीर के कई हिस्सों में दिक्कत होती है। दिमाग और शरीर के बीच जो सम्बंध होता है, दिमाग शरीर को सिग्नल भेजता है और शरीर के बहुत से हिस्सों में गंभीर बीमारियां होने के संकेत भेजता है, जिससे मरीज को दिक्कत होती है। 

सोलह वर्ष की पूजा के जीवन में बहुत परेशानियां थी। उसके पिताजी शराब पीते थे और उसके बाद मां को मारते थे और मां बहुत मेहनत करके घर का खर्चा पूरा करती थी। एक भाई था वो दिन में स्कूल जाता था और शाम

को ऑफिस में काम करता था। धीरे-धीरे पूजा के पेट में दर्द शुरू हुआ और दर्द इतना भयानक हुआ कि इमरजेंसी में ले जाकर दर्द का इंजेक्शन लगवाना पड़ा। कुछ समय बाद उसके हाथ, पैर और सिर में भी दर्द शुरू हो गया और वो बहुत परेशान रहने लगी।  डॉक्टरों ने पूजा को मनोचिकित्सक को दिखाने की सलाह दी। लम्बे इलाज और कांउसिलिंग के बाद आज वो ठीक है और पूजा सुबह नौ बजे से लेकर शाम पांच की जॉब भी कर रही है। 

लक्षण 

1. यह दर्द शरीर के भिन्न हिस्सों में हो सकता है (सिर, पेट, जोड़ों में, सीना, मासिक धर्म के दौरान, पेशाब करते समय)।  

2. उल्टी, चक्कर, पेट फूलना, पेट खराब रहना या खाने के प्रति बहुत चूजी होना।  

3. सेक्स में रुचि न लेना, वीर्य बहाव में दिक्कत होना, मासिक धर्म समय पर न होना या बहुत ज्यादा खून का बहना, पूरे नौ महीने गर्भावस्था के दौरान उल्टी होना।

4. शरीर के किसी हिस्से में कमजोरी महसूस करना, सीधे तरीके से खड़े न हो पाना या मुंह टेढ़ा होना, खाना निगलने में दिक्कत, बोलने में दिक्कत, कुछ समय के लिए अंधापन, चक्कर आना, गिर जाना, भूल जाना आदि। 

  • यह सब लक्षण किसी भी मेडिकल कारण के वजह से नहीं होते या किसी दवा का असर नहीं होता और न ही नशेे के कारण होता है। यह बीमारी महिलाओं में 5-20 फीसदी अधिक होती है और पूरे जीवनकाल में 0.1-0.2 फीसदी तक होने की संभावना होती है। 
  • मानसिक कारण देखे जाए तो यह एक तरीका हो सकता है अपनी तकलीफ को दिखाने का जो कि दिमाग इस रूप में व्यक्त करता है। ऐसा नहीं है कि मरीज जानकर यह लक्षण पैदा करता है बल्कि उसको सच में तकलीफ का एहसास होता है। यह एक बहुत ही पेचीदा बीमारी है जिसमें दिमाग शरीर को सिग्नल भेजता है जो कि बहुत ही मजबूत और ताकतवर सिग्नल होता है जिसके बाद शरीर में दर्द का एहसास होता है।
  • इसके आनुवंशिक कारण भी हो सकते है और खानदानी असर भी हो सकता है। इसका भली भांति इलाज उपलब्ध है और मरीज को आराम मिल जाता है।

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