क्या अखिलेश को रास नहीं आया बसपा से गठबंधन?

उत्तर प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस लोकसभा में भी बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया। इस वजह से बसपा और सपा गठबंधन को मनमुताबिक परिणाम नहीं मिला। लेकिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीएसपी और सपा को एकजूट करने के लिए काफी जतन किया

Update: 2019-05-23 13:54 GMT

लखनऊ। उत्तर प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनाव की तरह इस लोकसभा में भी बीजेपी ने शानदार प्रदर्शन किया। इस वजह से बसपा और सपा गठबंधन को मनमुताबिक परिणाम नहीं मिला। लेकिन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने बीएसपी और सपा को एकजूट करने के लिए काफी जतन किया और अपने अहंकार को किनारे रखा। बीजेपी की नीतियोंं का काट ढूढ़ने और बीजेपी को हराने के हर तरह के समझौते किए।

पत्नी डिंपल यादव ने भी दिया साथ

अखिलेश यादव की ओर से सपा बसपा को एकजूट करने में उनकी पत्नी डिंपल यादव ने भी भरपूर साथ दिया था।डिंपल यादव ने भरी सभा में सबके सामने मायावती के पैर छूए। मायावती को प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने पर अखिलेश यादव ने इतना तक कहा कि सभी विकल्प खुले हैं। इसके अलावा अखिलेश ने बड़ा दिल दिखाते हुये गठबंधन के एक अन्य साथी राष्ट्रीय लोकदल को अपने समाजवादी पार्टी के कोटे से एक और सीट दे दी। अखिलेश यादव ने सपा और बसपा के बीच मुलायम सिंह यादव के पार्टी प्रमुख होने के दौरान पैदा हुई खटास को दूर करने की कोशिश की ताकि बीजेपी को चुनावों में हराया जा सके।

गठबंधन हुआ फेल

इससे पहले अखिलेश यादव ने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से भी हाथ मिलाया था। तब उस गठबंधन को 'यूपी के लड़के' दिया। लेकिन उस गठबंधन ने काम नहीं किया और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनी। अब बसपा के साथ सपा का गठबंधन भी वो अपेक्षित परिणाम नहीं दे पाया। अब नए सवाल उठने शुरू हो गए हैं क्या अखिलेश यादव को बसपा का साथ नहीं आया रास।

साल 2000 में की थी राजनीति की शुरूआत

वर्ष 2000 में अखिलेश यादव ने कन्नौज के लोकसभा उपचुनाव में जीत हासिल कर राजनीति में कदम रखा। इसके बाद वह 2004 और 2009 में भी कन्नौज से चुनाव जीते। 2014 में अखिलेश यादव ने ये सीट अपनी पत्नी को दे दिया जहां से उनकी पत्नी चुनाव जीत कर संसद पहुंची।

(भाषा से इनपुट) 

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