नेपाल के बार्डर से सटे जिलों का कड़वा सच, पढ़ने की चाहत तो है पर पढ़ें कैसे ये बेटियां 

Update: 2017-05-30 17:57 GMT
बालिका स्कूल।

कम्युनिटी जर्नलिस्ट

ढेबरुआ (सिद्धार्थनगर)। “हम कक्षा आठ तक जूनियर हाईस्कूल में पढ़े हैं, लेकिन और भी आगे पढ़ना चाहती हूं। पर जब पिछले साल पापा से कहा तो उन्होंने कहा, आगे की पढ़ाई में पैसे ज्यादा लगेंगे। 100-200 रुपए में काम नहीं चलेगा। इसीलिए उन्होंने मेरा नाम नहीं लिखवाया।” ये पीड़ा है आठवीं पास मंशा (14 वर्ष) की।

जिला मुख्यालय से 45 किमी दूर बढ़नी विकास खंड के भरौली गाँव की रहने वाली मंशा के गाँव में उनके जैसी कई लड़कियां हैं, जो अपने अफसर बनने के सपने को भूल चुकी हैं। नेपाल सीमा से सटे इस जनपद के बढ़नी ब्लाक में बालिकाओं की माध्यमिक स्तर की पढ़ाई की कोई सरकारी व्यवस्था नहीं है। बालिका विद्यालय न होने के कारण गरीब लड़कियां आठवीं के बाद की पढाई ही नहीं कर पाती।

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सेविका-असेविका योजना के अंतर्गत हर ब्लाक में 20 लाख रुपए की लागत से ग्रामीण गरीब असहाय लड़कियों के लिए एक नि:शुल्क हाईस्कूल व इन्टर कालेज बनवाने का प्रावधान किया जा रहा है।
सोमारू प्रधान, जिला विद्यालय निरीक्षक

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इसी गाँव की किरन बताती हैं कि उनके पापा अक्सर बीमार रहते हैं। अकेले मां ही मजदूरी करके पूरे परिवार का खर्चा चलाती हैं, इसीलिए वो मुझे आगे नहीं पढ़ा सकीं। उनका कहना है कि जब वे सातवीं पास हुई तो पापा उन्हें पढ़कर अफसर बनने को कहते थे, लेकिन विपरीत हालातों के चलते उनके सपने, सपने ही रह गए।” वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 82.14 फीसदी पुरुष, जबकि 65.46 फीसदी महिला ही साक्षर थीं।

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दुपाती देवी (65 वर्ष) का कहना है, “हम गरीब के पास इतना पइसा कहां है कि बिटियन का बड़का सकुल में पढ़ाई। जानो सरकार साहेब के चलते आठवीं दर्जा तक पढ़लेत हीं औरो ऊपर तक पढ़ेक कहत हीं, लेकिन कहंस पढ़ाई।” इस बाबत जिला विद्यालय निरीक्षक सोमारू प्रधान बताते हैं कि “सेविका-असेविका योजना के अंतर्गत हर ब्लाक में 20 लाख रुपए की लागत से ग्रामीण गरीब असहाय लड़कियों के लिए एक नि:शुल्क हाईस्कूल व इन्टर कालेज बनवाने का प्रावधान किया जा रहा है।”

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