इत्र नगरी कन्नौज में खूब हो रही है पिपरमिंट, कास्मेटिक और दवाओं में मेंथा ऑयल का होता है इस्तेमाल

Update: 2017-06-25 15:49 GMT
पिपरमिंट की निराई करता किसान।

मोहम्मद परवेज, स्वयं कम्युनिटी जर्नलिस्ट

तिर्वा (कन्नौज)। इत्रनगरी के किसानों ने मक्का की खेती छोड़कर पिपरमेंट की खेती करना षुरू कर दिया है। प्लांट से खुद ही तेल निकालकर गैर जनपदों में बिक्री करते हैं। इससे उनको अच्छा मुनाफा होता है।

जिला मुख्यालय कन्नौज से करीब 12 किमी दूर ईशननदी पुल के पास पिपरमेंट (मेंथा) से तेल निकालने का प्लांट लगा है। यहां पर फगुहा, लोहामढ़, रतापुर्वा और बेहरिन के किसान फसल से तेल निकलवाने आते हैं। ‘‘हमको मक्का की फसल से पिपरमेंट की फसल बेहतर लगी। मैंने 10 बीघा में की है, आसपास करीब 300 बीघा में खेती होती है। मक्का रखे-रखे खराब हुई जात है और तेल कभऊ खराब नाहीं होत है। जब भाव अच्छो होत है तो बरेली और माधौनगर में बेच आउत हैं।’’ यह कहना है फगुहा गांव के 40 वर्षीय किसान शिवदयाल सिंह कुशवाहा का। वह आगे कहते हैं कि ‘‘कम लागत में अच्छो मुनाफा इया फसल में मिलत है।’’

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35 वर्षीय रतापुर्वा के राजू बताते हैं, ‘‘पहले पौध तैयार करते हैं या बाहर से लाते हैं। एक मार्च से 20 मार्च तक रोपाई की जाती है। आठ से 10 पानी लगने के बाद 75 से 90 दिन में यह तैयार होती है। टैंक में डालकर इसका तेल निकाल लेते हैं। इस फसल को गाय, भैंस, बकरी नहीं खाती है।’’

तेल निकालने की तैयारी

फसल कटिंग करने के 24 घंटे के बाद टैंक में डालकर उसे गर्म करते हैं। इसके बाद अंदर भाप बनने लगती है। भाप को नली से ठंडा करते हुए बर्नर में एकत्र किया जाता है। उसमें 30 फीसदी तेल और 70 फीसदी पानी होता है। पानी नीचे और तेल ऊपर आ जाता है। ऊपर से तेल को निकाल लिया जाता है। यह तेल सर्दियों में घी की तरह बन जाता है।

ये आती है लागत

एक बीघा में 10 किलोग्राम बीज पड़ता है, जिसकी कीमत 20-30 रूपए किमलो है। इसमें 15 किग्रा यूरिया और एक किलोग्राम सल्फर पड़ता है। कुल लागत ढाई से तीन हजार तक आती है। एक बीघा में छह से 10 लीटर तेल निकलता है। अगर बाजार भाव अच्छा है तो 2200 रूपए लीटर में तेल मिल जाता है।

डीएचओ मुन्ना यादव कहते हैं, ‘‘पिपरमेंट का अधिकांश प्रयोग दवाओं में होता है। कास्मेटिक और पान में क्रिस्टल के रूप में लोग उपयोग करते हैं। ठंडा तेल बनाने में भी पिपरमेंट काम आता है। आयुर्वेदिक दवाओं में भी यह उपयोगी है। यह बहुत महंगा बिकता है, लेकिन यहां के किसान मक्का के अलावा कुछ करना नहीं चाहते हैं। करीब 2,000 रूपए लीटर का बाजार रहता है। विभाग में कोई ऐसी योजना नहीं है, जिससे प्रमोट करें, लेकिन जो आ जाता है उसे जानकारी दे देते हैं।’’ डीएचओ आगे बताते हैं कि जितना पानी मक्का की फसल में लगता है उतना ही पिपरमेंट में।

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