धरती से आकाश तक शुरू हो गई है महाकुंभ की तैयारी

कुंभ महाकुंभ या अर्धकुम्भ आख़िर क्या है इसका ग्रहों के गोचर और आपसे संबंध? सटीक गणना किए गए सौर चक्रों के आधार पर कुंभ विशेष रूप से हर छह या 12 साल में मनाया जाता है। साल 2025 में महाकुंभ है, ज़मीन से आसमान तक उस अनूठे संयोग के लिए अभी से तैयारी शुरू हो गई है ।

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दिल्ली से करीब 700 किलोमीटर दूर उत्तर प्रदेश के प्रयाग में साल 2025 में होने वाले महाकुंभ की तैयारी अभी से शुरू हो गई है।

औसतन हर तीन साल में देश में एक स्थान पर कुंभ का आयोजन होता है। इनमें हरिद्वार, प्रयागराज (इलाहाबाद) , नासिक और उज्जैन शामिल हैं। नासिक और उज्जैन के कुंभ एक-एक साल के अंतर में होते हैं। कुंभ हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें करोड़ों श्रद्धालु कुंभ की जगह स्नान करते हैं। इनमें से सभी स्थान पर हर बारहवें साल महाकुंभ का आयोजन होता है। हरिद्वार और प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह साल के अंतराल में अर्धकुंभ भी होता है।

उत्तर प्रदेश सरकार महाकुंभ को पूरे देश और दुनिया में मेगा इवेंट के रूप में आयोजित करने की तैयारी कर रही है। सरकार का मानना है कि 2019 के कुंभ में जहाँ 24 करोड़ श्रद्धालु आए थे, वहीं 2025 में आयोजित होने वाले महाकुंभ में 40 करोड़ से ज़्यादा श्रद्धालु आ सकते हैं, जिसको लेकर आधारभूत ढांचा तैयार किया जा रहा है।


लखनऊ तारामंडल में वैज्ञानिक सुमित कुमार श्रीवास्तव इसे खगोलीय घटना मानते हैं। गाँव कनेक्शन से उन्होंने कहा, "पिछले कुंभ में हम लोग गए थे, वहाँ लोगों को हमलोगों ने इससे जुड़ी जानकारी भी दी थी। कुंभ के दौरान ग्रहों को साफ़ देखा जा सकता है तब वो पृथ्वी से कुछ करीब होते हैं।"

ज्योतिष का कुंभ कनेक्शन

केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, लखनऊ के डायरेक्टर प्रोफ़ेसर सर्वनारायण झा कहते हैं, "मेष राशि में बृहस्पति और मकर राशि में सूर्य के प्रवेश की घटना, अमावस्या के दिन हो तो प्रयाग में कुंभ होता है जो काफी दुर्लभ संयोग है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, चंद्रमा, गुरु और शनि का ये स्थान परिवर्तन पानी और हवा को प्रभावित करते हैं जिससे वातावरण पूरी तरह से सकारात्मक होता है। मान्यता है कि इस दौरान कुछ खास किस्म की खगोलीय ऊर्जाएं पृथ्वी के चुनिंदा स्थानों पर स्थित जल भंडारों को प्रभावित करती हैं। और यह ऊर्जित जल इंसान के स्वास्थ और कार्मिक ऊर्जाओं को बल देता है, मज़बूत बनाता है।

विष्णु पुराण के मुताबिक जब गुरु ग्रह कुंभ राशि में होता है और सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है तब हरिद्वार में कुंभ लगता है।


सूर्य और गुरु जब दोनों ही सिंह राशि में होते हैं तब कुंभ नासिक में लगता है। और जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है तब उज्जैन में कुंभ मेला लगता है।

कुम्भ का शाब्दिक अर्थ कलश होता है। इस कलश का हिन्दू सभ्यता में विशेष महत्व है।

कहते हैं आदि शंकराचार्य ने कुंभ की शुरुआत की थी। वहीं कुछ कथाओं में बताया जाता है कि कुंभ का आयोजन समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गया था।

घटना ये है कि समुद्र मंथन से निकले अमृत को पाने के लिए देवता और दानवों के बीच घमासान युद्ध हुआ। ये युद्ध लगातार 12 दिन तक चलता रहा। इसी दौरान हरिद्वार, प्रयाग,नासिक और उज्जैन में अमृत की बूंदें गिरी। काल गणना के आधार पर देवताओं का एक दिन धरती के एक साल के बराबर होता है। इस कारण हर 12 साल में इन चारों जगहों पर महाकुंभ का आयोजन किया जाता है।

कैसी है महाकुंभ की तैयारी

महाकुंभ में श्रद्धालु गंगा यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम में पुण्य की डुबकी लगाने पहुँचते हैं। इस बार भी उनके लिए ख़ास इंतज़ाम किए जा रहे हैं।

महाकुंभ की तैयारी में राजस्व, पुलिस, सिंचाई, प्रयागराज विकास प्राधिकरण, बिजली, रेलवे, परिवहन निगम और सेना सहित 24 विभाग शामिल हैं।

प्रयाग के इस महाकुंभ में रेलवे की ओर से 17 अंडर ब्रिज और रेलवे ओवर ब्रिज बनाया जाएगा। इनके बनने के बाद किसी के लिए भी यहाँ पहुँचना आसान हो जाएगा।

हवाई सेवा से आने वाले देश विदेश के श्रद्धालु और टूरिस्टों के लिए एयरपोर्ट पर एक नया टर्मिनल भी बनाया जा रहा है। महाकुंभ के दौरान भीड़ को देखते हुए फ्लाइट की भी संख्या बढ़ाई जाएगी।

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