उत्तराखंड के इस गाँव के घरों को बनाया होम स्टे, खिलाते हैं पहाड़ी खाना, रुक गया पलायन

पिछले कुछ वर्षों में ग्रामीण पर्यटन यानी रूरल टूरिज्म का चलन बढ़ा है, लोग गाँव आकर वहाँ की संस्कृति के बारे में जानना चाहते हैं। ऐसा ही एक उदाहरण पेश कर रहे हैं उत्तराखंड के भगत सिंह और चैन सिंह रावत।

Ambika TripathiAmbika Tripathi   10 Nov 2023 11:23 AM GMT

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उत्तराखंड के इस गाँव के घरों को बनाया होम स्टे, खिलाते हैं पहाड़ी खाना, रुक गया पलायन

एक तरफ उत्तराखंड के गाँव में रहने वाले पलायन करके बड़े शहरों में काम तलाश रहे हैं, वहीं कुछ ऐसे भी लोग हैं जो अपने गाँव में रहकर ही न सिर्फ खुद कमाई कर रहे हैं, बल्कि दूसरे लोगों को रोज़गार के अवसर उपलब्ध करा रहे हैं।

उत्तराखंड के उत्तरकाशी ज़िले के साँकरी-सौड़ गाँव के भगत रावत और उनके भतीजे चैन सिंह रावत ने ऐसी ही शुरूआत की है। उन्होंने अपने गाँव को टूरिस्ट प्लेस के रूप में विकसित किया है, जिससे देश भर के पर्यटक उनके गाँव में आते रहते हैं।

लेकिन इसकी शुरुआत हुई 40 पहले, जब 49 साल के भगत रावत नौ साल के थे। चैन सिंह रावत गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "कुछ लोग केदार कांठा ट्रैकिंग के लिए आए थे, हम अपनी बकरियाँ और गाय चराने के लिए उधर जाते रहते थे तो हमें उधर का रास्ता पता होता था, तो मैंने उन्हें रास्ता बता दिया; उन लोगों के साथ दो लड़कियाँ भी थीं, उन्होंने जाते समय मुझे 75 रुपए दिए, उस समय 75 रुपए बहुत बड़ी बात थी।"


फिर क्या था, स्कूल से आने के बाद वो चुपके से पर्यटकों को ट्रैकिंग पर ले जाते। भगत रावत बताते हैं, "घर वाले मना करते थे कि हम खानदानी लोग हैं, हम ऐसे काम नहीं करते हैं, इसलिए मैं घर वालों से छिपकर जाता था।"

भगत रावत आगे कहते हैं, "हमारे यहाँ वही 1995 के आसपास पर्यटकों का आना शुरू हुआ और जब मुझे लगा कि मेरे भतीजे का इसी में मन लग रहा है तो उसी की पढ़ाई करने को कहा।"

भगत रावत के भतीजे चैन सिंह रावत ने उत्तरकाशी में टूरिज्म में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। साथ ही पर्वतारोहण का भी कोर्स किया। फिर साँकरी-सौड़ गाँव वापस आ गए। चैन सिंह बताते हैं, "मुझे लगा कि अगर कुछ करना है तो अपने गाँव से ही शुरू करना होगा, इससे गाँव के युवक-युवतियों को भी रोज़गार मिलेगा। इस पहल में मेरे चाचा जी ने हमेशा साथ दिया।"


भगत सिंह और चैन सिंह ने साल 2002 में हर की दुन प्रोटेक्शन एंड माउंटेनियरिंग एसोसिएशन की शुरुआत की, जिससे आज उत्तराखंड के साथ ही हिमाचल प्रदेश और कश्मीर के 250 से 300 लोग जुड़े हुए हैं।

शुरुआत में लोगों को इसके बार में पता नहीं था, हमें चिट्ठी के जरिए पता चलता था कि टूरिस्ट आने वाले हैं। चैन सिंह बताते हैं, "हम सड़क किनारे खड़े होकर उनका इंतज़ार करते थे, लेकिन जब फोन आ गया तो कुछ चीजें आसान हो गईं।"

अब तो घरों में होम स्टे बना दिए गए हैं, पर्यटक उत्तराखंड के पारंपरिक घरों में रुकते हैं और उन्हें यहाँ का खाना खिलाया जाता है।

चैन सिंह आगे बताते हैं, "शुरू में तो गाँव वालों को भी समझाना पड़ा कि बाहर से लोग आएँगे तो घर बैठे पैसे मिलेंगे, बस उन्हें रुकने की जगह और नाश्ता, खाना देना होगा।"


"अब तो होम स्टे में टूरिस्ट को ठहराते हैं घर का खाना खिलाते हैं उनका आदर सत्कार करते हैं, जब कोई गेस्ट आता है तो हम उनका पारंपरिक तरीके से फूल माला पहनाकर स्वागत करते हैं।" चैन सिंह ने कहा।

54 वर्षीय बलबीर सिंह जैविक खेती करते हैं और होम स्टे भी चलाते हैं। बलबीर सिंह बताते हैं, "मैं और मेरी बहन होम स्टे का काम देखते हैं; जब मेहमान आते हैं, अपने खेतों में उगी अनाज और सब्जियाँ खिलाते हैं। इस काम में खर्च काटकर ढाई से तीन लाख का मुनाफा हो जाता है।"

चैन सिंह रावत के अनुसार आज उनके गाँव से पलायन रुक गया है, लोग अपने परिवार के साथ रहते हैं। "हमारे लिए तो पर्यटक ही हमारे भगवान हैं, इसलिए गाँव के लिए उनके रहने से लेकर खाना खिलाने, ट्रैकिंग पर ले जाने का पूरा ख़याल रखते हैं।" चैन सिंह बड़े गर्व से बताते हैं।

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