मिलिए समाज की बेड़ियों को तोड़, रिंच और पाना चलाने वाली यूपी रोडवेज की महिला मैकेनिक से

उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम, कानपुर के क्षेत्रीय वर्कशॉप में दस महिला मैकेनिक पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। इन्हें प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षित किया गया है।

Manish DubeyManish Dubey   2 Nov 2023 10:47 AM GMT

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कानपुर, उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश के कानपुर में राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों के शोरगुल वाले वर्कशॉप में आपको कुछ ऐसा देखने को मिलेगा जो आपको एक पल के लिए हैरान कर जाएगा।

यहाँ महिलाएँ हाथों में रिंच और पेचकस लिए बड़ी-बड़ी गाड़ियों की मरम्मत का काम करते हुए नज़र आएँगी। सार्वजनिक क्षेत्र निगम के पास उत्तर भारत में बसों का सबसे बड़ा बेड़ा है।

यह क्षेत्रीय वर्कशॉप कानपुर के भीड़भाड़ वाले फजल गंज चौराहे से लगभग एक किलोमीटर दूर है। जहाँ महिलाएँ रिंच, पेचकस, ड्रिल और ग्रीस के साथ बड़ी ही आसानी से काम करती हैं, ये सब बड़े वाहनों की मरम्मत या सर्विस करती हैं।


लगभग पाँच एकड़ के बड़े से परिसर में फैली इस वर्कशॉप में 113 कर्मचारी हैं, जिनमें से दस महिला मैकेनिक हैं। यहाँ पर राज्य सड़क परिवहन विभाग के कानपुर, कानपुर देहात, उन्नाव और फ़तेहपुर के सात बस डिपो से बसें सर्विस के लिए आती हैं।

सर्विस स्टेशन के प्रबंधक तुलाराम वर्मा ने गाँव कनेक्शन को बताया, "सिर्फ कानपुर में ही राज्य बस डिपो में इतनी सारी महिला मैकेनिक काम करती हैं।" उन्होंने आगे कहा, "इस समय यहाँ प्रोडक्शन डिपार्टमेंट में 10 महिलाएँ काम कर रही हैं, जहाँ वे चेसिस, इंजन, कंप्रेसर, क्लच प्लेट और बहुत कुछ ठीक करना सीख रही हैं।"

वर्मा के मुताबिक, इन 10 महिलाओं को परिवहन निगम के अलग-अलग विभागों में प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (पीएमकेवीवाई) के तहत प्रशिक्षित किया गया है। यह योजना कौशल की पहचान और मानकीकरण के लिए 2015 में शुरू की गई भारत सरकार की एक स्किल डवलपमेंट पहल है।

सर्विस मैनेजर ने गर्व के साथ कहा, "हमारी कार्यशाला में ये महिलाएँ पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही हैं। वरना तो इस नौकरी में परंपरागत रूप से पुरुषों का ही दबदबा रहा है।" उन्होंने कहा, "इन महिलाओं को हर महीने 6,500 रुपये दिए जाते हैं, लेकिन जल्द ही उनका वेतन बढ़ाकर 7,500 रुपये होने वाला है।"

सर्विस स्टेशन के कर्मचारियों पर बसों को सही हालत में रखने की ज़िम्मेदारी होती है, ताकि यात्री सुरक्षित रह सकें। वर्मा ने बताया कि अकेले कानपुर में रोज़ाना 18,000 लोग रोडवेज बसों में सफ़र करते हैं।

गाँव कनेक्शन ने राज्य की राजधानी लखनऊ से लगभग 95 किलोमीटर दूर स्थित कानपुर के सर्विस स्टेशन पर एक दिन बिताया और देखा कि ये दस महिला मैकेनिक किस तरह से अपने काम को अंजाम दे रही हैं।

कीर्ति पाल (बाएँ) और कंचन गौतम (दाएँ)

इन महिलाओं में से कुछ की उम्र तो महज 19-20 साल की हैं। ये सब बड़े ही आत्मविश्वास के साथ वर्कशॉप के रिंच और अन्य औजारों को चलाती हैं। उन्होंने हमारे साथ अपनी उन कहानियों को साझा किया जिसकी वजह से उन्हें राज्य सड़क परिवहन के सर्विस स्टेशन पर काम करने के लिए आना पड़ा, जिसे आमतौर पर आदमियों का काम माना जाता है।

कंचन गौतम कानपुर की रहने वाली हैं और 19 साल की हैं। उन्होंने अपने पिता को बहुत ही कम उम्र में खो दिया था और वह तीन भाई-बहनों में सबसे बड़ी है।

गौतम ने बस के टायर के नट कसते हुए गाँव कनेक्शन को बताया, "इस डिपो में काम शुरू करने से पहले मैंने कौशल विकास योजना के तहत डेढ़ साल तक ट्रेनिंग ली थी।" नौकरी के साथ-साथ वह अपनी पढ़ाई भी पूरी कर रही हैं। वह बीएससी, अंतिम वर्ष की छात्रा हैं।

गौतम ने कहा, "मुझे अपने परिवार को पालने के लिए ट्रेनिंग लेनी पड़ी और इसी वजह से मैंने यहाँ नौकरी भी की है।"

रानी भी 19 साल की हैं और पिछले साल ही उन्होंने ये काम करना शुरू किया था। वह चौबेपुर की रहने वाली हैं और अपनी स्नातक डिग्री के अंतिम वर्ष में है। उन्होंने कहा कि वह अपने पिता का हाथ बँटाने के लिए काम कर रही हैं ।

पूर्ति गौतम (बाएँ) और रोमा (दाएंँ)

उन्होंने कहा, “मेरे पिता एक प्राइवेट नौकरी करते हैं; उन्हें ज़्यादा पैसे नहीं मिलते हैं, मेरी कमाई से हमारी आमदनी बढ़ जाती है और छह लोगों के परिवार का भरण-पोषण आसान हो जाता है। मुझे ये काम करना अच्छा लगता है, यहाँ वर्कशॉप में एक महिला के काम करने में किसी को कोई दिक्कत नहीं है।''

कीर्ति पाल कंचन गौतम और रानी से सिर्फ एक साल बड़ी हैं। 20 साल की कीर्ति वर्कशॉप से तकरीबन छह किलोमीटर दूर किदवई नगर में रहती हैं। उनके घर में माता-पिता और तीन अन्य भाई-बहन भी हैं। उनके पिता प्राइवेट नौकरी करते हैं।

कीर्ति को प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत प्रशिक्षित किया गया था और वह पिछले दो महीनों से इस सर्विस सेंटर में काम कर रही हैं।

उन्होंने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे लिए कोई भी काम बहुत मुश्किल या छोटा नहीं है। मैं यह सोचकर घर पर नहीं बैठ सकती कि लोग क्या कहेंगे; ऐसे लोगों के लिए मेरा काम ही मेरा जवाब है।”

जहाँ कीर्ति काम कर रही थीं, वहाँ से थोड़ी ही दूर पर 25 साल की पूर्ति गौतम क्लच और प्रेशर डिपार्टमेंट में काम करते हुए काफी व्यस्त नज़र आ रही थीं। वह मसवानपुर की रहने वाली हैं और उसने स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली है।

उन्होंने कहा, “मैंने लॉकडाउन के दौरान कौशल विकास योजना के तहत एक मैकेनिक की ट्रेनिंग ली थी; मैं यहाँ लगभग डेढ़ साल से काम कर रही हूँ।''

बाईं तरफ: कँचन (बाएँ) और रानी (दाएँ), आँचल (केंद्र), दाईं तरफ: ज्योति (बाएँ) और रोमा (दाएँ)

यह पूछे जाने पर कि क्या उन्हें पुरुषों की बीच रहने और बसें ठीक करने में डर लगता है, उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, "शुरुआत में मैं काम करते हुए थोड़ा झिझक रही थी, लेकिन अब हम एक बड़े परिवार की तरह हैं।"

ज्योति जयसवाल 26 साल की हैं और डेढ़ साल से बस डिपो में काम कर रही हैं। ग्वालटोली में रहने वाली ज्योति ने कहा कि वह शुरू में इतने सारे लोगों के बीच काम करने के विचार से काफी डर गई थीं और कई लोगों ने उनके यहाँ काम करने के फैसले पर सँदेह भी जताया था।

ज्योति ने गाँव कनेक्शन से कहा, "लेकिन मैं आज यहाँ हूँ, मुझे यहाँ काम करने के लिए किसी की मंज़ूरी या अनुमति की जरुरत नहीं है और मैं अपने काम में अपने किसी भी पुरुष सहकर्मी की तरह ही माहिर हूँ।"

रानी श्रीवास्तव 26 साल की हैं और मसवानपुर की रहने वाली हैं। वह लगभग दो सालों से वर्कशॉप में काम कर रही हैं। उनके घर में उनके माता-पिता के अलावा दो भाइयों और दो बच्चों वाली विधवा बड़ी बहन है। घर चलाने में वह अपने परिवार की मदद कर रही हैं।

जब उनसे पूछा गया कि समाज उनके जैसी महिला मैकेनिक को कैसे देखता है, तो उन्होंने कहा, “ओह! मुझे बहुत सारे गंदे कमेंट सुनने को मिले थे; लोगों ने कहा कि मैं औजार नहीं सँभाल पाऊँगी यह आदमियों का काम है, मैं ये नहीं कर पाँऊगी। वायु सेना में महिलाएँ हैं, हमारी राष्ट्रपति एक महिला हैं, महिला राजनेता भी हैं... तो फिर, मैं मैकेनिक क्यों नहीं बन सकती।''

कंचन को एक समाचार पत्र से प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के बारे में पता चला और उन्होंने ट्रेनिंग के लिए नामांकन कराया। मसवानपुर की रहने वाली 28 साल की कंचन दो साल से सर्विस स्टेशन पर काम कर रही हैं। फिलहाल वह क्लच और प्रेशर विभाग में है।

उन्होंने कहा, “मेरे परिवार में 15 लोग हैं, यहाँ काम करने के अपने फैसले के लिए मुझे बहुत आलोचना सुननी पड़ी थी । 'वह आदमियों की दुनिया है... तुम वहाँ क्या करोगी?' लेकिन आज वही लोग इस बात के लिए मेरी तारीफ करते हैं कि मैं रोडवेज विभाग में काम करती हूँ।''

राज रानी (बाएँ) और सोनी गौतम (दाएँ)

सोनी गौतम भी मसवानपुर में रहती हैं। 30 वर्षीया सोनी तीन बेटियों की माँ हैं और उनके पति एक प्राइवेट कंपनी के मार्केटिंग विभाग में काम करते हैं।

उन्होंने कहा, "मैंने भी कौशल विकास योजना के अंतर्गत प्रशिक्षण लिया और लगभग दो साल पहले काम करना शुरू किया था।" वह आगे कहती हैं, “वैसे वेतन बहुत कम है, लेकिन इससे मुझे अपने बच्चों की पढ़ाई और अपने पति की थोड़ी मदद करने में मदद मिलती है; यहाँ काम के माहौल के बारे में कोई शिकायत नहीं है और हर कोई बहुत मददगार है। ”

सोनी गौतम से कुछ गज की दूरी पर रोमा बैठी थीं जो एक आधिकारिक रजिस्टर में रिकॉर्ड दर्ज करने में व्यस्त थीं। 30 साल की यह महिला कानपुर के ग्वालटोली की रहने वाली है और उनके पति ने ही उन्हें कौशल विकास योजना के बारे में बताया था।

उन्होंने कहा, "मैं यहाँ कुछ समय से काम कर रही हूँ और यह कुछ ऐसा है जिसे करने में मुझे मजा आता है।"

आँचल मिश्रा दो बच्चों की माँ हैं और पिछले दो साल से वर्कशॉप में काम कर रही हैं। वह साकेत नगर में रहती हैं और उनके पति एक निजी कंपनी में काम करते हैं।

आँचल सुबह आठ बजे से शाम पाँच बजे तक वर्कशॉप में रहती हैं। उनकी बड़ी बेटी 9वीं कक्षा में पढ़ती है और बेटा सात साल का है। उन्होंने कहा कि उनके पति और बेटी घर के कामों में हाथ बंटा देते हैं ताकि वह मैकेनिक के रूप में अपना काम अच्छे से कर सकें।

वह कहती हैं, “मैं ड्राइवर बनना चाहती थी, लेकिन अपनी लंबाई के कारण ऐसा नहीं कर पाई। इसलिए मैंने कौशल विकास योजना के तहत मैकेनिक बनने की ट्रेनिंग ली। वेतन बेहतर हो सकता है, लेकिन कम से कम इससे थोड़ी मदद तो मिल ही जाती है। और यहाँ काम करते हुए मुझे कोई परेशानी भी नहीं होती।''

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