गाँव में हैं या शहर में टीबी की बीमारी की अनदेखी जीवन को ख़तरे में डाल सकती है

गाँव कनेक्शन | Nov 10, 2023, 09:55 IST
ट्यूबरक्लोसिस यानी टीबी के मरीजों में संतोष जनक कमी नहीं होने से चिंता बढ़ गई है; डॉक्टरों का कहना है किसी भी बीमारी को शुरूआती दिनों में नज़रअंदाज़ करने की आदत के कारण ज़्यादातर टीबी के मरीज़ ग्रामीण या औद्योगिक क्षेत्रों में देखे जाते हैं।
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आप गाँव में हैं या शहर में, कोई भी अगर आपके आसपास लम्बे समय से खाँसता दिख जाए तो उसे फौरन नज़दीक के अस्पताल या डिस्पेंसरी में खुद को दिखाने को कहें, हो सकता है ये तपेदिक या टीबी के शुरूआती लक्षण हों।

देश में टीबी के मरीज़ों की संख्या में संतोषजनक कमी नहीं होने से इस बीमारी ने फ़िक्र बढ़ा दी है।

मैक्स हेल्थ केयर, दिल्ली एनसीआर के निदेशक डॉक्टर के सी नैथानी का मानना है कि इस बीमारी में ज़्यादातर मामले शुरूआती दिनों में नज़र-अंदाज़ के कारण भी होते हैं।

"अक्सर लोग डॉक्टर के पास तब आते हैं जब तकलीफ बढ़ जाती है, लेकिन वो भूल जाते हैं कि इससे बीमारी भी तो बढ़ सकती है; शुरू में हो सकता है कम समय में उसे ठीक किया जा सके, देर से दिखाने पर इलाज भी लम्बा चलता है, गाँव या शहरों में जो मज़दूर तबका है उनमें सेहत को लेकर उदासीनता रहती है।" डॉ नैथानी ने गाँव कनेक्शन से कहा।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की रिपोर्ट के मुताबिक भारत में टीबी के मरीज़ पहले से कुछ कम तो हैं लेकिन साल 2035 तक देश से इस बीमारी को जड़ से ख़त्म करने का लक्ष्य पूरा होता नज़र नहीं आ रहा है।

दुनिया में टीबी के मरीजों के मामले में भारत चौथे नंबर पर है। हैरत की बात ये है कि साल 2022 में इस बीमारी के 28 लाख केस दर्ज़ किये गए। फिर भी, पिछले 8 वर्षों में टीबी मरीजों की मृत्यु दर और घटना में कमी को कुछ बेहतर जरूर माना जा रहा है।

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दुनिया की आबादी का लगभग एक चौथाई हिस्सा टीबी बैक्टीरिया से संक्रमित है। टीबी से संक्रमित लगभग 5 से 10 फीसदी लोगों में लक्षण दिखाई देते हैं तो उनमें टीबी रोग विकसित हो सकता है।

राष्ट्रीय क्षय रोग संस्थान के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. रविचंद्र सी के मुताबिक देश में 40 प्रतिशत से अधिक आबादी के शरीर में तपेदिक संक्रमण होता है, लेकिन केवल 10 प्रतिशत को ही टीबी रोग होता है।

"दुनिया की बड़ी आबादी में टीबी का संक्रमण है; इसका मतलब यह नहीं है कि वे टीबी से पीड़ित हैं, भारत में 40 फीसदी से अधिक आबादी के शरीर में टीबी के जीवाणु होते हैं लेकिन वे टीबी रोग से पीड़ित नहीं हो सकते हैं।"

ट्यूबरक्लोसिस (टीबी) क्या है?

ये रोग माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक जीवाणु के कारण होता है। ट्यूबरक्लोसिस एक संक्रामक बीमारी है जो आमतौर पर फेफड़ों पर हमला करती है और धीरे-धीरे ये दिमाग या रीढ़ सहित शरीर के बाकी हिस्सों में भी फैल सकती है।

यह रोग संक्रमित व्यक्ति की खाँसी की बूंदों से आसानी से फैल सकता है; यह इसे एक अत्यधिक संक्रामक रोग बनाता है। अगर समय पर इलाज न किया जाए तो टीबी से मौत भी हो सकती है।

ये है बीमारी की वजह

शरीर में टीबी की बीमारी की शुरुआत माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस नामक बैक्टीरिया के संक्रमण के कारण होती है। शुरुआत में तो शरीर में कोई लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन जैसे-जैसे यह संक्रमण बढ़ता जाता है, मरीज की मुश्किलें भी बढ़ने लगती हैं। जिन लोगों के शरीर की इम्यूनिटी कमज़ोर होती है, उन्हें टीबी का ख़तरा अधिक रहता है।

कम प्रतिरक्षा को टीबी संक्रमण के टीबी रोग में बदलने के सामान्य कारणों में से एक माना जाता है। एचआईवी, तनाव, मधुमेह, क्षतिग्रस्त फेफड़ों की स्थिति से पीड़ित लोग; शराब पीने वाले और धूम्रपान करने वाले जिनकी सामान्य स्वास्थ्य स्थिति खराब है, उन्हें भी यह बीमारी होने की संभावना रहती है।

टीबी (क्षय रोग) के प्रकार

मोटे तौर पर, टीबी की दो श्रेणियाँ हैं - पल्मोनरी टीबी (जो फेफड़ों को प्रभावित करती है) और एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी (जो फेफड़ों और अन्य अंगों दोनों को प्रभावित करती है)।

इस बीमारी के दो गंभीर रूप हैं - मिलिअरी ट्यूबरकुलोसिस और टीबी मेनिनजाइटिस।

मिलिअरी ट्यूबरकुलोसिस - पूरे शरीर को प्रभावित करता है जबकि टीबी मेनिनजाइटिस केंद्रीय तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करता है; सिरदर्द, कम सतर्कता, लगभग-बेहोशी जैसी स्थिति का कारण बनता है।

क्या है लक्षण?

सबसे आम लक्षण खाँसी है, जो दो सप्ताह से अधिक समय तक रहती है। वजन कम होना, भूख न लगना और रात के समय बुखार होना सभी प्रकार की टीबी में आम है। अन्य लक्षण जैसे सीने में दर्द, थकान रात में पसीना आना और बलगम में खून आना ज़्यादातर एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी से पीड़ित लोगों में अनुभव किया जाता है।

टीबी एक ऐसी बीमारी है जिससे हर साल दुनियाभर में लाखों लोगों की मौत होती है। देश में इस बीमारी से हर साल लगभग चार लाख भारतीयों की मौत होती है और इससे निपटने में सरकार सालाना लगभग 24 बिलियन डॉलर यानी लगभग 17 लाख करोड़ रुपये खर्च करती है।

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