ट्रेनें ज्यादा ड्राइवर कम, हादसे तो होंगे ही!

Anand TripathiAnand Tripathi   20 Nov 2016 6:51 PM GMT

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ट्रेनें ज्यादा ड्राइवर कम, हादसे तो होंगे ही!कानपुर देहात केे पुखरायां में रेल की पटरी से उतरीं ट्रेनें।

लखनऊ। देश हर वर्ष ट्रेनों की संख्या बढ़ती जा रही है। मगर इनको चलाने वाले लोको पायलट यानी ड्राइवरों की संख्या बेहद कम है। ऐसे में लोको पायलट को पर्याप्त आराम करने का मौका नहीं मिल पाता। नतीजतन, वे बोझिल आंखों में नींद लिए और दिमाग में तनाव के साथ ट्रेनें चलाते रहते हैं। एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, अस्सी फीसदी ट्रेन हादसे मानवीय भूल के कारण होती है। ऐसे में ट्रेन ड्राइवर्स की कमी एक चिंता का विषय है।

मालगाड़ी चलाने वाले ड्राइवर पैसेंजर ट्रेनें चला रहे

एक ट्रेन को चलाने के लिए एक लोको पायलट और सहायक लोको पायलट होता है। ऐसे में उनसे 15 से 20 घंटे तक की ड्यूटी कराई जा रही है। इस बारे में पूर्वोत्तर रेलवे कर्मचारी संघ डिवीजनल सेक्रेटरी एसके चौधरी बताते हैं, “सही आंकड़े तो नहीं हैं, लेकिन लगभग 30 फीसदी तक ड्राइवरों की कमी है। मालगाड़ी चलाने वाले ड्राइवर पैसेंजर ट्रेनें चलाई जा रही हैं। मालगाड़ी चलाने वाले ड्राइवरों को पैसेंजर प्रमोशन कोर्स, जो कि तीन माह का होता है, कराकर पैसेंजर ट्रेन चलवाया जा रहा है। पूरे जोन का यही हाल है।”

कहने के बावजूद नहीं देता कोई ध्यान

वो आगे बताते हैं, “ऐसा विशेष परिस्थितियों में तो हो सकता है, पर हमेशा ऐसा करने से दुर्घटना का खतरा बना रहता है।” ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन के जोनल महामंत्री विनय शर्मा बताते हैं, “पूरे जोन में (लखनऊ, बनारस और इज्जतनगर) मालगाड़ियों के लोकों पायलटों के 797 पदों पर मात्र 501 लोक पायलट हैं। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मेल और पैसेंजर गाड़ियों का क्या हाल होगा। सहायक लोको पायलटों की कमी की शिकायत भी कई बार की गई पर उस पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता है।”

क्या कहता है नियम

रेलवे नियमों के मुताबिक लोको पायलटों की ड्यूटी 10 घंटे से अधिक नहीं होनी चाहिए जबकि स्टाफ की कमी के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाता है। प्रशासनिक दबाव के चलते रनिंग स्टाफ को ओवर आवर्स डयूटी करनी पड़ रही है, जिसके कारण उसे पर्याप्त रेस्ट नहीं मिल पा रहा है।

क्या कहता है रेस्ट का नियम

रेलवे बोर्ड के नियमानुसार आठ घंटे से अधिक की ड्यूटी होने पर 16 घंटे तथा 8 घंटे से कम की ड्यूटी होने पर 12 घंटे का रेस्ट मुख्यालय में सुनिश्चित होना चाहिए। नियम में यह स्पष्ट नहीं है कि कॉल बुक के लिए दो घंटे का समय अलग से होना चाहिए। विगत दो वर्षों से 16 घंटे के पहले ही 14 घंटे तथा 10 घंटे में कॉल बुक सर्व की जा रही है। इस कारण स्टाफ पर्याप्त रेस्ट नहीं ले पा रहा है। ऑल इंडिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएशन के जोनल महामंत्री विनय शर्मा का कहना है कि ज्यादा काम के कारण लोको पायलटों को मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर आदि की बीमारियां आम हो गई हैं। इस ओर रेलवे प्रशासन का ध्यान नहीं है। ओवर आवर्स ड्यूटी के बाद रेस्ट की निश्चितता भी नहीं है। 15 से 20 घंटे की ड्यूटी करने के बाद भी रेस्ट मात्र 16 घंटे के बजाय 14 घंटे का दिया जा रहा है।

लोको पायलटों की कमी है। जरूरत ज्यादा और कर्मचारी कम हैं। हम लोग समय-समय पर स्पेशल ट्रेनें भी संचालित करते हैं और भर्ती की प्रक्रिया तो चलती रहती है।
संजय यादव, सीपीआरओ, पूर्वोत्तर रेलवे

   

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