10 रुपये में बिक रहा आत्मा झुलसाने का हथियार

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10 रुपये में बिक रहा आत्मा झुलसाने का हथियारप्रतीकात्मक फोटो।

रिपोर्ट: वर्तिका मिश्रा

लखनऊ। किसी गली नुक्कड़ या भरे बाजार में बिना सरकारी इजाजत और नियमों को दरकिनार कर के आत्मा झुलसाने का हथियार बोतलों में बंद कर बड़ी आसानी से बेचा जा रहा है। कीमत बस 10 रुपये। बात हो रही है खतरनाक तेजाब की। अनेक लड़कियों की जिंदगी यही तेजाब बर्बाद कर चुका है, मगर इसकी बिक्री पर रोक नहीं लग पा रही है। तेजाब के हमलों के मामले में यूपी के आंकड़े डराने वाले हैं। मगर प्रशासनिक लापरवाही से ये हमले रुकते नहीं नजर आ रहे हैं।

ढाई महीने तक तैयबा ने लड़ी जंग, मगर हार गई

मथुरा की तैयबा अपनी सगाई की दूसरी रात को तेज़ाब हमले का शिकार हो गयी थी। ढाई महीने तक दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ते हुए वो हार गयी। वो लड़का जिसने खुदको उसका ''प्रेमी'' बताया था, उसी ने तैयबा पर तेज़ाब डाल दिया था क्योंकि तैयबा किसी और से शादी कर रही थी। इस हमले को गुज़रे 3 महीने हो गए हैं, मगर तैयबा का चचेरा भाई आज भी उस हमले के बारे में बात करते हुए रोने लगता है, और कहता है, ''अगर उस रोज़ एसिड इतनी आसानी से बाज़ार में नहीं मिलता तो शायद तैयबा ज़िंदा होती।"

साल दर साल बढ़े एसिड अटैक के मामले

ये एक किस्सा नहीं है, ऐसी कितनी ही तेज़ाब हमले की शिकार लड़कियां हैं जिनके शरीर के ज़ख्म तो भर जाते हैं, मगर मन के ज़ख्मों पर कोई मलहम नहीं लग पाता। एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार देश में एसिड अटैक के मामले 2011 में 89 से बढ़कर 2015 में 309 हो गए हैं। मगर सुप्रीम कोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाते हुए ''टॉयलेट क्लीनर'' के नाम पर तेज़ाब धड़ल्ले से राजधानी की दुकानों में बिक रहा है। अवैध रूप से बिक रहे तेज़ाब की सुध लेने वाला कोई नहीं है। प्रशासन भी इस मामले में चुप्पी साधे दिखता है। जबकि देश के 309 मामलों में से 189 प्रदेश के ही हैं।

अवैध बिक्री रोकने में नाकाम

अमीनाबाद, यहियागंज, चौक, निशातगंज इलाके में किराना की दुकानों पर तेज़ाब बहुत ही आसानी से मिल जाता है। न तो विक्रेताओं के पास ज़रूरी लाइसेंस है, न ही वो खरीददारों से आईडी प्रूफ मांगते हैं। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के बावजूद, लोगों और प्रशासन का लचर रवैया एसिड अटैक के मामलों व एसिड की अवैध बिक्री को रोकने में नाकाम हो रहा है। दुकानदार से जब इस अवैध बिक्री के बारे में हमने जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने कहा कि,'' ये तो टॉयलेट क्लीनर है, इससे किसी को कोई नुकसान नहीं होता।''

विभाग नहीं लेते जिम्मेदारी

दुर्गा प्रसाद शुक्ला, जो कि ''स्टॉप एसिड अटैक'' के कैम्पैनेर और एक आरटीआई एक्टिविस्ट हैं बताते हैं कि,'' कितनी ही आरटीआई लगाये जाने के बावजूद अब तक कोई भी विभाग ये ज़िम्मेदारी नहीं लेता कि तेज़ाब की बिक्री की निगरानी किसके कार्यक्षेत्र में आती है।'' ऐसे में जब प्रशासन आँखें मूंदे तेज़ाब की अवैध बिक्री होने दे रहा है, तो ये बताना और भी ज़रूरी हो जाता है कि देश में उत्तर प्रदेश तेज़ाब हमलों के मामले में अव्वल है और प्रदेश की सरकार ने तेज़ाब हमलों की शिकार लड़कियों के लिए तुरंत सहायता राशि का भी प्रावधान है। अनेक अच्छी कोशिशों, जिनसे कि तेज़ाब पीड़िताओं का पुनर्वास किया जा सके, उसी के बीच तेज़ाब की अवैध बिक्री की खबरें प्रशासन की मुस्तैदी साथ ही साथ समाज की जागरूकता पर कटाक्ष करती हैं।

ऑर्गन डैमेज के मामले भी आए सामने

जस्टिस जेएस वर्मा की कमेटी के सुझाव से एसिड अटैक को अपराध की श्रेणी में रखा गया और आईपीसी की धारा 326 (ए) 326 (बी) बनायी गयी। डॉ. राजीव शेट्टी जो कि 'स्टॉप एसिड अटैक' के रीच-आउट कंसल्टेंट भी हैं बताते हैं कि,'' आज कल बाज़ार में जो एसिड बिक रहा है, वह आँखों के लिए बहुत नुकसानदायक है और जिस तरह से अटैकर पीड़ितों को एसिड पिला देते हैं, पीड़ित के ऑर्गन डैमेज के मामले भी सामने आते हैं। इस एसिड के चमड़ी पर लगने से जलन होती है। छाले पड़ना, फफोले होना भी इस ''टॉयलेट क्लीनर'' से होने वाले नुकसानों में से एक है।''

   

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